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PPF vs EPF vs GPF: ये हैं पॉपुलर रिटायरमेंट प्‍लान, हर स्‍कीम के अपने हैं फायदे, निवेश के पहले समझ लें अंतर

PPF, EPF, GPF में निवेश पर आपको ज्यादा ब्याज के साथ ही एक तय समय सीमा के बाद निकासी का विकल्प भी मिलता है, जिसमें आप अपनी जरूरत के हिसाब से पैसा निकाल सकते हैं.

PPF, EPF, GPF में निवेश पर आपको ज्यादा ब्याज के साथ ही एक तय समय सीमा के बाद निकासी का विकल्प भी मिलता है, जिसमें आप अपनी जरूरत के हिसाब से पैसा निकाल सकते हैं.

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FE Hindi Desk
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पब्लिक प्रोविडेंट फंड, एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड और जनरल प्रोविडेंट फंड की ये हैं खासियत और उससे जुड़े फायदे.

PPF vs EPF vs GPF: अगर आप अपने लिए रिटायरमेंट प्लान खोज रहे हैं और मार्केट में मौजूद बहुत सारे प्लान्स को देखकर कन्फ्यूज हैं, तो आज हम आपको तीन बेस्ट विकल्पों के बारे में बता रहे हैं. पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF), एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड (EPF) और जनरल प्रोविडेंट फंड (GPF) पॉपुलर रिटायरमेंट प्लान हैं, इनमें निवेश से पहले आपको इनके बीच के अंतर और फायदों के बारे में जान लेना चाहिए. 

पब्लिक प्रोविडेंट फंड (Public Provident Fund)

पब्लिक प्रोविडेंट फंड को पीपीएफ कहा जाता है. जैसा कि इसके नाम से ही साफ है कि यह सभी लोगों जैसे सर्विसमैन, कारोबारी, बिजनेसमैन और सेल्फ एंप्लॉयड व्यक्तिओं लिए उपलब्ध है. इस पॉलिसी के तहत कोई भी पैन कार्डधारक व्यक्ति अपना और अपने नाबालिग बच्चे का पीपीएफ अकाउंट खोल सकता है. इस अकाउंट में एक फाइनेंशियल ईयर में 1.5 लाख रुपये तक जमा कराये जा सकते हैं. पीपीएफ अकाउंट की मैच्योरिटी की अवधि 15 साल होती है, जिसको मैच्योरिटी के बाद कितनी बार भी 5 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.

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बेनिफिट्स (Benefits)

पीपीएफ अकाउंट में मिलने वाली ब्याज दर का निर्धारण सरकार द्वारा हर तिमाही के आधार पर किया जाता है. इसमें निवेश करने पर आपको फिक्स्ड डिपॉजिट से ज्यादा ब्याज मिलती है. सॉवरेन गारंटी पीपीएफ अकाउंट में जमा राशि को और ज्यादा सुरक्षित बना देती है.

मैच्योरिटी के बाद अकाउंट होल्डर अपने राशि को एकमुश्त निकाल सकता है, या फिर वह इसे 5 साल की अवधि के लिए बढ़ा सकता है. 

पीपीएफ अकाउंट खुलने के 3 से 6 सालों के बीच में अकाउंट होल्डर अपनी जमा के आधार पर लोन ले सकता है. साथ ही 6 साल पूरे होने के बाद वह पीपीएफ अकाउंट में से कुछ राशि निकलवा सकता है. 

टैक्सेशन (Taxation)

पीपीएफ अकाउंट होल्डर को टैक्स बेनिफिट्स मिलते हैं. पीपीएफ अकाउंट के मैच्योर होने पर मिलने वाली रकम आयकर अधिनियम की धारा 80C के तहत टैक्स फ्री होती है.

एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड (Employees’ Provident Fund)

एंप्लॉय प्रोविडेंट फंड सिर्फ कर्मचारियों को कंपनी द्वारा दिया जाता है. प्राइवेट सेक्टर की वे कंपनियां जिनमें 20 से ज्यादा कर्मचारी है और उनकी बेसिक सैलरी 15 हजार से ज्यादा है, तो कंपनी को उन्हें ईपीएफ के तहत मिलने वाली सुविधाएं देना अनिवार्य है. 15 हजार से ज्यादा की बेसिक सैलरी वाले एंप्लॉय के लिए यह एक विकल्प के तौर पर है.

इस स्कीम के तहत कर्मचारी को अपनी बेसिक सैलरी का 12 प्रतिशत हिस्सा ईपीएफ अकाउंट में अपने कॉन्ट्रिब्यूशन के तौर पर जमा कराना होता है, जबकि कंपनी को भी इतनी ही राशि का कॉन्ट्रिब्यूशन करना होता है. कर्मचारी के पास अपने कॉन्ट्रिब्यूशन को बढ़ाने का विकल्प होता है.

बेनिफिट्स (Benefits)

ईपीएफ के मुख्य रूप से तीन फायदें हैं, पहला रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी के रूप में एकमुश्त पीएफ की निकासी, दूसरा कर्मचारी पेंशन योजना के तहत नियमित पेंशन और तीसरा व आखिरी कर्मचारी को मिलने वाला लाइफ इंश्योरेंस कवर.

ईपीएफ में कर्मचारी द्वारा दिया गया 12 फीसदी कॉन्ट्रिब्यूशन उसके ईपीएफ अकाउंट में जमा हो जाता है, तो वहीं कंपनी द्वारा दिये जाने वाले 12 फीसदी कॉन्ट्रिब्यूशन में से  8.33 फीसदी ईपीएस और बाकि बचा 3.67 फीसदी ईडीएलआई में जमा होता है.

रिटारमेंट के समय पर कर्मचारियों को ग्रेच्युटी के रूप में एक बड़ी रकम मिलती है. साथ ही रिटायरमेंट के बाद उसके खर्चे के लिए नियमित पेंशन का भुगतान किया जाता है और कंपनी में काम करते समय किसी घटना या हादसे में मृत्यु हो जाने पर कर्मचारी के परिवार को 7 लाख रुपये तक की आर्थिक मदद की जाती है. 

कर्मचारी घर बनाने, मेडिकल खर्च, बेटे या बेटी की शादी जैसे कामों के लिए अपने ईपीएफ अकाउंट से 6 सालों के बाद आंशिक राशि की निकासी कर सकता है. इसके लिए उसे ऑनलाइन अप्लाई करना होगा.  

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा हर साल सरकार से परामर्श के बाद ब्याज दर की घोषणा की जाती है. वर्तमान में यह दर पीपीएफ और जीपीएफ पर दी जाने वाली ब्याज दरों से अधिक है.

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टैक्सेशन (Taxation)

ईपीएफ में किया गया निवेश टैक्स फ्री है. इस स्कीम में कर्मचारियों को आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स बेनिफिट्स का लाभ मिलता है. पहले इस स्कीम पर मिलने वाला ब्याज पूरी तरह से टैक्स फ्री था, लेकिन पिछले फाइनेंशियल ईयर से सरकार द्वारा 2.5 लाख रुपये से अधिक के कर्मचारियों के कॉन्ट्रिब्यूशन पर मिलने वाले ब्याज को टैक्स के दायरे में लाया जा चुका है. 

जनरल प्रोविडेंट फंड (General Provident Fund)

जीपीएफ उन सरकारी कर्मचारियों को दिया जा रहा है, जिन्होंने 31 दिसंबर 2003 या उससे पहले जॉइनिंग की है. इन सभी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) के तहत पेंशन बेनिफिट्स दिये जा रहे हैं. ये कर्मचारी अपनी इच्छा के अनुसार कॉन्ट्रिब्यूशन कर सकते हैं. इनकी कॉन्ट्रिब्यूशन की न्यूनतम लिमिट 6 प्रतिशत और अधिकतम लिमिट 100 प्रतिशत है. 

इस स्कीम में सरकार की ओर से कोई कॉन्ट्रिब्यूशन नहीं दिया जाता है. इस स्कीम में सिर्फ कर्मचारी ही जीपीएफ में कॉन्ट्रिब्यूट करते हैं. जीपीएफ और पीपीएफ की कई मायनों में एक जैसे हैं. इनमें अंतर सिर्फ इतना है कि जीपीएफ आम जनता के लिए उपलब्ध नहीं है. जीपीएफ में सरकार ने अधिकतम लिमिट 5 लाख रुपये तय की है. 

बेनिफिट्स 

सरकारी फंड होने की वजह से जीपीएफ में निवेश पूरी तरह से सुरक्षित है और इसमें मिलने वाली ब्याज दर मौजूदा एफडी दरों से अधिक है. रिटायमेंट के समय में जीपीएफ में जमा रकम को एकमुश्त के रूप में निकाला जा सकता है. इसके साथ ही इसमें से आंशिक निकासी भी की जा सकती है. 

टैक्सेशन

GPF में कॉन्ट्रिब्यूशन पर आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत टैक्स बेनिफिट्स मिलते हैं. शुरूआत में इस स्कीम के तहत जमा राशि पर मिलने वाला ब्याज और मैच्योरिटी पर मिलने वाली रकम टैक्स फ्री थी, लेकिन हाल ही में सरकार ने एक फाइनेंशियल ईयर में 5 लाख रुपये से ज्यादा के कॉन्ट्रिब्यूशन पर मिलने वाले ब्याज को टैक्स के दायरे में शामिल किया है. 

(Article by Amitava Chakrabarty)

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