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iPhone EMI trap: ईएमआई पर आईफोन 17 लेना आसान लग रहा है? लेकिन जेब पर पड़ सकता है भारी

iPhone 17 EMI पर लेना आसान लग सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि समय के साथ घटती फोन की वैल्यू और लंबे समय तक जेब पर EMI भरने का बोझ आईफोन लवर्स के लिए ऐपल डिवाइस का मजा फीका कर सकता है.

iPhone 17 EMI पर लेना आसान लग सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि समय के साथ घटती फोन की वैल्यू और लंबे समय तक जेब पर EMI भरने का बोझ आईफोन लवर्स के लिए ऐपल डिवाइस का मजा फीका कर सकता है.

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Parth Parikh
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iPhone 17 EMI Trap

ज्यादातर लोग EMI को आसान समाधान मान लेते हैं और सोचते हैं कि धीरे-धीरे चुका देंगे. लेकिन हकीकत में यह भरोसा कई बार लंबे बोझ में बदल जाता है. (AI Image: Perplexity)

हर दिन सोशल मीडिया पर iPhone 17 की पोस्ट्स की भरमार है. इन्फ्लुएंसर्स Pro Max मॉडल दिखा रहे हैं, फीचर्स और नए रंगों की बातें कर रहे हैं, जैसे इस फोन का मालिक होना किसी तरह का स्टेटस सिंबल बन गया हो. लोग पहले से ही सोचने लगे हैं कि इसे आने से पहले कैसे खरीदा जाए, कैसे पैसा जुटाया जाए.

भारत में बेस iPhone 17 की कीमत 82,900 रुपये से शुरू है. iPhone 17 Pro की कीमत 1,34,900 रुपये है. दोनों मॉडल से महंगा Pro Max 1,49,900 रुपये की कीमत पर बाजार में उपलब्ध है जबकि बिल्कुल नए आईफोन iPhone Air को 1,19,900 रुपये की कीमत पर खरीदा जा सकेगा.

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दोस्तों से बात करने पर पता चलता है कि बहुत लोग इस फोन के "प्रीमियम" फील के लिए उत्साहित हैं. हालांकि Pro Max सबके लिए नहीं है, पर iPhone 17 और iPhone Air जैसे मॉडल आम लोगों को लग्जरी का अहसास देते हैं वो भी बिना पूरी तरह ‘एलीट’ क्लास में जाए. लेकिन इन मॉडलों के लिए भी सोचना पड़ता है कि आखिर पेमेंट कैसे होगा.

यहीं पर असली मुश्किल शुरू होती है. भारत में बड़ी आबादी की मंथली कमाई इस फोन की कीमत से कहीं कम है. आंकड़े बताते हैं कि मिडिल क्लास इनकमवाले लोगों के लिए iPhone की कीमत अक्सर पूरे महीने की तनख्वाह से भी ज्यादा बैठती है. जबकि अमेरिका में यही फोन वहां की आय के हिसाब से कहीं सस्ता पड़ता है.

अगर किसी की सैलरी 40,000 या 50,000 रुपये है और फोन की कीमत 82,900 रुपये या उससे ऊपर है, तो इसका मतलब है बजट को खींचना पड़ेगा. ज्यादातर लोग EMI को आसान समाधान मान लेते हैं और सोचते हैं कि धीरे-धीरे चुका देंगे. लेकिन हकीकत में यह भरोसा कई बार लंबे बोझ में बदल जाता है.

iPhone: संपत्ति कब, कर्ज कब?

आजकल कई लोग तर्क देते हैं कि EMI पर iPhone लेना एक तरह का निवेश है. और सच कहूँ तो कुछ मामलों में यह सही भी है.

मान लीजिए आप शादी के फ़ोटोग्राफ़र हैं, यूट्यूबर हैं, इंस्टाग्राम क्रिएटर हैं या फिर पत्रकार हैं—जहाँ फोन का कैमरा, एडिटिंग और फीचर्स आपके रोज़गार का हिस्सा हैं. ऐसे प्रोफेशनल्स के लिए iPhone सिर्फ एक गैजेट नहीं, बल्कि “प्रोडक्शन टूल” है. जिस तरह दो लाख का कैमरा असाइनमेंट से अपनी लागत वसूल कर लेता है, उसी तरह iPhone भी उनके लिए कमाई का जरिया है. यहाँ फोन खर्च नहीं, संपत्ति है.

लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है.

ज्यादातर लोग जो नया iPhone खरीदते हैं, वे उससे कोई कमाई नहीं करते. उनके लिए यह फोन सिर्फ कॉल करने, सोशल मीडिया देखने, स्ट्रीमिंग या फिर फैमिली एल्बम तक सीमित तस्वीरें खींचने का जरिया है. ऐसे में ₹1.5 लाख का iPhone कोई निवेश नहीं बल्कि लक्ज़री है—वो भी कर्ज पर खरीदी गई. फोन की रीसेल वैल्यू दो साल में आधी रह जाएगी, लेकिन EMI हर महीने बैंक खाते से कटती रहेगी.

सबसे बड़ी गलती लोग यही करते हैं कि EMI को “बेहद आसान” समझ लेते हैं. कहते हैं—“बस 6,000 रुपये महीना ही तो है.” पर हकीकत यह है कि ये 6,000 रुपये किसी ऐसी चीज़ पर खर्च हो रहे हैं जो न तो आपकी आमदनी बढ़ाती है और न ही संपत्ति. उल्टा, यह तेजी से कीमत खोने वाला प्रोडक्ट है. EMI आपके लिए धन नहीं बनाती, बल्कि आपकी कमाई को विक्रेता और बैंक तक पहुँचा देती है.

मैंने देखा है कि कई युवा प्रोफेशनल अपनी सैलरी का 20 से 25% सिर्फ फोन की EMI में झोंक देते हैं. वे इसे “कॉन्फिडेंस” का जरिया बताते हैं—कहते हैं कि मीटिंग में iPhone से इम्प्रेशन अच्छा पड़ता है. हो सकता है इसमें कुछ सच्चाई हो. लेकिन अगर यह कॉन्फिडेंस आपकी बचत, बीमा या निवेश को खा जाए, तो यह बहुत महंगा सौदा है.

सच्चाई यही है: अगर फोन से सीधी कमाई नहीं हो रही है, तो उसकी EMI निवेश नहीं, बोझ है.

EMI जो फोन से भी लंबी चलती है

मैंने कई बार देखा है कि iPhone की EMI उस फोन की चमक-दमक से कहीं ज्यादा देर तक चलती है. मान लीजिए कोई शख्स ₹1.5 लाख का iPhone 17 Pro Max लेता है और उसे 24 महीने की EMI पर खरीदता है. हर महीने लगभग ₹6,500 से ₹7,000 देना शुरू में आसान लगता है. लेकिन दिक्कत यह है कि फोन की कीमत और वैल्यू इतनी देर तक टिकती ही नहीं.

रीसेल मार्केट के आंकड़े बताते हैं कि iPhone पहले ही साल में अपनी आधी कीमत खो देता है और दो साल में दो-तिहाई तक वैल्यू गिर जाती है. यानी जो फोन आज ₹1.5 लाख में खरीदा, दो साल बाद उसकी कीमत शायद ₹50,000 भी न रहे. और अगर बीच में बेचने की कोशिश की तो मिलने वाले पैसे आपकी बची हुई EMI तक कवर नहीं करेंगे. मैंने कई लोगों को देखा है कि वे नया मॉडल खरीदने के लिए पुराना फोन बेच देते हैं, लेकिन पुराने फोन की EMI अभी भी चुकाते रहते हैं—यही असली संक कॉस्ट है, यानी ऐसी चीज़ पर पैसे देना जो अब आपके पास है ही नहीं.

बोझ तब और भारी लगता है जब इसे आमदनी से जोड़कर देखा जाए.

अमेरिका में औसत मासिक वेतन लगभग ₹3.5 लाख है. वहीं भारत में औसत मासिक वेतन करीब ₹33,000. अब सोचिए, ₹82,900 का iPhone 17 भारत में किसी की पूरी महीने की सैलरी से भी ज्यादा बैठता है. जबकि अमेरिका में यही फोन औसतन सैलरी का सिर्फ 7% है. चीन और ब्रिटेन जैसे देशों में यह बोझ और भी कम है. यही वजह है कि भारत में EMI का सहारा लेना मजबूरी जैसा लगता है. लेकिन असली खतरा यहीं से शुरू होता है.

घर या गाड़ी पर लिया गया कर्ज कम से कम सालों तक कोई उपयोगिता और संपत्ति की वैल्यू देता है. लेकिन iPhone ऐसा प्रोडक्ट है जो सबसे तेज़ी से वैल्यू खोता है. यह एक फास्ट-डिप्रिशिएटिंग लाइबिलिटी है.

मैंने परिवारों को देखा है जो इस EMI को चुकाने के लिए खाने-पीने के खर्च काटते हैं, बीमा की किस्तें टालते हैं, SIP रोक देते हैं. सिर्फ इसलिए कि फोन की किस्त समय पर जाए—वह फोन जो बाजार में हर साल “पुराना” घोषित हो जाता है.

यह कोई निवेश नहीं है. यह सिर्फ कर्ज पर खरीदी गई खपत (Consumption Debt) है. और यह अक्सर जेब पर नहीं, ज़िंदगी पर भी निशान छोड़ती है.

iPhone का “वाइब” महंगा पड़ता है

मैंने इतने लोग इस चक्र में फँसते देखे हैं कि अब अंदाज़ा है, इसका अंत कहाँ होता है.

शुरुआत में जोश होता है—चमचमाता नया बॉक्स, अनबॉक्सिंग वीडियो, एप्पल के लोगो की चमक. लेकिन वक्त गुजरते ही फोन पर खरोंचें पड़ जाती हैं, बैटरी ढीली पड़ती है और नया मॉडल लॉन्च हो जाता है. जो चीज़ नहीं बदलती, वह है EMI. हर महीने आपके खाते से पैसा निकालती रहती है, उस उत्साह के जाने के बाद भी.

अगर आप प्रोफेशनल हैं और वाकई इस डिवाइस से कमाई करते हैं, तो ठीक है—यह अपनी लागत वसूल सकता है. लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो कदम बढ़ाने से पहले ज़रा ठहरिए. सिर्फ फोन के लिए अपनी निवेश योजनाएँ टालना, बीमा प्रीमियम रोकना या हर महीने बजट खींचना समझदारी नहीं है. यही पैसे म्यूचुअल फंड SIP, इंश्योरेंस या किसी असली लक्ष्य की बचत में लग सकते हैं. वे आपका भविष्य बनाते हैं. जबकि एक घटती कीमत वाले फोन पर EMI सिर्फ जेब खाली करती है.

मैंने लोगों को बाद में पछताते देखा है. कहते हैं—“रुक जाना चाहिए था,” या “सस्ता मॉडल लेना चाहिए था.” यह पछतावा तब आता है जब समझ में आता है कि असली कीमत फोन नहीं, बल्कि वह वित्तीय सांस लेने की जगह थी जिसे उन्होंने सालों तक खो दिया.

इसलिए मेरी साफ़ सलाह है—
iPhone खरीदिए अगर आप वाकई इसे पसंद करते हैं और बिना अपनी बचत को चोट पहुँचाए एकमुश्त पेमेंट कर सकते हैं. लेकिन 24 EMI में अपनी सैलरी को खींच-खींचकर इसे लेने से बचिए. फोन का आकर्षण उतर जाएगा, पर कर्ज बना रहेगा. मैंने इसके नुकसान करीब से देखे हैं, और यक़ीन मानिए, यह उस “लेटेस्ट मॉडल” से चूक जाने से कहीं बड़ा नुकसान है.

डिसक्लेमर

नोट : इस लेख में इस्तेमाल की गई जानकारी फंड रिपोर्ट्स, इंडेक्स हिस्ट्री और पब्लिक डिस्क्लोज़र से ली गई है. विश्लेषण और उदाहरणों के लिए कुछ मान्यताएँ हमारी अपनी हैं.

इस लेख का उद्देश्य केवल निवेश से जुड़े विचार, आंकड़े और दृष्टिकोण साझा करना है. यह किसी भी तरह की निवेश सलाह (Investment Advice) नहीं है. अगर आप किसी निवेश निर्णय पर अमल करना चाहते हैं, तो किसी योग्य वित्तीय सलाहकार से परामर्श लेना बेहद ज़रूरी है. यह लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है. इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, और इनका उनके वर्तमान या पूर्व नियोक्ता से कोई संबंध नहीं है.

पार्थ परिख को वित्त और रिसर्च क्षेत्र में दस साल से अधिक का अनुभव है. वे फिलहाल Finsire में ग्रोथ और कंटेंट स्ट्रैटेजी का नेतृत्व करते हैं. यहाँ वे निवेशक शिक्षा की पहल और प्रोडक्ट्स जैसे Loan Against Mutual Funds (LAMF) और बैंकों व फिनटेक कंपनियों के लिए financial data solutions पर काम करते हैं.

Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy.

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