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पहली बार निवेश कर रहे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड्स बेहतर विकल्पों में शुमार है. इसमें या तो एकमुश्त निवेश किया जा सकता है या एक समय अंतराल पर सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए अपने पैसों को निवेश कर सकते हैं.
Investment Tips: पहली बार निवेश कर रहे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड्स बेहतर विकल्पों में शुमार है. इसमें या तो एकमुश्त निवेश किया जा सकता है या एक समय अंतराल पर सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए अपने पैसों को निवेश कर सकते हैं. पहली बार निवेश रहे निवेशकों के लिए कम रिस्क में अधिक रिटर्न पाने के लिए एसआईपी बेहतर विकल्पों में शुमार है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि इसमें एकमुश्त अधिक पैसे लगाने की बजाय महज 500 रुपये में भी निवेश की शुरुआत की जा सकती है. इसमें अपनी आय और वित्तीय लक्ष्य के हिसाब से हर हफ्ते, तिमाही या छमाई या सालाना आधार पर पैसे लगा सकते हैं. हालांकि पहली बार एसआईपी शुरू करते समय कुछ बातों का ख्याल जरूर रखना चाहिए.
निवेश के लक्ष्य को पहचानें
एसआईपी में निवेश शुरू करने से पहले अपने शॉर्ट टर्म और लांग टर्म के लक्ष्य को जरूर तय कर लें. इससे आपको यह तय करने में मदद मिलेगी कि कितनी राशि आपको निवेश करना है और कितनी अवधि में आप अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं. किसी भी निवेशक के लिए कार खरीदना, अपना घर होना, बच्चों की शिक्षा या विवाह इत्यादि लक्ष्य हो सकते हैं. ऐसे में एक ही एसआईपी काफी नहीं होगा और हर लक्ष्य के हिसाब से कई एसआईपी में पैसे लगा सकते हैं.
इंफ्लेशन पर भी रखें नजर
निवेश को लेकर एक गोल्डेन रूल ये है कि निवेश करते समय इंफ्लेशन यानी महंगाई दर का भी ख्याल रखें. एसआईपी में निवेश शुरू करते समय मौजूदा और भविष्य की अनुमानित इंफ्लेशन का ख्याल रखना चाहिए. ऐसा देखा गया है कि कई लोग निवेश करते समय इंफ्लेशन का ध्यान नहीं रखते हैं जिसके चलते जब उनका प्रभावी रिटर्न कम हो जाता है. ऐसे में निवेशकों को किसी अवधि में निवेश के लिए एसआईपी राशि का चयन करते समय इंफ्लेशन का ध्यान रखना चाहिए.
सावधानी से चुनें निवेश योजना
बाजार में निवेश के लिए कई विकल्प उपलब्ध है- इक्विटी फंड, डेट फंज या हाइब्रिड फंड इत्यादि. रिस्क लेने की क्षमता, अनुमानित रिटर्न और निवेश अवधि के मुताबिक आप उपयुक्त विकल्प चुन सकते हैं. अगर आप अधिक रिस्क उठा सकते हैं और हाई रिटर्न चाहते हैं व लांग टर्म निवेश करना चाहते हैं तो इक्विटी एसेट क्लास में पैसे लगाना बेहतर है. कम रिस्क उठा सकते हैं तो डेट फंड में पैसे लगाएं और जिन निवेशकों के रिस्क लेने की क्षमता मॉडेरेट है, वे हाइब्रिड फंड चुन सकते हैं लेकिन इसमें रिटर्न औसत रह सकता है. इसके अलावा सही योजना और म्यूचुअल फंड कंपनी का चयन भी महत्वपूर्ण है. बाजार में कई प्रकार की म्यूचुअल फंड कंपनियां हैं जो कई योजनाएं पेश कर रही हैं. सभी विकल्पों में शानदार रिटर्न नहीं हासिल कर सतते हैं तो ऐसे में कंपनी के ट्रैक रिकॉर्ड, निवेश की लागत, स्कीम के पूर्व प्रदर्शन, फंड मैनेजर की क्षमता इत्यादि के आधार पर अपना फैसला ले सकते हैं.
पूरे पैसे एक ही विकल्प में न लगाएं
निवेश की अच्छी रणनीति ये है कि अपने पूरे पैसों को एक ही विकल्प में लगाने की बजाय एक से अधिक विकल्पों में लगाने चाहिए. रिस्क लेने की क्षमता और अनुमानित रिटर्न के हिसाब से आप अपने पैसों को निवेश कर सकते हैं. रिस्क लेने की क्षमता उम्र, वित्तीय जिम्मेदारियां, निवेश अवधि, आय और देनदारी इत्यादि पर निर्भर करती है. अपने पैसों को एक से अधिक विकल्प में लगाने यानी डाइवर्सिफाई करने से रिस्क को कम करने में मदद मिलती है. इसके लिए विभिन्न एसेट क्लास, योजनाओ और म्यूचुअल फंड कंपनियों में पैसे लगा सकते हैं. हालांकि एक सीमा से अधिक डाइवर्सिफिकेशन भी सही नही हैं क्योंकि यह रिटर्न को घटा सकता है जबकि कम विकल्पों में निवेश से रिस्क का खतरा अधिक रहता है.
समय-समय पर अपने एसआईपी निवेश को जांचें
निवेश का मतलब यह नहीं होता है कि आपने किसी योजना में पैसे लगाए और फिर भूल जाएं. इसे नियमित अंतराल पर ट्रैक करते रहना जरूरी है. अगर आपको लगता है कि उम्मीद के मुताबिक आपके पैसे नहीं बढ़ रहे हैं तो या तो इसकी वजह गलत फंड का चयन होगा या निगेटिव मार्केट कंडीशन. नियमित अंतराल पर अपने फंड का प्रदर्शन करेंगे तो समय रहते आप अपने वित्तीय लक्ष्य को समय पर हासिल करने के लिए जरूरी कदम उठा सकेंगे. जिस फंड का प्रदर्शन बेहतर नहीं दिख रहा है, उससे निकासी कर अपने रिस्क लेने की क्षमता के हिसाब से दूसरे फंड में निवेश कर सकते हैं जो आपके लक्ष्य को पूरा करने में मदद करें.
(आर्टिकल: आदिल शेट्टी, सीईओ, बैंकबाजारडॉटकॉम)