/financial-express-hindi/media/media_files/fwmOctMbd1Scbwe16bAo.jpg)
Investment Tips : अलग अलग एसेट क्लास में निवेश का फायदा यह है कि इससे आपके पोर्टफोलियो को सुरक्षा मिलती है. (Pixabay)
Asset Allocation : एसेट अलोकेशन और पोर्टफोलियो में डाइवर्सिफिकेशन किसी भी निवेशक द्वारा लंबी अवधि के लिए फाइनेंशियल पोर्टफोलियो बनाते समय लागू किए जाने वाले पहले कुछ प्रमुख नियमों या सिद्धांतों में से एक हैं. इसमें मुख्य रूप से आपने निवेश के लिए जो फंड तय किया है, उसे अलग अलग एसेट क्लास में निवेश के जरिए विभाजित करते हैं और डाइवर्सिफिकेशन हासिल करते हैं. अलग अलग एसेट क्लास में निवेश का फायदा यह है कि इससे आपके पोर्टफोलियो को सुरक्षा मिलती है. लेकिन उम्र के हर फेज में एसेट अलोकेशन की क्या स्ट्रैटेजी होनी चाहिए, इस बारे में एएसके प्राइवेट वेल्थ के सीनियर मैनेजिंग पार्टनर, निशांत अग्रवाल ने विसतार से जानकारी दी है.
निवेश के लिए 4 बेस्ट विकल्प
इक्विटी, डेट, कैश और सोना यानी गोल्ड किसी भी पोर्टफोलियो में सबसे कॉमन एसेट क्लास हैं. इनमें से हर एक एसेट क्लास विशेष तरह से बेनेफिट देता है. इक्विटी की बात करें तो हायर रिटर्न की संभावना रखते हुए, इसमें शॉर्ट टर्म में अस्थिरता हो सकती है. जिसके चलते शॉर्ट टर्म में पैसे डूबने से आपको नुकसान हो सकता है और एक तय समय के बाद अगर आपने कोई लक्ष्य तय किया है तो उस लक्ष्य के अनुसार आप फंड तैयार कर पाएंगे या नहीं, इसे लेकर अनिश्चितता हो सकती है. दूसरी ओर, डेट में लगातार और पूर्व अनुमानित रिटर्न के साथ सुरक्षा मिल सकती है, लेकिन यहां अगर महंगाई से एडजस्ट करने के बाद वास्तविक रिटर्न देखें तो ग्रोथ बहुत कम हो सकती है. वहीं सोना महंगाई से बचाव कर सकता है, लेकिन शॉर्ट टर्म में इस एसेट क्लास में वास्तविक रिटर्न भी बहुत कम या अप्रत्याशित हो सकता है. कैश मुख्य रूप से रोज की जरूरतों और इमरजेंसी खर्चों के लिए होता है.
सभी एसेट क्लास में सावधानीपूर्वक निवेश
एक आइडियल फाइनेंशियल प्लानिंग में लॉन्ग टर्म के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इन सभी एसेट क्लास में सावधानीपूर्वक मिला जुला अलोकेशन शामिल होता है. जहां कई फाइनेंशियल और व्यवहारिक फैक्टर कोई निर्णय लेने में अहम भूमिका निभाते हैं. इनमें से कुछ फैक्टर में स्टेज ऑफ लाइफ, एक तय समय में एक फंड तैयार करने का लक्ष्य, वर्तमान और भविष्य की आय, मौजूदा पोर्टफोलियो, पिछले निवेश का अनुभव. लेकिन ये फैक्टर किसी के जीवन के दौरान बदलते रहते हैं. इसलिए, किसी भी व्यक्ति के लिए एसेट अलोकेशन पूरी तरह से स्थिर नहीं हो सकता है, जिसे बदला न जा सके. बल्कि बदलती परिस्थितियों, जरूरतों और लक्ष्यों के अनुसार इसमें समय समय पर बदलाव होना चाहिए.
उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति को अपने जीवन के शुरुआती दौर में पोर्टफोलियो शुरू करते समय बच्चों, घर, माता-पिता, रिटायरमेंट के लिए योजना बनानी चाहिए. जबकि रिटायरमेंट के करीब पहुंच रहे व्यक्ति, जिसने अपनी ज्यादातर वित्तीय जिम्मेदारियां पूरी कर ली हो, उसे मुख्य रूप से अपनी रिटायरमेंट की जरूरतों और अगली पीढ़ी को धन ट्रांसफर करने के लिए योजना बनानी चाहिए. इसी तरह, वर्किंग लाइफ के दौरान कैश फ्लो की जरूरतें काफी अलग होती हैं, जहां व्यक्ति अपनी आय से अपने खर्चों को पूरा कर सकता है और नियमित रूप से बचत कर सकता है या पोर्टफोलियो बना सकता है. जबकि रिटायरमेंट के दिनों में अपने नियमित खर्चों को पूरा करने के लिए पोर्टफोलियो से होने वाली कमाई और अपनी लाइफ में तैयार किए गए कॉर्पस पर निर्भर रहने की जरूरत होती है.
एसेट अलोकेशन का पॉपुलर नियम
एसेट अलोकेशन के लिए एक बेहद पॉपुलर नियम यह है कि किसी की उम्र को 100 या 110 से घटा दिया जाए (क्योंकि औसत उम्र बढ़ रही है) और बची राशि को इक्विटी में निवेश किया जाए. उदाहरण के लिए, 40 साल की आयु में, इक्विटी में एक्सपोजर कुल पोर्टफोलियो का 60-70% के बीच हो सकता है.
यह नियम मुख्य रूप से इस तथ्य पर आधारित है कि जीवनकाल का पहला हिस्सा किसी व्यक्ति के पक्ष में होता है, हालांकि निवेश के लिए उपलब्ध सरप्लस कम हो सकता है. आय और बचत करने की क्षमता में बढ़ोतरी, जोखिम को कम करने की क्षमता, खराब निवेश से उबरने की क्षमता, किसी को इक्विटी में अधिक अलोकेशन के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे कंपाउंडिंग का फायदा मिलता है.
उम्र बढ़ने के साथ होते हैं कई टारगेट पूरे
जैसे-जैसे कोई व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता है, इनकम और जिम्मेदारियां दोनों बढ़ती हैं. एक तरफ, रेगुलर इनकम और बचत में बढ़ोतरी होती है, जिससे पोर्टफोलियो में बड़ा योगदान होता है. वहीं दूसरी ओर रिटायरमेंट की ओर बढ़ते समय घर खरीदना, परिवार शुरू करना, बच्चों की शिक्षा जैसे पहले से योजना बनाकर तय किए गए लक्ष्य पूरे होते हैं. पीएफ/एनपीएस जैसे रिटायरमेंट फंड मैच्योर हो जाएंगे या प्लान की गई एन्युटी से आपको लाभ मिलना शुरू हो जाएगा. अपने भविष्य के लिए तय किए गए सभी लक्ष्य के लिए तैयार किए गए फंड पर फैमिली की निर्भरता और जरूरत अच्छी तरह से स्थापित की गई होगी, और निवेश के अनुभव और एक विशेष प्रकार के निवेश के लिए पसंद/नापसंद को ध्यान में रखा गया होगा.
कैसे बनाएं निवेश की योजना
जुटाए गए फंड और पोर्टफोलियो साइज के आधार पर जीवन के इस चरण में कई बातों को ध्यान में रखकर निवेश की योजना बनाई जा सकती है. 12-18 महीनों के खर्चों को कैश के रूप में / या कैश के समकक्ष विकल्पों में अपने पास रखना और अपने रिटायरमेंट लाइफ के लिए डेट विकल्पों से होने वाली इनकम और पूंजी निकासी दोनों के जरिए खर्चों को कवर करने के लिए पोर्टफोलियो में पर्याप्त डेट अलोकेशन बनाए रखना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. शेष राशि, अगर कोई हो, अनिवार्य रूप से अगली पीढ़ी को ट्रांसफर की जाएगी. इसके लिए भी प्राथमिकताओं के आधार पर अधिक बेहतर तरीके से योजना बनाई जा सकती है.
क्या उम्र के साथ ज्यादा कन्जर्वेटिव हो पोर्टफोलियो
यह फंड के साइज, अनुमानित भविष्य के फ्लो, योजना बनाकर तय किए गए लक्ष्य, इन सभी लक्ष्य को पूरा करने के बाद अपेक्षित सरप्लस और अनुभव व व्यवहार पर भी निर्भर करता है. बिना घबराए शॉर्ट टर्म में अस्थिरता को झेलने और जोखिम भरे एसेट से छुटकारा पाने की क्षमता के चलते मिड से लॉन्ग टर्म के लिए बेहतर ग्रोथ के टारगेट के साथ ऐसे एसेट क्लास को पोर्टफोलियो में जोड़ने के लिए अधिक आत्मविश्वास मिलना चाहिए.