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Overnight Funds: ओवरनाइट फंड एक डेट स्कीम है जो एक दिन में मैच्योर होने वाले बॉन्ड में निवेश करता है. (File photo)
Investment Tips in Overnight Funds: लिक्विडिटी की बात आती है तो लिक्विड फंड की चर्चा बहुत ज्यादा होती है. असल में 3 महीने में मैच्योर होने वाली इन स्कीम में लिक्विडिटी आसान है. लेकिन इस मामले में लिक्विड फंड से भी आगे ओवरनाइट फंड आते हैं, जहां स्कीम की मैच्योरिटी महज एक साल होती है. इन फंड में बाजार के उतार चढ़ाव के जोखिम से निवेशकों को आमतौर पर सुरक्षा मिलती है. इन स्कीमों पर ब्याज दरों में बदलाव और किसी प्रतिभूति के डिफॉल्ट का फर्क नहीं पड़ता है. यह एक तरह का डेट म्यूचुअल फंड है.
क्या होते हैं ओवरनाइट फंड
म्यूचुअल फंड की कई कैटेगरी हैं. ओवरनाइट फंड उनमें से एक है. ये ओपन-एंडेड डेट स्कीमें हैं. ये फंड एक दिन में मैच्योर होने वाली प्रतिभूतियों में पैसा लगाते हैं. इसका मतलब है कि इन स्कीमों में फंड मैनेजर रोजाना आधार पर प्रतिभूतियों को खरीदते हैं. ये प्रतिभूतियां एक दिन में मैच्योर हो जाती हैं. फिर स्कीम के फंड को दोबारा नई प्रतिभूतियों को खरीदने में लगाया जाता है. निवेश के इस तरह के दिशानिर्देश इन्हें काफी लिक्विड बना देते हैं. सेबी ने सभी तरह के म्यूचुअल फंडों के लिए निवेश के दिशानिर्देश तय कर रखे हैं.
कैसे काम करता है Overnight Fund
यह एक डेट फंड फंड है जो एक दिन में मैच्योर होने वाले बॉन्ड में निवेश करता है. हर कारोबारी दिन की शुरुआत में बॉन्ड खरीदे जाते हैं जो अगले कारोबारी दिन मेच्योर होते हैं. इसमें म्यूचुअल फंड हाउस किसी कारोबारी दिन की शुरुआत में निवेशकों से पैसे लेता है और फिर इसे बैंक या बड़ी कंपनियों को कर्ज पर देता है या उसमें निवेश करता है. बैंक या कंपनी महज एक दिन में ही पैसे को ब्याज समेत वापस करने का वादा करती है. अगर कोई बॉन्ड एक कारोबारी दिन में मैच्योर होता है तो अगले दिन आरबीआई द्वारा किए गए बदलाव का उस पर असर नहीं होता है. इस दौरान बॉन्ड जारी करने वाले की क्रेडिट रेटिंग बदलती है तो भी कीमत प्रभावित नहीं होती है.
असल में सरकार या बड़े निगमों को एक दिन के लिए अतिरिक्त कैश की जरूरत होती है, इसलिए वे उधार लेते हैं. अगले दिन अगर उनके पास अतिरिक्त कैश हो जाता है तो वे अन्य कंपनियों को उधार देते हैं, नहीं तो फिर से ओवरनाइट फंड के जरिए उधार लेते हैं.
1 साल में बेस्ट रिटर्न वाले फंड
बैंक आफ इंडिया ओवनाइट फंड: 6.28 फीसदी
एक्सिस ओवरनाइट फंड: 6.23 फीसदी
मिरे एसेट ओवरनाइट फंड: 6.23 फीसदी
डीएसपी ओवरनाइट फंड: 6.22 फीसदी
निप्पॉन इंडिया ओवरनाइट फंड: 6.22 फीसदी
ओवरनाइट फंड: क्यों लगाएं पैसे
ओवरनाइट फंड में लिक्विडिटी बहुत बेहतर है, ये हाई लिक्विड फंड होते हैं. इसमें जब जरूरत हो तब पैसे निकाल सकते हैं. इसमें निवेशक पर रिस्क बहुत कम होता है क्योंकि लेंडिंग पीरियड कम होने के चलते क्रेडिट या डिफॉल्ट से जुड़ा रिस्क नहीं होता है. इसमें निवेश बहुत कम वोलेटाइल होता है.
क्यों कम होता है जोखिम
स्कीम के तहत 100 फीसदी रकम कोलैटरलाइज्ड बॉरोइंग और लेंडिंग ऑब्लिगेशन (CBLO) मार्केट में निवेश किया जाता है, जिससे रिस्क बहुत कम हो जाता है. CBLO इंस्टूमेंट में मेच्योरिटी 1 दिन की हो सकती है. इससे लिक्विडिटी की समस्या भी नहीं है. हालांकि 1 दिन मेच्योरिटी होने से इनमें रिटर्न बेहद कम है, लेकिन बेहद ही सुरक्षित.
क्यों नहीं लगाना चाहिए पैसा?
रिटेल निवेशकों के लिए निगेटिवच यह है कि ओवरनाइट फंड में रिटर्न बहुत ज्यादा नहीं मिलता है. ऐसे में हाई रिटर्न चाहते हैं और कुछ रिस्क उठा सकते हैं तो ओवरनाइट की बजाय कोई और विकल्प देख सकते हैं.
टैक्स के क्या हैं नियम
ओवरनाइट फंड डेट फंड्स की कैटेगरी में आता है तो इस पर टैक्सेशन भी डेट फंड के हिसाब से लगेगा. इसका मतलब हुआ कि अगर निवेश 36 महीने से कम तक होल्ड करते हैं तो जो मुनाफा होगा, उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (STCG) माना जाएगा और इस पर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा. वहीं अगर 36 महीने से अधिक समय तक निवेश होल्ड करते हैं तो मुनाफा लांग टर्म कैपिटल गेन्स होगा और इस पर इंडेक्सेशन बेनेफिट के साथ 20 फीसदी की दर से टैक्स चुकाना होगा. बिना इंडेक्सेशन बेनेफिट्स के एलटीसीजी पर 10 फीसदी टैक्स चुकाना होगा.
किनके लिए बेस्ट विकल्प
ये स्कीम उन निवेशकों के लिए बेहतर विकल्प हैं जो छोटी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं. कपनियां इस तरह की स्कीम में करोड़ों रुपये लगाती हैं. कारण है कि बड़ी रकम के साथ थोड़ा भी उतार-चढ़ाव काफी असर डालता है. हालांकि, खुदरा निवेशकों के लिए ओवरनाइट फंडों में अतिरिक्त रिटर्न कमा पाना मुश्किल होता है.
(डिस्क्लेमर: फाइनेंशियल एक्सप्रेस डिजिटल हिंदी किसी भी तरह के निवेश की सलाह नहीं देता है. निवेश करने से पहले स्वयं पड़ताल करें या अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श करें.)