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कई कर्मियों ने एनपीएस के विरोध में इसे नहीं अपनाया है लेकिन अगर उनके पास कोई अन्य रिटायरमेंट प्लान नहीं है तो एनपीएस जरूर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं होने की स्थिति में रिटायरमेंट के बाद उन्हें वित्तीय समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं.
OPS vs NPS: अधिकतर सरकारी कर्मचारी करीब 17 साल पहले वर्ष 2004 में नेशनल पेंशन सिस्टम लागू होने के बाद से ही पुरानी पेंशन व्यवस्था (ओपीएस) बहाल करने को लेकर मुहिम चला रहे हैं. उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के अधिकतर कर्मियों ने नई पेंशन व्यवस्था के विरोध में इसे अपनाया ही नहीं. पुरानी पेंशन व्यवस्था के स्थान पर लाई गई नई पेंशन व्यवस्था को नहीं चुनने पर कर्मियों को भविष्य में बहुत आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह जानना बहुत जरूरी है कि दोनों पेंशन सिस्टम में किस तरह फर्क है और नई पेंशन व्यवस्था में सरकारी कर्मियों को क्या फायदा मिलता है. एनपीएस किन परिस्थितियों में बेहतर रिटर्न दिला सकता है, इसकी जानकारी होना आवश्यक है.
पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए सरकारी कर्मी मानते हैं बेहतर
अधिकतर सरकारी कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था को इसलिए बेहतर मानते हैं क्योंकि यह उन्हें अधिक भरोसा उपलब्ध कराती है. जनवरी 2004 में एनपीएस लागू होने से पहले सरकारी कर्मी जब रिटायर होता था तो उसकी अंतिम सैलरी के 50 फीसदी हिस्से के बराबर उसकी पेंशन तय हो जाती थी. ओपीएस में 40 साल की नौकरी हो या 10 साल की, पेंशन की राशि अंतिम सैलरी से तय होती थी यानी यह डेफिनिट बेनिफिट स्कीम थी. इसके विपरीत एनपीएस डेफिनिट कांट्रिब्यूशन स्कीम है यानी कि इसमें पेंशन राशि इस पर निर्भर करती है कि नौकरी कितने साल किया गया है और एन्यूटी राशि कितनी है. एनपीएस के तहत एक निश्चित राशि हर महीने कंट्रीब्यूट की जाती है. रिटायर होने पर कुल रकम का 60 फीसदी एकमुश्त निकाल सकते हैं और शेष 40 फीसदी रकम से बीमा कंपनी का एन्यूटी प्लान खरीदना होता है जिस पर मिलने वाले ब्याज की राशि हर महीने पेंशन के रूप में दी जाती है.
इस मामले में एनपीएस है बेहतर
टैक्स और निवेश एक्सपर्ट बलवंत जैन के मुताबिक ओपीएस सुरक्षित विकल्प है लेकिन एनपीएस का पैसा इक्विटी में भी निवेश होता है जिसके चलते इसमें लंबे समय की सर्विस पीरियड के बाद रिटायर होने पर अधिक रिटर्न पाया जा सकता है. इसके अलावा जैन के मुताबिक एनपीएस टैक्स के दृष्टिकोण से बेहतर है क्योंकि एलआईसी प्रीमियम, पीपीएफ में निवेश इत्यादि के साथ मिलाकर एनपीएस कंट्रीब्यूशन पर कुल 1.5 लाख रुपये तक डिडक्शन का दावा किया जा सकता है और अतिरिक्त 50 हजार रुपये के डिडक्शन का भी दावा किया जा सकता है यानी 2 लाख रुपये तक के एनपीएस कंट्रीब्यूशन का दावा किया जा सकता है. हालांकि एक बात ध्यान रखना जरूरी है कि अगर किसी वर्ष एंप्लॉयर 6.5 लाख रुपये से अधिक कंट्रीब्यूट करता है तो अतिरिक्त रकम को आय में जोड़ी जाती है और इस पर टैक्स चुकाना होता है.
कोई रिटायरमेंट प्लान नहीं है तो जरूर लें एनपीएस
एनपीएस में राज्य सरकार के कर्मचारी के मूल वेतन और डीए का 10 फीसदी कटता है और इतनी ही राशि राज्य सरकार भी देती है. हालांकि केंद्रीय कर्मियों के मामले में केंद्र सरकार 14 फीसदी का योगदान करती है. कई कर्मियों ने एनपीएस के विरोध में इसे नहीं अपनाया है लेकिन अगर उनके पास कोई अन्य रिटायरमेंट प्लान नहीं है तो एनपीएस जरूर लेना चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं होने की स्थिति में रिटायरमेंट के बाद उन्हें वित्तीय समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं. अगर किसी को 25 साल की उम्र में सरकारी नौकरी मिल गई है तो अगले 35 साल तक एनपीएस में योगदान पर अच्छी-खासी राशि का फंड तैयार हो जाएगा और इस कंट्रीब्यूशन से टैक्स डिडक्शन के फायदे के साथ बेहतर रिटर्न पा सकते हैं.