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TMFs: टारगेटेड मैच्‍योरिटी म्यूचुअल फंड बाजार के मौजूदा माहौल में दे सकते हैं बेहतर रिटर्न, ये है वजह

Constant Duration Funds: शॉर्ट ड्यूरेशन फंड , जैसे कि अल्ट्रा शॉर्ट, लो ड्यूरेशन और शॉर्ट ड्यूरेशन, ब्याज दर में बदलाव के प्रति कम संवेदनशील होते हैं, इसलिए ये ड्यूरेशन एक्‍सपोजर से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होते हैं.

Constant Duration Funds: शॉर्ट ड्यूरेशन फंड , जैसे कि अल्ट्रा शॉर्ट, लो ड्यूरेशन और शॉर्ट ड्यूरेशन, ब्याज दर में बदलाव के प्रति कम संवेदनशील होते हैं, इसलिए ये ड्यूरेशन एक्‍सपोजर से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होते हैं.

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FE Hindi Desk
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Mutual Funds Investment

Target Maturity Funds: टारगेट मैच्योरिटी फंड विशेष मैच्‍योरिटी डेट के साथ फिक्‍स्‍ड इनकम वाली सिक्‍योरिटीज में निवेश करते हैं. (file image)

Duration Play or Predictable Returns: बाजार और अर्थव्यवस्था के मौजूदा माहौल में, यील्ड के रेंज-बाउंड रहने या गिरने के अनुमान के साथ, टारगेट मैच्योरिटी फंड और साथ ही कांस्टेंट ड्यूरेशन मीडियम व कांस्टेंट ड्यूरेशन मीडियम-टु-लॉन्ग कैटेगरी फंड्स का प्रदर्शन बेहतर रह सकता है. कांस्‍टेंट ड्यूरेशन फंड आम तौर पर उन निवेशकों के लिए बेहतर होते हैं, जो अपना पैसा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड ( जैसे- लिक्विड फंड, मनी मार्केट फंड, लो ड्यूरेशन फंड, अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड या शॉर्ट ड्यूरेशन फंड) में लगाना चाहते हैं. या ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर है, जिनके पास शॉर्ट टर्म इंटरेस्ट रेट साइकिल का व्‍यू है और एक तय अवधि में मैच्योर होने वाले फंड में निवेश के जरिए अतिरिक्त रिटर्न चाहते हैं, या ऐसे निवेशक जो लंबी अवधि के लिए लॉन्ग ड्यूरेशन फंड में अपना निवेश बनाए रखना चाहते हैं. इसके अलावा टारगेट मैच्योरिटी फंड उन निवेशकों के लिए भी बेहतर हैं, जो यील्ड को लॉक करना चाहते हैं और पूर्व अनुमान के आधार पर रिटर्न चाहते हैं.

कांस्‍टेंट ड्यूरेशन फंड: ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव को बेहतर मैनेज

जैसा कि नाम से पता चलता है, एक कांस्‍टेंट ड्यूरेशन फंड की रणनीति पूरे पोर्टफोलियो की अवधि को एक निश्चित सीमा के भीतर बनाए रखना है. जब फिक्‍स्‍ड इनकम सिक्‍योरिटीज की बात आती है तो ड्यूरेशन एक महत्वपूर्ण पैमाना है. ड्यूरेशन जितनी लंबा होगा, पोर्टफोलियो ब्याज दरों में बदलाव के प्रति उतना ही अधिक संवेदनशील होगा.

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निवेश के लक्ष्य और जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर एक पूरी जानकारी के साथ सोच समझकर निर्णय लेने के लिए, निवेशकों को पहले बॉन्‍ड के काम करने की प्रक्रिया को अच्छे से समझना होगा और उनके ड्यूरेशन रिस्‍क पर ध्यान देना होगा. जैसे कि बॉन्ड प्राइस और यील्ड विपरीत दिशाओं में चलते हैं, इसलिए जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो लॉन्ग ड्यूरेशन बॉन्ड की कीमतें, शॉर्ट ड्यूरेशन बॉन्ड की तुलना में तेजी से नीचे जाती हैं. वहीं ब्याज दरों के घटेन की दशा में यह प्रक्रिया इसके उलट हो जाती है. इसलिए, अगर किसी निवेशक को उम्मीद है कि ब्याज दरों में गिरावट आएगी, तो वह अवधि बढ़ाने के लिए एक रणनीतिक निर्णय ले सकता है, यानी शॉर्ट या मिड ड्यूरेशन फंड से लॉन्‍ग ड्यूरेशन फंड में पैसा ट्रांसफर कर सकता है. इससे निवेश के वैल्‍यू में सुधार होगा. वहीं बढ़ रही यील्‍ड वाले माहौल में एक विपरीत रणनीति अपनाई जा सकती है.

शॉर्ट ड्यूरेशन फंड , जैसे कि अल्ट्रा शॉर्ट, लो ड्यूरेशन और शॉर्ट ड्यूरेशन, ब्याज दर में बदलाव के प्रति कम संवेदनशील होते हैं, इसलिए ये ड्यूरेशन एक्‍सपोजर से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होते हैं.

लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड: 'लगातार' ड्यूरेशन कॉल की जरूरत?

आंकड़ों से पता चलता है कि लॉन्ग ड्यूरेशन फंड में निवेश करने और लंबे समय तक उसमें निवेश बनाए रहने से रिटर्न की वोंलेटिलिटी पर अंकुश लगता है. इसे नीचे दिए गए टेबल में बेहतर ढंग से समझाया गया है, जो 31 अगस्त, 2023 तक क्रिसिल (CRISIL) म्यूचुअल फंड प्रदर्शन इंडेक्‍स द्वारा दर्शाए गए शॉर्ट, मीडियम और मीडियम-टु-लॉन्ग कैटेगरी के न्यूनतम और अधिकतम रोलिंग रिटर्न को दर्शाता है. ये संबंधित श्रेणियों के लिए क्रिसिल म्यूचुअल फंड रैंकिंग के तहत रैंक की गई म्यूचुअल फंड योजनाओं के डेली रिटर्न के आधार पर एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) वेटेड कंपोजिट इंडेक्स हैं.

हमने 5 साल तक के डेली बेसिस पर रोलिंग रिटर्न पर विचार किया है. यहां, हमने होल्डिंग अवधि की तुलना में इंडेक्‍स की अलग अलग कैटेगरी के रिटर्न में पूरी जानकारी के लिए न्यूनतम और अधिकतम रोलिंग रिटर्न का एनालिसिस किया है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यूनतम रोलिंग रिटर्न होल्डिंग अवधि के लिए उस कैटेगरी का सबसे कम रोलिंग रिटर्न है, जबकि अधिकतम रोलिंग रिटर्न होल्डिंग अवधि के लिए सबसे ज्यादा रोलिंग रिटर्न है.

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अगर न्यूनतम रिटर्न संख्या को 2 साल तक की होल्डिंग अवधि के लिए माना जाता है, तो शॉर्ट ड्यूरेशन की तुलना में मीडियम और मीडियम-टु-लॉन्ग ड्यूरेशन कैटेगरी के रिटर्न पर असर पड़ता है. न्यूनतम रोलिंग रिटर्न को ध्यान में रखते हुए, शॉर्ट ड्यूरेशन की श्रेणी की तुलना में मीडियम और मीडियम-टु-लॉन्ग श्रेणियों का खराब प्रदर्शन विचार करने योग्य है. लेकिन जब होल्डिंग अवधि 3 साल या उससे अधिक होती है, तो खराब प्रदर्शन कम हो जाता है. साथ ही, अधिकतम रोलिंग रिटर्न टेबल से पता चलता है कि उलटफेर की संभावना महत्वपूर्ण है.

इसलिए, अगर इरादा लंबी अवधि के लिए निवेश को बनाए रखने का है, तो लॉन्ग ड्यूरेशन फंड पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि इन फंड को लंबी अवधि के लिए रखने से रिटर्न की अस्थिरता कम हो जाती है, और इसके विपरीत अगर कोई निवेशक कम समय के लिए निवेश करना चाहता है तो उसे शॉर्ट ड्यूरेशन फंड पर विचार करना चाहिए.

टारगेट मैच्योरिटी फंड: पूर्व अनुमान रिटर्न

टारगेट मैच्योरिटी फंड विशेष मैच्‍योरिटी डेट के साथ फिक्‍स्‍ड इनकम वाली सिक्‍योरिटीज में निवेश करते हैं. इन्हें मैच्‍योरिटी तक रखने पर निवेशकों को अधिक पहले से अनुमानित आय प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है. पिछले कुछ साल में, आकर्षक यील्ड के चलते टारगेट मैच्योरिटी फंडों ने काफी लोकप्रियता हासिल की है. टारगेट मैच्योरिटी फंड आमतौर पर यील्ड कर्व के सबसे तेज भाग पर फोकस करते हैं, यह वह अवधि है जहां बॉन्ड पर ब्याज दर सबसे अधिक होती है.

निवेशक इस रणनीति को जिन 2 तरीकों से अपना सकता है, उनमें से एक है रोल-डाउन रिटर्न प्राप्त करने के लिए मैच्योरिटी से पहले फंड को बेचना. रोल-डाउन रणनीति में, एक निवेशक फंड को बेचने से रिटर्न की उम्मीद कर सकता है, क्योंकि यह यील्ड कर्व को नीचे ले जाता है और मैच्‍योरिटी के करीब पहुंचता है. दूसरा तरीका मैच्‍योरिटी तक यील्ड (YTM) के करीब रिटर्न पाने के लिए मैच्‍योरिटी तक फंड में निवेश बनाए रखना (बॉय एंड होल्ड) है.

बॉय एंड होल्‍ड की रणनीति

टारगेट मैच्योरिटी फंड में अगर निवेशक बॉय एंड होल्‍ड की रणनीति अपनाता है तो अवधि से जुड़ा रिस्क - या बढ़ती यील्ड के कारण निवेश की वैल्‍यू घटने का जोखिम कम हो जाता है. ऐसे मामले में, अगर यील्‍ड बढ़ रही है, तो रीइन्‍वेस्‍टमेंट रिटर्न, यानी, कूपन को फिर से निवेश करने से मिलने वाला रिटर्न पोर्टफोलियो के रिटर्न में जुड़ जाता है. हालांकि, जब यील्ड गिर रही है, तो रीइन्‍वेस्‍टमेंट रिटर्न निवेशक द्वारा कमाए गए फाइनल अमाउंट को कम कर सकता है.

नीचे दिए गए टेबल में, हमने हाल ही में मैच्‍योर हुए 2 टारगेट मैच्योरिटी फंड की तुलना प्रासंगिक क्रिसिल कॉन्स्टेंट ड्यूरेशन इंडेक्‍स से की है. शुरुआत और मैच्योरिटी डेट के साथ, हमने उन इंडेक्स की शुरुआत में यील्ड पर विचार किया है, जिन्हें फंड मैच्‍योरिटी पर कुल रिटर्न का अनुमान लगाने के लिए ट्रैक करते हैं.

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तुलना किए गए क्रिसिल कॉन्स्टेंट ड्यूरेशन इंडेक्स की तुलना में टारगेट मैच्योरिटी फंड के बेहतर प्रदर्शन को इन फंडों के पक्ष में रुझान वाली दरों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है - बेंचमार्क दरें 2019 से जून 2023 तक बढ़ीं हैं. परिणामस्वरूप, बढ़ते मनी मार्केट रेट के कारण इन फंडों में शॉर्ट टर्म बॉन्ड रेट की तुलना में 1 से 3 साल की अवधि में हाई रीइन्‍वेस्‍टमेंट इनकम दिखी. जैसे-जैसे टारगेट मैच्योरिटी फंड मैच्‍योरिटी के करीब पहुंच रहे थे, अवधि का अंतर बढ़ता जा रहा था, जबकि अर्थव्यवस्था में शॉर्ट टर्म रेट बढ़ रहे थे. दरअसल, आदित्य बिड़ला सन लाइफ क्रिसिल आईबीएक्स एएए जून 2023 इंडेक्स फंड ने जिस इंडेक्स को ट्रैक किया, उसने 5.26% का बेहतर रिटर्न दिया। शुरुआत से 27 जून, 2023 तक रोल डाउन रिटर्न के आधार पर भी यह बेहतर था, जो मैच्‍योरिटी से 3 दिन पहले 5.41% था.

किन बातों का ध्यान रखें

  • डेट म्यूचुअल फंड कैटेगरी का सेलेक्‍शन इस रास्‍ते को चुनने वाले निवेशकों के लिए डाइवर्सिफिकेशन लाभ की एक और लेयर जोड़ता है.
  • हालांकि, निवेश की रणनीति चुनना महत्वपूर्ण है. यहां, निवेश की अवधि, लक्ष्य और मौजूदा मैक्रो हालात महत्वपूर्ण निर्धारक हैं.
  • हमारा मूल्यांकन व्यवहार व अनुभव के आधार पर डाटा पर निर्भर करता है और यह गारंटी नहीं दे सकता कि भविष्य के रिटर्न उसी तरह सामने आएंगे.
  • इसलिए, सभी एसेट क्‍लास की तरह, यह निवेशक पर निर्भर है कि वह निवेश से पहले जरूरी अध्ययन करे.

(लेखक: जीजू विद्यावर्धन, सीनियर डायरेक्‍टर – फंड्स एंड फिक्‍स्‍ड इनकम, CRISIL मार्केटिंग इंटेलिजेंस एंड एनालिटिक्‍स)

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