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Why Investing Just to Save Tax is Not A Good Idea? टैक्स सेविंग फाइनेंशियल प्लानिंग का एक अहम हिस्सा जरूर है. फिर भी निवेश का पहला मकसद फाइनेंशियल गोल को हासिल करना होना चाहिए न कि सिर्फ टैक्स बचाना. अगर आप अपने निवेश के साथ टैक्स में छूट का लाभ पाते हैं तो ऐसे में कोई नुकसान नहीं है. सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए किए गए निवेश से फाइनेंशियल टार्गेट को हासिल करने की दिशा में कई विसंगतियां आ सकती है. क्यों आपको एक होलिस्टिक इनवेस्टमेंट अप्रोच यानी समग्र निवेश दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए निवेश से बचना चाहिए. इस सब से जुड़े कुछ जरूरी वजहों का जिक्र किया गया है. फाइनेंशियल प्लानिंग करने से पहले इनके बारे में देख सकते हैं.
तमाम शर्तों के साथ आते हैं टैक्स सेविंग इंस्टूमेंट
जब आप टैक्स सेविंग के मकसद से किसी इंस्ट्रूमेंट में निवेश करते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आपके द्वारा निवेश के लिए चुना गया इंस्ट्रूमेंट या स्कीम कई शर्तों के साथ आता है. इन इंस्ट्रूमेंट या स्कीम के साथ इनवेंस्टमेंट साइज, लॉक-इन पीरियड, निश्चित रिटर्न जैसे तमाम शर्तें होती है. आमतौर पर टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट पर एक वित्त वर्ष में सालाना 1.5 लाख रुपये तक की ऊपरी निवेश सीमा होती है. अलग-अलग टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स में अलग-अलग लॉक-इन बाधाएं होती हैं. मिसाल के तौर पर ELSS में 3 साल का लॉक-इन है, ULIP में 5 साल का लॉक-इन पीरियड है और इसी तरह टैक्स सेविंग बैंक FD में 5 साल का लॉक-इन पीरियड है. बैंकबाजार के सीईओ आदिल शेट्टी कहते हैं कि कई भारतीय निवेश करते हैं क्योंकि इससे उन्हें इनकम टैक्स बचाने में मदद मिलती है. कुछ निवेश आपको 1961 के आयकर अधिनियम के विभिन्न वर्गों के तहत आपके आयकर को कम करने में मदद करते हैं. सभी तरह के निवेश इंस्टूमेंट में निवेशक को टैक्स में छूट नहीं मिलते लेकिन कुछ चुनिंदा सरकारी स्कीम पर इस छूट के फायदे मिलते हैं.
फाइनेंशियल टार्गेट के लिए उचित हो टैक्स सेविंग इंस्टूमेंट, ये जरूरी नहीं
टैक्स सेविंग स्कीम्स शॉर्ट टर्म में अनलिक्विड होती हैं. लॉन्ग टर्म वाले टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट लॉक-इन पीरियड के साथ आते हैं. दूसरी तरफ तमाम ऐसे फाइनेंशियल टार्गेट होते हैं जिनके लिए हाई लिक्विडिटी और शॉर्ट टर्म की जरूरत होती है. ऐसे में आप शार्ट टर्म टार्गेट के लिए टैक्स सेविंग स्कीम पर विचार नहीं कर सकते हैं. जरूरी नहीं कि फाइनेंशियल टार्गेट के लिहाज से निवेश के लिए आपके पास कई टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट के विकल्प हो. वहीं दूसरी तरफ नॉन-टैक्स सेविंग सेगमेंट के अंतर्गत निवेश के लिए ढेरों इंस्ट्रूमेंट्स उपलब्ध हैं. इस पर आदिल शेट्टी कहते हैं कि आपकी आय जितनी अधिक होगी, आपके कर उतने ही अधिक होंगे. वह बताते है कि टैक्स डिडक्शन यानी टैक्स में छूट वह राशि है जिसे आप अपनी इनकम से घटा सकते हैं. टैक्स डिडक्शन से आपकी टैक्स योग्य इनकम कम हो जाती है. इस प्रकार, आपका कुल टैक्स भी कम हो जाता है. टैक्स सेविंग इंस्टूमेंट से दो चीजें एक साथ कवर हो जाती है. इस तरह के इंस्टूमेंट में पैसे लगाकार आप निवेश पर कुछ रिटर्न और टैक्स में छूट का लाभ हासिल कर पाते हैं.
आप अनावश्यक लॉन्ग टर्म इंस्ट्रूमेंट में फंस सकते हैं
कुछ टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट में लंबे समय तक रेगुलर निवेश करने की जरूरत होती है और इस तरह के स्कीम से मामूली रिटर्न मिलते हैं. मिसाल के तौर पर समझिए कुछ ट्रेडिशनल लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसीज हैं जिनमें आप एक बार निवेश करना शुरू करते हैं, तो आप निश्चिच लॉक-इन पीरियड के बीच में बाहर निकलने का रिस्क नहीं ले सकते हैं और अगर आप पूरी अवधि के दौरान रेगुलर निवेश करते रहे हैं, तो संबंधित पॉलिसी टेन्योर पूरी हो जाने के बाद आपको मामूली रिटर्न का लाभ मिलता है. यही बात इंश्योरेंस कवर की तो आपको जरूर पॉलिसी सब्सक्राइब कर लेना चाहिए. लेकिन अपने फाइनेंशियल टार्गेट को पूरा करने के लिए अलग से इनवेंस्टमेंट प्लानिंग बनाकर चलना चाहिए.
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जब आप एक साथ ज्यादा लाभ पा सकते हैं तो कम से समझौता क्यों?
फाइनेंशियल टार्गेट के लिए रिस्क लेने और निवेश पर हायर रिटर्न पाने की जरूरत पड़ सकती है. जब आप रेगुलर इनवेस्टमेंट एसेट में निवेश करके हायर रिटर्न पा सकते हैं और अपने फाइनेंशियल टार्गेट को पूरा भी कर सकते हैं, तो फिर क्यों टैक्स-सेविंग इंन्ट्रूमेंट में निवेश करके कम लाभ के साथ समझौता करने का रिस्क ले रहे हैं?
इक्विटी म्युचुअल फंड, डेट फंड, शेयर, एसजीबी, बैंक एफडी, लिक्विड फंड जैसे तमाम रेगुलर निवेश ऑप्शन रिस्क को कम करने और इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई बनाने का मौका देते है. इसके साथ ही ऐसा करके हायर रिटर्न का लाभ भी उठाने का अवसर होता है. वही दूसरी तरफ अगर आप केवल टैक्स बचाने के मकसद से निवेश के बारे में विचार करते हैं तो आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई नहीं बना सकते हैं.
(Article : Sanjeev Sinha)