/financial-express-hindi/media/post_banners/FtPCegzuYdhgXIlpnykE.jpg)
Equity Investment: इक्विटी में निवेश करने वाले बहुत से निवेशकों को बाजार के उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है.
Equity Investment Tips: पहली बार इक्विटी में निवेश करने वाले बहुत से निवेशकों को बाजार के उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है. इसी डर से इक्विटी मार्केट में उनकी भागीदारी कम रहती है. हालांकि इस डर को दूर करना आसान है. लेकिन इसके लिए बाजार में मौजूद रिस्क और रिटर्न पर फोकस करना जरूरी है. इसका एक सुरक्षित जरिया इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड है. धैर्य के साथ निवेश की कुछ खास स्ट्रैटेजी पर फोकस करें तो इक्विटी मार्केट से हाई रिटर्न हासिल हो सकता है. इस बारे में PGIM India Mutual Fund के CEO, अजीत मेनन ने कुछ टिप्स दिए हैं.
क्या आप ले सकते हैं बाजार का रिस्क?
भारत की बात करें तो बहुत से निवेशकों ने बचपन से ही फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों में एक निश्चित तरीके से निवेश करना देखा है, जिससे उनकी भी यहीं सोच रहती है. ऐसे प्रोडक्ट में जोखिम नहीं के बराबर होते हैं. ट्रेडिशनल इन्वेस्टर्स इंफ्लेशन एडजस्टेड रिटर्न या रीयल रेट ऑफ रिटर्न के बारे में नहीं सोचते हैं. इस वजह से रिस्क लेने की क्षमता कम होती है. गलती यह होती है कि बहुत से निवेशक मार्केट लिंक वाले विकल्पों में निवेश को भी फिक्स्ड इनकम वाले निवेश की तरह देखते हैं.
गोल बनाकर निवेश करें, लेकिन रिटर्न भी देखें
मान लिया कि आपको बेटी के हायर एजुकेशन के लिए 15 साल बाद कॉर्पस की जरूरत है. तब हायर एजुकेशन की लागत 2 करोड़ रुपये होग. अगर आप किसी बैंक में रिकरिंग डिपॉजिट खोलते हैं, जहां 7 फीसदी सालाना रिटर्न है. ऐसे में आपको हर साल 15 साल 7,43,825 रुपये जमा करना होगा. लेकिन अगर बैंक ब्याज घटाते हैं या किसी साल आप इतना अमाउंट नहीं जमा कर पाते तो दिक्कत आएगी. ऐसे में इतनी बड़ी रकम हर साल निवेश से बचने के लिए उन विकल्पों को देखना चाहिए, जहां यील्ड ज्यादा हो यानी रिटर्न ज्यादा मिल रहा हो.
समझें कंपाउंडिंग का महत्व
बहुत से ट्रेडिशनल निवेशक ऐसे हैं जो फिक्स्ड इनकम वाले विकल्पों से हटकर कहीं और पैसा लगाने के आदी नहीं हैं. इसी वजह से कंपाउंडिंग का फायदा हीं मिलता. ऐसे निवेशकों के लिए भारतीय म्यूचुअल फंड सेक्टर में 2 बेहतर विकल्प हैं. पहला बैलेंस्ड एडवांटेज फंड कैटेगरी, जो अपने प्रोडक्ट डिजाइन के आधार पर बाजार की अस्थिरता को दूर करने का प्रयास करता है. दूसरा विकल्प है लक्ष्य-आधारित निवेश और एसेट अलोकेशन पर फोकस करना.
बार बार निवेश को बदलना गलत तरीका
अगर किसी निवेशक ने 2010 में निवेश करना शुरू किया और बेहतर प्रदर्यान को देखते हुए स्मॉलकैप इंडेक्स में निवेश करने का फैसला किया. 3 साल बाद उसने सिर्फ इसलिए फाइनेंशियल सेक्टर में स्विच कर लिया, क्योंकि स्मालकैप के मुकाबले वहां रिटर्न बेहतर था. फिर 3 साल बाद किसी और सेक्टश्र में स्विच कर लिया. लेकिन इस दौरान स्मालकैप का रिटर्न बेहतर होता गया. ऐसे में उसे बाजार से वह फायदा नहीं मिल पाया, जो मिलना चाहिए था.
Buy-and-Hold स्ट्रैटेजी है बेहतर
इसे ऐसे समझें कि मान लिया किसी ने निफ्टी 500 इंडेक्स (अधिकांश फ्लेक्सी कैप फंडों के लिए बेंचमार्क) और क्रिसिल हाइब्रिड 50:50 मॉडरेट इंडेक्स (बैलेंस एडवांटेज फंड के लिए बेंचमार्क) में पैसे लगाए और बिना स्विच किए 12 साल तक बना रहा. इस दौरान निफ्टी 500 टीआरआई इंडेक्स ने 12.2 फीसदी CAGR का रिटर्न दिया और क्रिसिल हाइब्रिड 50:50 मॉडरेट इंडेक्स ने 10.7 फीसदी CAGR रिटर्न दिया. जबकि आपको एक कटेगिरी से दूसरी कटेगिरी बदलने में इस दौरान सिर्फ 7.4 फीसदी का रिटर्न मिला.
(स्रोत: ICRA MFIE, Note: ऊपर का उदाहरण निवेश की अवधारणा को समझने के लिए है और स्कीम रिटर्न नहीं हैं.)