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डिजिटल गोल्ड की खरीदारी विभिन्न निवेश प्लेटफॉर्म के जरिए की जाती है जो निवेशकों के नाम पर गोल्ड खरीदते हैं और इसे होल्ड करते हैं.
Digital gold: त्योहारों के दौरान भारत में गोल्ड खरीदने की परंपरा रही है. पारंपरिक तौर पर लोग फिजिकल गोल्ड खरीदते रहे हैं. हालांकि फिजिकल गोल्ड के अलावा डिजिटल गोल्ड का भी विकल्प निवेशकों के पास है जिसका आकर्षण बढ़ रहा है. इसकी खरीदारी विभिन्न निवेश प्लेटफॉर्म के जरिए की जाती है जो निवेशकों के नाम पर गोल्ड खरीदते हैं और इसे होल्ड करते हैं. ये निवेश प्लेटफॉर्म ग्राहक के बिहाफ पर खरीदे गए गोल्ड को वॉल्ट्स/लॉकर्स में रखते हैं जिसकी ऑडिटिंग की जाती है और इसका बीमा भी होता है.
गिल्डेड के फाउंडर और सीईओ अशरफ रिजवी के मुताबिक गोल्ड ईटीएफ या एसजीबी (सोवरेन गोल्ड बॉन्ड) से डिजिटल गोल्ड इस प्रकार अलग है कि ईटीएफ और एसजीबी गोल्ड की कीमतों को ही ट्रैक करती हैं, फिजिकल गोल्ड को होल्ड नहीं करती हैं. इसके विपरीत डिजिटल गोल्ड में फिजिकल गोल्ड भी निवेशक के नाम से होल्ड किया जाता है. डिजिटल गोल्ड में निवेश से पहले कुछ बातों को जान लेना जरूरी है.
सीधे माइनर्स से मिलता है गोल्ड
रिजवी के मुताबिक जब आप फिजिकल गोल्ड खरीदते हैं तो इसमें यह भरोसा नहीं किया जा सकता है कि सोना शुद्ध मिला है या नहीं. इसके अलावा 24 कैरट यानी एकदम शुद्ध सोने से गहने नहीं बनते हैं. वहीं दूसरी तरफ डिजिटल गोल्ड पूरी तरह से 24 कैरट गोल्ड है और इसे सरकारी कंपनी एमएमटीसी पीएएमपी या ऑगमेंट गोल्ड जैसे माइनर्स से हासिल की जाती है.
महज 100 रुपये का भी खरीद सकते हैं डिजिटल गोल्ड
डिजिटल गोल्ड में निवेश के लिए भारी-भरकम पैसे की जरूरत नहीं होती है बल्कि हर हफ्ते या महीने कुछ-कुछ पैसे जैसे कि कम से कम 100 रुपये जोड़कर एक समय बाद अच्छी-खासी मात्रा में गोल्ड खरीद सकते हैं.
चार्जेज और टैक्स देनदारी
- डिजिटल गोल्ड को निवेशक के बिहाफ पर कम से कम 5 वर्षों तक बिना किसी अतिरिक्त लागत के निवेश प्लेटफॉर्म होल्ड करती हैं. इसकी खरीद-बिक्री देश में हो या विदेश में, इस पर जीएसटी नहीं चुकाना होता है. इसके विपरीत जब फिजिकल गोल्ड को बाजार में बेचते हैं तो मेकिंग चार्ज व अन्य अतिरिक्त टैक्स भी देना होता है जिससे निवेशकों का रिटर्न प्रभावित होता है.
- डिजिटल गोल्ड को तीन साल तक होल्ड करने के बाद बिक्री करने पर हुए लांग-टर्म कैपिटल गेन पर 20 फीसदी की दर से टैक्स (सरचार्ज व सेस अतिरिक्त) चुकाना होता है. हालांकि रिजवी के मुताबिक यह टैक्स देनदारी को कम हो सकती है क्योंकि इस पर इंडेक्सेशन का फायदा मिलता है.
- डिजिटल गोल्ड को तीन साल से कम समय तक होल्ड करने के बाद बेचते हैं तो इस पर इंडिविजुअल को स्लैब रेट के मुताबिक टैक्स चुकाना होता है.
- डिजिटल गोल्ड को किसी नजदीकी संबंधी को बिना किसी टैक्स देनदारी के उपहार में दिया जा सकता है. हालांकि नजदीकी संबंधी के अलाना अऩ्य किसी शख्स को 50 हजार रुपये तक के डिजिटल गोल्ड पर न तो उपहार पाने वाले को और न ही देने वाले को टैक्स चुकाना होता है.
कहां से खरीदें
डिजिटल गोल्ड को गिल्डेड, पेटीएम जैसे विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए खरीदा जा सकता है. रिजवी के मुताबिक बाजार नियामक सेबी रजिस्टर्ड ब्रोकर्स को डिजिटल गोल्ड बेचने से रोक लगा चुकी है.
सुविधा और लिक्विडिटी
डिजिटल गोल्ड सुरक्षित और अधिक लिक्विड है क्योंकि गोल्ड पर सीधे निवेशक का स्वामित्व होता है. रिजवी के मुताबिक निवेश प्लेटफॉर्म अस्तित्व में हो या खत्म हो जाए, निवेशकों का गोल्ड पर मालिकाना हक बना रहेगा और इसे होल्ड भी कर सकते हैं और जब चाहें तब किसी भी दिन मार्केट भाव पर बेच सकते हैं.
निवेश पर रिटर्न
लांग टर्म में गोल्ड बेहतर और सुरक्षित निवेश विकल्प बना हुआ है. पिछले पांच वर्षों में गोल्ड पर निवेशकों को 15 फीसदी का रिटर्न मिला है. पिछले साल ही इसने 40 फीसदी से अधिक का रिटर्न दिया था. रिजवी के मुताबिक गोल्ड से मिलने वाला रिटर्न आमतौर पर मार्केट की तेजी के विपरीत होती है यानी मार्केट में गिरावट या अनिश्चितता है तो गोल्ड से रिटर्न अधिक मिलेगा. एक्सपर्ट्स के मुताबिक निवेशकों को कठिन समय के लिए अपने पोर्टफोलियो में 10-15 फीसदी निवेश गोल्ड में रखना चाहिए.
(Article: Priyadarshini Maji)