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Investment Sentiment: 2022 में बढ़ सकती हैं महंगाई और ब्याज दरें, निवेश पर बहुत अधिक रिटर्न की उम्मीद न करें

जहां तक मार्केट रिटर्न का सवाल है तो मौजूदा दौर से लेकर मध्यावधि तक इसकी उम्मीद करना ठीक नहीं होगा. फिलहाल टॉप-डाउन से मार्केट से बॉटम अप का रुख सही होगा.

जहां तक मार्केट रिटर्न का सवाल है तो मौजूदा दौर से लेकर मध्यावधि तक इसकी उम्मीद करना ठीक नहीं होगा. फिलहाल टॉप-डाउन से मार्केट से बॉटम अप का रुख सही होगा.

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Investment Sentiment: 2022 में बढ़ सकती हैं महंगाई और ब्याज दरें, निवेश पर बहुत अधिक रिटर्न की उम्मीद न करें

2022 में इकोनॉमी को लेकर आशंकाएं बरकरार

2021 खत्म होने वाला है और 2022 का आगाज हो रहा है. अगर हम पिछले 21 महीनों के देखें तो यह चार्ल्स डिकेंस के मशहूर उपन्यास A Tale of two Cities की शुरुआती लाइनों की याद दिलाता है, जिनमें उस दौर की तस्वीर खींची गई है. लाइनें कुछ इस तरह शुरू होती हैं- यह बेहतरीन दौर था, यह बदतरीन दौर था. यह ज्ञान का दौर था. यह मूर्खता का दौर था. यह विश्वास का दौर था. यह अविश्वास का दौर था. यह प्रकाश का दौर था. यह अंधकार का दौर था. यह उम्मीदों का वसंत था .यह निराशा की सर्द थी.

कोरोना के दौरान भी हमने इसी तरह का दौर देखा. आर्थिक तौर पर देखें तो एसेट की कीमतों और आर्थिक हालातों को बीच इतना बड़ा विचलन कभी नहीं दिखा था. इससे पहले की ज्यादातर झटक वित्तीय प्रकृति थे जिसमें करेक्शन और रिकवरी होती रहती है. इस बार मामला स्वास्थ्य और मेडिकल से जुड़ा था और दुनिया ने कुछ ऐसी प्रतिक्रिया दी, जैसी वित्तीय संकट में दी जाती है. मसलन कैश और आसान धन मुहैया कराया गया. इसकी वजह से थोड़ी देर के लिए वैश्विक संपत्ति की कीमतें बढ़ गईं.

महंगाई और ब्याज दर के बढ़ने का खतरा

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लेकिन अब क्या होगा? बड़ा खतरा महंगाई और ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर है. लिहाजा आसान लिक्विडिटी का माहौल खत्म होगा. महंगाई दर और आने वाले दिनों ब्याज दरों में इजाफे पर चल रही वैश्विक बहस अभी थमी नहीं है . बढ़ती महंगाई दर, बढ़ी हुई ब्याज दरें और मौद्रिक नीतियों में बदलाव और उसे सख्त किए जाने से भारत समेत सभी इमर्जिंग इकोनॉमी को दिक्कत हो सकती है.जहां तक भारत का सवाल है तो यह अभी भी आंशिक रूप से परिवर्तनीय पूंजी खाते वाला देश है इसलिए वैश्विक झटकों से थोड़ा कम प्रभावित होता है. भारत में रियल एस्टेट और औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग और पूंजीगत व्यय जैसे सेक्टर पिछले एक दशक से सुस्त थे. लेकिन अब इसमें थोड़ी तेजी आ रही है. चीन प्लस वन रणनीति अगर आगे और मजबूती हासिल करती है तो इससे भारत और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों को मदद मिल सकती है.

मौजूदा दौर से मध्यावधि तक रिटर्न की ना करें उम्मीद

जहां तक मार्केट रिटर्न का सवाल है तो मौजूदा दौर से लेकर मध्यावधि तक इसकी उम्मीद करना ठीक नहीं होगा. फिलहाल टॉप-डाउन से मार्केट से बॉटम अप का रुख सही होगा. सही एसेट या स्टॉक का चुनाव और इसका एलोकेशन ही तय करेगा कि रिटर्न कैसा रहेगा.बहरहाल भारत में ग्रामीण इलाकों में खपत अभी पूरी रफ्तार नहीं पकड़ पाई. साथ ही ओमिक्रॉन की चिंताएं भी बढ़ गई हैं. हालांकि अभी इसके प्रभाव का आकलन करना जल्दबाजी होगी. हालांकि शुरुआती ऊहापोह के बाद अब दुनिया भर में इससे कम गतिरोध पैदा होने के आसार हैं.

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नए बदलावों से बिजनेस को जूझना होगा

अर्थव्यवस्था पर चर्चा और बहस जारी रखी जा सकती है लेकिन भविष्य के संदर्भ में होने वाले बदलावों के बारे में जानना जरूरी है. बहरहाल आने वाले वर्षों में बदलाव कहीं तेजी गति से हो सकते हैं. हम इस समय तमाम नए बदलाव देख सकते हैं और कुछ पुराने में नई अवधारणाएं जैसे मेटावर्स, ब्लॉकचेन, क्रिप्टो, एनएफटी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और क्लाइमेट चेंज. इस तरह के शब्दों की सूची लंबी होती जा रही है. अगर निवेश की दुनिया का उदाहरण लें तो नए दौर की कंपनियों, उनके कारोबारी मॉडल पर उत्साह के साथ काम हो रहा है. पारंपरिक तौर तरीके से देखने पर वे निवेश के योग्य नहीं रह जाएंगीं और उनके विशाल आकार को देखते हुए इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. तेजी से बदलते माहौल में हो रही ऊहापोह मे से यह सिर्फ एक है. मैं ऐसी स्थिति में डॉ. वायन डायर का एक कथन का जिक्र करना चाहूंगा-आप किसी चीज को जिस नजरिये से देखते हैं उसमें बदलाव करें. आप जिन चीजों को देखते हैं वे बदलती रहती हैं.

(Article: Ajit Menon)

(लेखक अजीत मेनन पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड के सीईओ हैं. इस लेख में उन्होंने निजी विचार व्यक्त किए हैं. फाइनेंशियल एक्सप्रेस हिंदी का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है. )

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