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जिनका क्रेडिट स्कोर 750 से अधिक होता है, उन्हें जल्द और आसानी से कम दरों पर लोन मिल जाता है.
Cibil Score: आज किसी भी शख्स के लिए क्रेडिट स्कोर (सिबिल स्कोर) काफी अहम हो गया है. यह लोन की ब्याज दर को तय करने में बड़ी भूमिका निभाता है. इसके अलावा इस स्कोर से यह भी तय होता है कि कितनी राशि का लोन मिल सकता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि समय-समय पर अपने सिबिल स्कोर की जांच करते रहें और इसे बेहतर बनाए रखें. क्रेडिट स्कोर संस्था सिबिल के मुताबिक क्रेडिट स्कोर 300-900 के बीच हो सकता है और आमतौर पर 750 से अधिक के स्कोर को अच्छा माना जाता है. जिनका स्कोर 750 से अधिक होता है, उन्हें जल्द और आसानी से कम दरों पर लोन मिल जाता है. ऐसे में इस स्कोर के 750 से नीचे जाने पर आपको इसे बेहतर करने के तरीके अपनाने चाहिए. अपने Credit Score को 750 से ऊपर बनाए रखने के लिए भी इन तरीकों को अपना सकते हैं.
इन तरीकों से बना सकते हैं Cibil Score को बेहतर
- मासिक किस्त की डेडलाइन का रखें ख्याल: आपने घर या गाड़ी के लिए कोई लोन लिया हुआ है तो ईएमआई की आखिरी तारीख कभी न भूलें. इसके अलावा अपने क्रेडिट कार्ड बिल के पेमेंट की भी डेडलाइन को कभी मिस न करें. इन्हें मिस करते हैं तो क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
- यूटिलाइजेशन रेट का रखें ध्यान: यूटिलाइजेशन रेट का मतलब है कि आपको जो क्रेडिट लिमिट मिली हुई है, उसका आप किस हद तक उपयोग करते हैं. आमतौर पर जिनका क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेट 30-40 फीसदी से कम होता है, उन्हें आसानी से लोन मिलता है. इसे ऐसे समझें कि आपकी कर्ज सीमा 1 लाख रुपये है और आपने 30 हजार का कर्ज लिया है तो यूटिलाइजेशन रेट 30 फीसदी होगा. ध्यान रहे कि अगर आपके पास एक से अधिक क्रेडिट कार्ड है तो सभी की लिमिट के हिसाब से यूटिलाइजेशन रेट को कैलकुलेट किया जाता है.
- बार-बार न बढ़ाएं कार्ड लिमिट: आमतौर पर लोग किसी महीने में अधिक खर्च होने के चलते क्रेडिट कार्ड की लिमिट बढ़वाते हैं. बढ़ते खर्च के चलते बार-बार लिमिट बढ़वाने का असर क्रेडिट स्कोर पर भी पड़ता है. क्रेडिट स्कोर को बेहतर बनाए रखने के लिए जरूरी है कि अपने लिमिट को बार-बार बढ़वाने की बजाय अपने खर्च को संतुलित करें.
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- पूरा लोन चुकता करने की बजाय सेटलमेंट का नकारात्मक असर: क्रेडिट हिस्ट्री में पुराने सभी लोन का जिक्र होता है. अगर आपने पुराने सभी लोन चुकाए हैं तो क्रेडिट स्कोर बेहतर होगा लेकिन इसके विपरीत इसे सेटलमेंट किया है तो इसका नकारात्मक असर पड़ता है. लोन बंद करने का अर्थ है कि आपने लोन की सभी किश्तें चुकाई हैं जबकि लोन सेटलमेंट का अर्थ है कि कर्ज रिकवरी एजेंट ने शेष बचे हुए लोन को माफ कर दिया है.
- क्रेडिट हिस्ट्री न हो तो कमाई व रीपेमेंट क्षमता की बड़ी भूमिका: जिन्होंने कभी लोन लिया हुआ है, उनकी एक क्रेडिट हिस्ट्री होती है और इसके आधार पर आगे लोन के आवेदनों पर विचार होता है. हालांकि अगर पहले कभी लोन नहीं लिया है तो क्रेडिट हिस्ट्री न होने की दशा में यह नहीं मानना चाहिए कि आसानी से लोन मिल जाएगा. इसकी बजाय वित्तीय संस्थान कमाई और रीपेमेंट क्षमता के आधार पर लोन आवेदनों पर फैसला करते हैं.