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क्या फिक्स डिपॉजिट में निवेश सुरक्षित है? जानिए कैसे सिर्फ FD में पैसे रखने से आपको हो सकता है नुकसान

आम तौर पर लोग मानते हैं कि फिक्स डिपॉजिट में रखी रकम पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि उसमें इक्विटी या इक्विटी-ओरिएंटेड फंड्स की तरह उतार-चढ़ाव नहीं होता, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है.

आम तौर पर लोग मानते हैं कि फिक्स डिपॉजिट में रखी रकम पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि उसमें इक्विटी या इक्विटी-ओरिएंटेड फंड्स की तरह उतार-चढ़ाव नहीं होता, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है.

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FE Hindi Desk
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सुरक्षित नहीं समझदारी से करें निवेश, एफडी के साथ ही इक्विटी या इक्विटी-ओरिएंटेड एमएफ योजनाओं में संतुलन से साथ किया गया निवेश देगा बेहतर रिटर्न.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि फिक्स डिपॉजिट में निवेश की गई रकम पर मिलने वाला रिटर्न ज्यादा स्थिर होता है. फिक्स डिपॉजिट में निवेश करने वाले निवेशक को पता होता है कि एफडी की अवधि के दौरान उसे पहले से तय ब्याज दर के अनुसार ही रिटर्न मिलने वाला है. लेकिन क्या आप को पता है कि सिर्फ एफडी में निवेश करना आप को नुकसान भी पहुंचा सकता है? इसकी सबसे बड़ी वजह है एफडी के रिटर्न पर इंफ्लेशन यानी महंगाई दर का असर.

दरअसल, लोगों को लगता है कि एफडी में निवेश की गई मूल राशि में इक्विटी या इक्विटी-ओरिएंटेड एमएफ योजनाओं में निवेशित रकम की तरह उतार-चढ़ाव नहीं होता है, इसलिए एफडी सुरक्षित निवेश है. जो कुछ हद तक तो सही है. लेकिन इसके साथ ही ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिए एफडी में आपको सिर्फ तय ब्याज दर के हिसाब से रिटर्न मिलेगा, जो इक्विटी या इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले बहुत ही कम होता है.

इसे हम एक उदाहरण से भी समझ सकते हैंः-

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मोहन निवेश के मामले में जोखिम लेने से बचते हैं. उनके पास 2000-01 में रिटायर होते समय 20 लाख रुपये की पूंजी थी. जिसे उन्होंने 10 प्रतिशत ब्याज दर पर बैंक में फिक्स डिपॉजिट करा दिया. मोहन को साल में इस 20 लाख की रकम पर करीब 2 लाख रुपये ब्याज मिला, जो 2000-01 में उनके खर्च पूरे करने के लिए काफी थे. लेकिन दस साल बाद मोहन की एफडी मैच्योर हो गई, जिसे उन्होंने एक बार फिर जोखिम से बचने के लिए बैंक के फिक्स डिपॉजिट में जमा करा दिया. लेकिन इस बार महंगाई दर के बढ़ने और ब्याज दरों में कमी हो जाने से उस पर मिलने वाला रियल रिटर्न काफी कम हो गया. लिहाजा अब मोहन को अपने जरूरी खर्च पूरे करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

दरअसल, कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स के अनुसार, 2000-01 में प्रति माह 10,000 रुपये का मासिक खर्च, 2021-22 में लगभग 31,593 रुपये या सालाना करीब 3,79,114 रुपये के बराबर हो गया. जबकि ब्याज दर में 7 प्रतिशत की कमी की वजह से मोहन को अब हर साल सिर्फ 1.4 लाख रुपये ही मिल रहे हैं. महीने के हिसाब से देखें तो उन्हें अब हर महीने 31,539 रुपये चाहिए, जबकि मिल रहे हैं सिर्फ 11,667 रुपये. एफडी पर ब्याज दर की अगर 10 फीसदी भी बनी रहती तो भी उनकी 20 लाख रुपये की जमा राशि पर उन्हें साल में सिर्फ 2 लाख रुपये ही मिलते. यानी महीने के सिर्फ 16,667 रुपये. जो उनकी मौजूदा जरूरत 31,539 रुपये के मुकाबले बहुत ही कम है. अगर उनका निवेश भी इन्फ्लेशन के साथ-साथ बढ़ता तो कॉस्ट इन्फ्लेशन इंडेक्स के मुताबिक 2000-01 में उनके 20 लाख रुपये का निवेश अब तक बढ़कर 63,18,574 रुपये हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लिहाजा, कम ब्याज दर और महंगाई की मार के चलते मोहन अब दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए हैं. 

मोहन को क्या करना चाहिए था

मोहन का 2000-01 में मासिक खर्च करीब 10,000 रुपये था. ऐसे में उन्हें एक साल में 1.2 लाख रुपये पाने के लिए एफडी में सिर्फ 12 लाख रुपये का निवेश करना चाहिए था और बाकी बचे 8 लाख रुपये इक्विटी-ओरिएंटेड योजनाओं में निवेश करने चाहिए थे. 1 जनवरी 2001 को बीएसई सेंसेक्स 3972.12 अंक पर था, जबकि 1 जनवरी 2022 को BSE सेंसेक्स 47868.98 अंक पर था. इसे बेंचमार्क मानें तो पिछले 21 वर्षों में मोहन के 8 लाख रुपये बढ़कर 96,40,994 रुपये हो गए होते. जाहिर है अगर मोहन एफडी और इक्विटी कॉर्पस में बैलेंस बनाकर निवेश करते तो आज उनके पास 1.16 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम होती और वे शानदार जिंदगी जी रहे होते. शायद इसीलिए कहा जाता है कि निवेश के मामले में कोई जोखिम नहीं लेना, कई बार सबसे बड़ा जोखिम बन जाता है.

(Article by Amitava Chakrabarty)

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