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NCD India: कंपनियां कर्ज जुटाने के लिए एनसीडी जारी करती हैं जिसे इक्विटी में नहीं बदला जा सकता है. (file image)
Non Convertible Debenture: अगर आप अपने निवेश पर ट्रेडिशनल फिक्स्ड इनकम विकल्पों जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट, नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट की तुलना में ज्यादा ब्याज कमाना चाहते हैं तो आपके लिए नॉन-कनवर्टेबल डिबेंचर (non-convertible debentures) एक विकल्प है. पिछले कुछ समय से कंपनियों में एनसीडी (NCD) से पैसा जुटाने का चलन बढ़ा है, जिसके चलते लगातार कंपनियां NCD जारी कर रही हैं और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए 5 से 10 साल की स्कीम पर 8.5 फीसदी से 9.5 फीसदी सालाना तक रिटर्न दे रही हैं. सवाल यह है कि क्या इसमें निवेश एफडी या एनएससी की तरह सुरक्षित है?
क्या है NCD?
एनसीडी कंपनियों के लिए बाजार से पैसे जुटाने का जरिया है. जिस तरह से कंपनियां आईपीओ के जरिए पैसे जुटाती हैं, उसी तरह से एनसीडी से भी पैसे जुटाती हैं. कोई कंपनी जब NCD के जरिए पैसा जुटाती है तो इसे कर्ज (Debt) की तरह लेती है. इसलिए कंपनी को लिए गए कर्ज पर ब्याज का भुगतान करना होता है. NCD की एक फिक्स्ड मैच्योरिटी डेट होती है और इसमें निवेशकों को एक निश्चित ब्याज दर के साथ रिटर्न मिलता है. उदाहरण के तौर पर कंपनी ने मसलन कंपनी ने NCD जारी की है, जिसमें आप निवेश करते हैं. आपका जो पैसा इसमें निवेश होता है, उस पर कंपनी आपको तय रेट पर ब्याज देती है. कंपनी को पैसे की जरूरत होती है, इसलिए आपको दिया गया ब्याज भी कुछ ज्यादा होता है. NCD में अलग अलग मैच्योरिटी पीरियड होता है और इसके लिए अलग अलग ब्याज दर तय होता है.
सिक्योर्ड और अनसिक्योर्ड NCD
NCD दो तरह की होती हैं. पहला सिक्योर्ड एनसीडी, जिसमें कंपनी की सिक्योरिटी होती है. यानी अगर कंपनी निवेशकों को उनका पैसा पेमेंट नहीं कर पाती है, तो निवेशक कंपनी के एसेट को बेचकर अपना पैसा वसूल सकते हैं.
एनसीडी का दूसरा प्रकार अनसिक्योर्ड एनसीडी है. इसमें कंपनी की सिक्योरिटी नहीं होती है. यानी अगर कंपनी निवेशकों को उनका पैसा लौटा नहीं पाती है तो ऐसे में निवेशकों के लिए अपना पैसा वापस लेना मुश्किल हो सकता है. सिक्योर्ड एनसीडी के मुकाबले अनसिक्योर्ड एनसीडी में जोखिम ज्यादा होता है.
NCD की खासियत
- कॉरपोरेट कंपनियां कर्ज जुटाने के लिए एनसीडी जारी करती हैं जिसे इक्विटी में नहीं बदला जा सकता है.
- इसका मेच्योरिटी डेट पहले से तय होता है और ब्याज का भुगतान मासिक, छमाही व सालाना आधार पर का मेच्योरिटी के समय में एकमुश्त किया जाता है. इसमें 10 साल तक के लिए पैसे लगाए जा सकते हैं.
- अधिकतर एनसीडी 1000 रुपये के मल्टीपल में जारी होती हैं.
- सभी एनसीडी एक्सचेंज पर लिस्ट होती हैं तो निवेशक सीधे कंपनी के अलावा सेकंडरी मार्केट के जरिए भी निवेश कर सकते हैं.
जितनी बेहतर रेटिंग, उतनी सुरक्षा
कंपनी द्वारा जारी नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर पर इकरा और क्रिसिल या दूसरी रेटिंग एजेंसियां रिसर्च के आधार पर रेटिंग जारी करती हैं. किसी कंपनी की रेटिंग अच्छी है तो वह कमजोर रेटिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प है. हालांकि रेटिंग इस बात की गारंटी नहीं है कि वह कंपनी आगे अच्छा परफॉर्म करेगी ही. रेटिंग एजेंसियों द्वारा कई तरह की रेटिंग जारी की जाती है.
- AAA/Stable
- AA+/Stable
- A+/Stable
- A/Stable
- AA-/Negative
- BBB-/Stable
किन बातों का रखें ध्यान
- किसी भी कंपनी के NCD में निवेश के पहले उस कंपनी की स्ट्रेंथ समझ लें. उस कंपनी के बिजनेस मॉडल को समझें कि वह आगे कितना सस्टेन करने वाला है. कंपनी का प्रोडक्ट पोर्टफोलियो कितना मजबूत है और उस कंपनी में इनोवेश की कितनी क्षमता है. उसका बिजेस डाइवर्सिफाइड है या नहीं. अगर कंपनी का बिजनेस डाइवर्सिफाइड है, तो निवेशकों के लिए ऐसी कंपनियों में जोखिम कम होता है.
- NCD में पैसे लगाने से पहले पता कर लें कि एनसीडी सिक्योर्ड है या नहीं. सिक्योर्ड एनसीडी में निवेश करते हैं तो निवेशकों को कंपनी की संपत्ति बेचकर पैसे वसूलने का अधिकार मिल जाता है.
- एनसीडी में निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट,1961 के सेक्शन 80सी के तहत छूट नहीं मिलती है. एक साल से पहले बिक्री पर इनकम टैक्स स्लैब के मुताबिक शॉर्ट टर्म कैपिटल गैन टैक्स और इसके बाद बिक्री पर इंडेक्सेशन बेनेफिट के साथ 20 फीसदी का लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स चुकाना होता है. इसके अलावा एनसीडी पर मिलने वाले ब्याज पर एफडी के समान ही टैक्स देय होता है.