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Relation between Monsoon and Economy : इस बार सही वक्त पर दस्तक देने के बावजूद मॉनसून पिछड़ गया है. देश के कई हिस्सों में बारिश नहीं होने से खरीफ की बुवाई पिछड़ गई है. जाहिर है इससे फसलों की पैदावार में कमी आने की आशंका जताई रही है. जिस तरह मॉनसून देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है उसी तरह कॉरपोरेट कंपनियों से लेकर आम कंज्यूमर तक हर किसी की पर्सनल इनकम और सेविंग्स पर भी इसका गहरा असर पड़ता है. मॉनसून तो रूरल इकॉनोमी की रीढ़ ही है. खराब मॉनसून होने पर गांवों में एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, टू-व्हीलर्स, ट्रैक्टर और गोल्ड की खरीदारी काफी कम हो जाती है. शहरों में भी लोगों की पर्सनल इनकम, सेविंग और निवेश पर इसका गहरा असर पड़ता है.
पर्सनल सेविंग्स और इनकम पर असर
खराब मॉनसून यानी फसलों पर मार. कम पैदावार अनाज, फल-सब्जी और दूध जैसी रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजों के दाम बढ़ा देती है. महंगाई खास कर खुदरा महंगाई का बढ़ना आम उपभोक्ता की जेब हल्की कर देता है. कंज्यूमर के खर्च करने की ताकत घट जाती है. वह कम खर्च करता है और उसकी बचत और निवेश की क्षमता भी घट जाती है. महंगाई बढ़ने से आपके रिटर्न का मूल्य घट जाता है. एक लाख के एफडी पर छह फीसदी का ब्याज की वैल्यू 5 फीसदी महंगाई की तुलना में 6 फीसदी की महंगाई दर के दौर में कम हो जाती है. इसके साथ ही लोन की EMIका बोझ भी आप पर बढ़ जाता है क्योंकि महंगाई की वजह से आपकी परचेजिंग पावर घट जाती है. आपकी जेब में कम पैसे बचते हैं.
कंपनियों, बैंक और एनबीएफसी कंपनियों की कमाई पर असर
खराब मॉनसून की वजह से कृषि उत्पादकता घट जाती है. यानी रूरल इकनॉमी से जुड़े लोगों की कमाई में गिरावट आ जाती है. किसानों, कृषि मजदूरं से लेकर खाद और बीज कंपनियों की आय घट जाती है. इसका असर कंज्यूमर डिमांड पर पड़ता है. घटती कंज्यूमर डिमांड कंपनियों की कमाई पर चोट करती है. इससे एफएमसीजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल, टू-व्हीलर्स, ट्रैक्टर और गोल्ड की डिमांड में कमी आ जाती है.
भारत में हर साल 800 से 850 टन गोल्ड की खपत होती है.इस खपत में 60 फीसदी हिस्सेदारी ग्रामीण इलाकों की है. अच्छा मॉनसून गोल्ड खपत को बढ़ावा देता है. किसान संपत्ति के तौर पर गोल्ड खरीदते हैं. खराब मॉनसून की वजह से किसानों की कमाई घटती है. सोने की डिमांड भी घटती और किसान गोल्ड बेचते भी हैं.
कंपनियों के शेयरों में गिरावट और निवेशकों को घाटा
मानसून खराब होते ही ब्रोकरेज कंपनियां एफएमसीजी, ऑटो एंड इंजीनियरिंग, बैंकिंग, एनबीएफसी कंपनियों के शेयरों में निवेश से बचने की सलाह देते हैं. जाहिर इससे इन कंपनियों के शेयरों में गिरावट आने लगती है. शेयरों में गिरावट का मतलब यानी निवेशकों का नुकसान. खास कर रूरल, अर्द्धशहरी मार्केट में सक्रिय कंपनियों के शेयरों में गिरावट का दौर शुरू हो जाता है. फर्टिलाइजर, बीज, ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर गुड्स और फाइनेंस के शेयरों में गिरावट इसके शेयरों में निवेशकों को नुकसान पहुंचाता है.
साफ है कि मानसून का अर्थव्यवस्था पर चौतरफा असर होता है. देश की इकोनॉमी से लेकर आम उपभोक्ता के पर्सनल इनकम और सेविंग तक इससे प्रभावित होती है. इसलिए जब भी मानसून खराब होने की आशंका बढ़ने लगती है, अर्थव्यवस्था से जुड़े लगभग सभी सेक्टरों में चिंता दिखने लगती है. इसलिए कहा जाता है कि भारत का असली फाइनेंस मिनिस्टर मानसून है.