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भारतीय रिजर्व बैंक ने रिकरिंग ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस की प्रोसेसिंग के लिए समयसीमा को बढ़ा दिया है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने रिकरिंग ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस की प्रोसेसिंग के लिए समयसीमा को बढ़ा दिया है. आरबीआई ने रिकरिंग ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस पर ई-मैंडेट्स की प्रोसेसिंग के लिए अगस्त 2019 में एक फ्रेमवर्क जारी किया था. यह शुरुआत में कार्ड्स और वॉलेट्स के लिए लागू था, लेकिन इसे बाद में जनवरी 2020 में बढ़ाकर यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) ट्रांजैक्शंस कवर कर दिए गए थे.
आरबीआई ने बुधवार को एक बयान में कहा कि एडिशनल फैक्टर ऑफ ऑथेंटिकेशन (AFA) की जरूरत ने भारत में डिजिटल भुगतान को सुरक्षित बना दिया है.
फर्जी ट्रांजैक्शन से सुरक्षा देना मकसद
आरबीआई ने कहा कि ग्राहकों की सुविधा और रिकरिंग ऑनलाइन भुगतान के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए फ्रेमवर्क में रजिस्ट्रेशन और पहले ट्रांजैक्शन के दौरान AFA के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया गया था. इसमें आगे कहा गया है कि फ्रेमवर्क का प्राथमिक उद्देश्य ग्राहकों को फर्जी ट्रांजैक्शन से सुरक्षा देना और ग्राहकों की सुविधा को बढ़ाना था.
केंद्रीय बैंक ने कहा कि इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) से मिली 31 मार्च 2021 तक समय को बढ़ाने की प्रार्थना, जिससे बैंकों को माइग्रेशन पूरा करने में मदद मिल सके, के आधार पर रिजर्व बैंक ने दिसंबर 2020 में हितधारकों को 31 मार्च 2021 तक फ्रेमवर्क में माइग्रेट करने का सुझाव दिया था. इसलिए हितधारकों को फ्रेमवर्क का अनुपालन करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था. हालांकि, आरबीआई ने यह पाया कि फ्रेमवर्क को बढ़ी हुई समयसीमा के बाद ही पूरी तरह लागू नहीं किया गया है.
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आरबीआई ने कहा कि इस गैर-अनुपालन को गंभीरता के साथ लिया गया है और इसके साथ अलग से डील किया जाएगा. कुछ हितधारकों द्वारा कार्यान्वयन में देरी से संभावित बड़े स्तर की असुविधा और चूक की स्थिति सामने आई है. ग्राहकों को कोई असुविधा रोकने के लिए, रिजर्व बैंक ने हितधारकों के लिए फ्रेमवर्क में माइग्रेट करने की समयसीमा को छह महीने बढ़ाने का फैसला किया है, जो 30 सितंबर 2021 तक है. बढ़ाई गई समयसीमा के बाद फ्रेमवर्क में पूरा पालन सुनिश्चित करने में आगे कोई देरी पर सख्त कार्रवाई की जाएगी.
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