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Invest in Smart Way: एक जैसी स्कीम में एक बराबर निवेश, लेकिन रिटर्न मिला आधे से भी कम; क्‍या है मामला

Power of Compounding: लंबी अवधि में निवेश करने से जहां कंपाउंडिंग का बेनेफिट मिलता है, वहीं मार्केट रिस्क भी इसमें कवर हो जाते हैं.

Power of Compounding: लंबी अवधि में निवेश करने से जहां कंपाउंडिंग का बेनेफिट मिलता है, वहीं मार्केट रिस्क भी इसमें कवर हो जाते हैं.

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Sushil Tripathi
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Smart Investors

Early Investment: जल्द निवेश शुरू करने से आपको फाइनेंशियल प्लानिंग के लिए लंबा वक्त मिलता है.

Early Investment Benefits: प्राइवेट सेक्‍टर में जॉब करने वाले करण ने नौकरी के लंबे समय तक अपनी निजी जरूरतों और पसंद का ज्‍यादा ध्‍यान रखा, जिसके चलते आमदनी बढ़ने के साथ उनका खर्च भी बढ़ता चला गया. इस दौरान उनकी लाइफ स्‍टाइल तो अच्‍छी रही लेकिन अपने भविष्‍य के लिए पैसे बचाकर रखने में लापरवाही की. इस बात का अहसासा उन्‍हें तब हुआ, जबकि उनकी वर्किंग लाइफ अपने अंतिम पड़ाव पर आने को थी. 45 की उम्र के बाद उन्‍हें इस बात का अहसासा हुआ, लेकिन अब उनके पास इतना समय नहीं बचा था कि वह रिटायरमेंट के बाद उतना फंड जुटा सकें, जिससे आज के दौर की तरह ही बुढ़ापे में भी जिंदगी जी सकें. कहीं आप भी इस तरह की लापरवाही तो नहीं कर रहे हैं.

आज के दौर में जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है, भविष्‍य के लिए फाइनेंशियल प्‍लानिंग करना बहुत जरूरी हो गया है. बेहतर है कि जितनी जल्‍दी आप बचत और निवेश के योग्‍य हो जाएं, प्‍लानिंग शुरू कर दें. क्‍योंकि जल्‍द प्‍लानिंग करने से आपको निवेश के लिए ज्‍यादा समय मिल जाता है. वहीं लंबी अवधि में निवेश करने से आपको कंपाउंडिंग का फायदा मिलता है. अगर आप निवेश करने में देरी करेंगे तो हर साल की देरी पर आपको लाखों का नुकसान हो सकता है, भले ही आप एक ही स्‍कीम में और एक बराबर निवेश करें.

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अलग अलग उम्र में निवेश का उदाहरण

एक‍ उदाहरण के तौर पर रिटायरमेंट फंड के लिए राहुल ने 30 साल की उम्र से फाइनेंशियल प्लानिंग शुरू किया, जबकि दूसरे केस में महेश ने 35 की उम्र और तीसरे केस में रमेश ने 40 की उम्र से निवेश करना शुरू किया. तीनों ने एक ही म्यूचुअल फंड स्कीम में एसआईपी शुरू किया. एक के पास निवेश के लिए 30 साल, दूसरे के पास 25 साल और तीसरे के पास 20 साल है.

*राहुल ने हर महीने 5 हजार रुपये की एसआईपी की तो 30 साल में उसका कुल निवेश 18 लाख हुआ.

*महेश ने 25 साल में 18 लाख निवेश करने के लिए 6 हजार रुपये की एसआईपी की.

*रमेश को 20 साल में 18 लाख निवेश करने के लिए 7500 रुपये की एसआईपी करनी पड़ी.

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केस-1: 30 साल का निवेश लक्ष्य

मंथली SIP: 5000 रुपये
अवधि: 30 साल
कुल निवेश: 18 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 1,76,49,569 रुपये (1.8 करोड़)
फायदा: 1,58,49,569 रुपये (1.6 करोड़)

केस-2: 25 साल का लक्ष्य

मंथली SIP: 6000 रुपये
अवधि: 25 साल
कुल निवेश: 18 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 1,13,85,811 रुपये (1.1 करोड़)
फायदा: 95,85,811 रुपये (95.9 लाख)

केस-3: 20 साल का लक्ष्य

मंथली SIP: 7500 रुपये
अवधि: 20 साल
कुल निवेश: 18 लाख रुपये
30 साल बाद फंड: 74,93,609 रुपये (74.9 लाख)
फायदा: 56,93,609 रुपये (56.9 लाख)

क्‍या मिला नतीजा

यहां साफ है कि 30 साल में एसआईपी शुरू करने वाले राहुल को 18 लाख के निवेश पर करीब 1.8 करोड़ का फंड मिला. वहीं महेश को 18 लाख ही निवेश करने पर 25 साल में 1.1 करोड़ का फंड हासिल हुआ. जबकि रमेश ने 18 लाख लगाए, लेकिन मिला सिर्फ 56.9 लाख रुपये. यानी राहुल के मुकाबले सिर्फ 33 फीसदी और महेश के मुकाबले अधे से भी कम.

उदाहरण-2: अगर मंथली SIP की रकम एक हो

उम्र: 30 साल

हर महीने SIP: 5000 रुपये
निवेश की अवधि: 30 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 18 लाख रुपये
SIP की वैल्यू: 1.8 करोड़ रुपये
फायदा: 1.6 करोड़

उम्र: 35 साल

हर महीने SIP: 5000 रुपये
निवेश की अवधि: 25 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 15 लाख रुपये
SIP की वैल्यू: 94.9 लाख रुपये
फायदा: 79.9 लाख रुपये

उम्र: 40 साल

हर महीने SIP: 5000 रुपये
निवेश की अवधि: 20 साल
अनुमानित रिटर्न: 12% सालाना
कुल निवेश: 12 लाख रुपये
SIP की वैल्यू: 50 लाख रुपये
फायदा: 38 लाख रुपये

यहां साफ है कि अगर अलग अलग उम्र में एक समान रकम से एसआईपी करते हैं तो 5 साल की देरी में फायदा आधा और 10 साल की देरी में फायदे में करीब 5 गुने की कमी आएगी.

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