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Debt, Equity, Hybrid, Liquid...इतने तरह के फंड्स ने किया कनफ्यूज? अच्छी तरह समझने के बाद करें सही ऑप्शन का चुनाव

How to Choose Right Mutual Fund: डेट, इक्विटी, हाइब्रिड और लिक्विड फंड से लेकर ELSS तक, बाजार में ढेर सारे म्यूचुअल फंड मौजूद हैं. इनमें से सही फंड का चुनाव करने के लिए पूरी जानकारी होना जरूरी है.

How to Choose Right Mutual Fund: डेट, इक्विटी, हाइब्रिड और लिक्विड फंड से लेकर ELSS तक, बाजार में ढेर सारे म्यूचुअल फंड मौजूद हैं. इनमें से सही फंड का चुनाव करने के लिए पूरी जानकारी होना जरूरी है.

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Viplav Rahi
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How to Select Right Mutual Fund: सही म्यूचुअल फंड का चुनाव निवेशकों का वित्तीय लक्ष्य हासिल करने के लिए बेहद जरूरी है. (Illustration : Financial Express)

How to Choose the Right Mutual Fund For Investment : म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट का आसान और आजमाया हुआ तरीका है. लेकिन बाजार में इतनी अलग-अलग कैटेगरी और नामों वाले म्यूचुअल फंड मौजूद हैं कि निवेशकों को कई बार अपने लिए सही फंड का सेलेक्शन करते समय कंफ्यूजन का सामना करना पड़ता है. इसलिए निवेश का फैसला करने से पहले फंड की तमाम कैटेगरी और उनकी विशेषताओं को अच्छी तरह समझना जरूरी है.

कितने तरह के होते हैं म्यूचुअल फंड

सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने भारत में म्यूचुअल फंड्स को मोटे तौर पर 5 प्राइमरी कैटेगरी में बांटा है. ये हैं 1. इक्विटी फंड्स, 2. डेट फंड्स, 3. बैलैंस्ड हाइब्रिड फंड्स, 4. सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स और 5. इन श्रेणियों में नहीं आने वाले अन्य फंड्स. इसके अलावा म्यूचुअल फंड्स को स्ट्रक्चर और निवेश के लक्ष्य के आधार पर भी बांटा जा सकता है.

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इक्विटी फंड

अगर आप भारतीय शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं तो इक्विटी फंड (Equity Fund) के जरिए पैसे लगा सकते हैं. इस कैटेगरी के फंड्स को भी इंडेक्स फंड, लार्ज-कैप फंड, मिड-कैप फंड और स्मॉल-कैप म्यूचुअल फंड जैसी अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है. इंडेक्स फंड किसी इंडेक्स में शामिल कंपनियों के शेयरों में उनके वेटेज के अनुपात में निवेश करते हैं, ताकि उस इंडेक्स के उतार-चढ़ाव को ज्यादा से ज्यादा फॉलो कर सकें. लार्ज कैप फंड मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से देश की बड़ी कंपनियों में निवेश करते हैं, जिनमें मिड कैप और स्मॉल कैप के मुकाबले कम जोखिम होता है. मिड-कैप और स्मॉल कैप फंड में निवेश में अधिक रिस्की होता है, लेकिन उनमें ज्यादा रिटर्न की गुंजाइश भी रहती है. इक्विटी फंड में अगर लंबी अवधि के दौरान नियमित निवेश किया जाए, तो बेहतर रिटर्न मिलने की गुंजाइश रहती है. इक्विटी फंड का बड़ा फायदा यह है कि इनमें कम पैसे लगाकर भी आप अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई कर सकते हैं. साथ ही प्रोफेशनल फंड मैनेजर आपके पैसों को बेहतर ढंग निवेश कर सकते हैं, जिससे बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद बढ़ जाती है.

डेट फंड

जो निवेशक शेयर बाजार में निवेश के जोखिम से दूर रहना चाहते हैं, उनके लिए डेट फंड (Debt Fund) बेहतर विकल्प हैं. डेट फंड के मैनेजमेंट की लागत यानी एक्सपेंस रेशियो बाकी एक्टिव म्यूचुअल फंड्स के मुकाबले कम होती है. डेट फंड ट्रेजरी बिल, कॉरपोरेट बॉन्ड या गवर्नमेंट सिक्योरिटीज जैसे फिक्स्ड इनकम वाले इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं. डेट फंड्स के रिटर्न में ज्यादा स्थिरता होती है. इन फंड्स को भी लॉन्ग टर्म फंड्स, शॉर्ट ड्यूरेशन यानी कम अवधि वाले फंड्स, ओवरनाइट फंड और लिक्विड फंड जैसी श्रेणियों में बांटा जा सकता है. जिनकी लिक्विडिटी, रिटर्न और सेफ्टी लेवल अलग-अलग होते हैं.

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हाइब्रिड फंड

हाइब्रिड फंड (Hybrid Fund) इक्विटी और डेट, दोनों में निवेश करते हैं. फंड हाउस के आधार पर दोनों का अनुपात फिक्स या वेरिएबल हो सकता है. हाइब्रिड फंड उन लोगों के लिए बिल्कुल सही हैं, जो बेहतर रिटर्न के लिए थोड़ा बहुत जोखिम लेने को तैयार हैं. हाइब्रिड म्यूचुअल फंड मुख्य तौर पर दो तरह के होते हैं - एग्रेसिव यानी आक्रामक फंड (aggressive fund) और बैलेंस्ड यानी संतुलित फंड (balanced fund). एग्रेसिव फंड्स में डेट का हिस्सा तुलनात्मक रूप से कम होता है, लिहाजा उनमें रिस्क और रिटर्न की गुंजाइश अधिक होती है. वहीं बैलैंस्ड फंड इक्विटी और डेट दोनों में संतुलित ढंग से निवेश करते हैं, लिहाजा रिस्क और रिटर्न दोनों अपेक्षाकृत कम रहते हैं.

सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स

सॉल्यूशन ओरिएंडेट फंड्स (Solution-oriented mutual funds) निवेशकों के किसी खास लक्ष्य को पूरा करने के लिए काम करते हैं. मिसाल के तौर पर रिटायरमेंट कॉर्पस तैयार करने के मकसद से लॉन्च किए गए रिटायरमेंट फंड (Retirement fund) या बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और करियर की जरूरतों को ध्यान में रखकर पेश किए गए चिल्ड्रेंस फंड (Children’s fund) इसी कैटेगरी में आते हैं. एसेट क्लास के लिहाज से ये फंड डेट फंड, इक्विटी फंड या हाइब्रिड फंड तीनों हो सकते हैं. इन फंड्स के मैनेजर निवेशकों के खास लक्ष्य, टाइमलाइन और रिस्क प्रोफाइल को ध्यान में रखकर निवेश करते हैं.

स्ट्रक्चर के आधार पर वर्गीकरण

म्यूचुअल फंड्स को उनकी संरचना (Structure) के आधार पर भी कई श्रेणियों में बांटा जाता है. मसलन - ओपन एंडेड फंड, , क्लोज एंडेड फंड या इंटरवल फंड.

ओपन एंडेड फंड्स (Open-Ended Funds) में आप अपनी मर्जी और सुविधा के हिसाब से निवेश भी कर सकते हैं और करंट NAV के आधार पर पैसे निकाल भी सकते हैं. यह फंड उनके लिए बेहतर हैं, जो हाई लिक्विडिटी चाहते हैं.

क्लोज एंडेड फंड (Close-Ended Funds) में निवेश और मैच्योरिटी का समय पहले से तय रहता है. आपको फंड ऑफर खुलने के समय ही निवेश करना होता है और रिडेम्पशन भी मैच्योरिटी के बाद ही होता है.

इंटरवल फंड (Interval Funds) एक तरह से ओपन एंडेड और क्लोज एंडेडे फंड के बीच की कैटेगरी है. यह उन निवेशकों के लिए बेहतर है, जो बच्चों की पढ़ाई, शादी या ऐसे ही किसी और शॉर्ट टर्म लक्ष्य के लिए फंड इकट्ठा करना चाहते हैं. इन फंड्स की यूनिट्स को पहले से तय इंटरवल पर ही खरीदा या रिडीम किया जा सकता है. आम तौर पर इनमें कम से कम 2 साल के लिए निवेश करना होता है.

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आर्थिक लक्ष्य के आधार पर वर्गीकरण

म्यूचुअल फंड्स का वर्गीकरण निवेशकों के फाइनेंशिल गोल या लक्ष्यों के आधार पर भी किया जाता है. लिक्विड फंड, ग्रोथ फंड या इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम इसके प्रमुख उदाहरण हैं.

लिक्विड फंड (Liquid Mutual Fund) के नाम से ही साफ होता है कि इनका मकसद निवेश पर ज्यादा से ज्यादा लिक्विडिटी मुहैया कराना होता है. ये फंड्स आम तौर पर डेट में ज्यादा निवेश करते हैं. बेहद कम समय के वित्तीय लक्ष्यों के लिए लिक्विड फंड्स में निवेश किया जा सकता है.

ग्रोथ फंड (Growth Funds) का फोकस तेजी से बढ़ रहे शेयरों में निवेश पर होता है. ये फंड लंबी अवधि के दौरान बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए सही हैं. ग्रोथ पर ज्यादा जोर होने के कारण इनमें रिस्क भी कुछ अधिक हो सकता है, लिहाजा निवेशक को फंड की स्ट्रैटजी और अपने लक्ष्य - दोनों में सही तालमेल करने के बाद इनमें इन्वेस्ट करना चाहिए.

इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) में निवेश का मुख्य मकसद टैक्स सेविंग के साथ लंबी अवधि में वेल्थ क्रिएशन होता है. 3 साल के लॉक इन वाले ELSS में SIP के जरिए निवेश किया जा सकता है. इसमें साल में 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट मिलती है. इसके अलावा मैच्योरिटी पर 1 लाख रुपये तक का मुनाफा टैक्स फ्री होता है और उससे ज्यादा रिटर्न पर इनकम टैक्स स्लैब की बजाय 10 फीसदी के फ्लैट रेट से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स लगता है. ऊंचे टैक्स स्लैब में आने वाले लोगों के लिए यह काफी बेहतरीन स्कीम मानी जाती है.

आपके लिए कौन सा म्यूचुअल फंड है सही?

इन तमाम तरह के म्यूचुअल फंड्स में आपके लिए कौन सा सही है, ये फैसला आपको अपनी जरूरतों और रिस्क प्रोफाइल को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए. किसी भी स्कीम में निवेश से पहले फंड मैनेजर के पिछले परफॉर्मेंस, स्कीम के एक्सपेंस रेशियो, लिक्विडिटी, डायवर्सिफिकेशन और अपने वित्तीय लक्ष्य के साथ फंड के तालमेल के बारे में अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए. आम तौर पर म्यूचुअल फंड में नियमित निवेश लंबी अवधि के दौरान बेहतर रिटर्न देने में सफल रहते हैं. लेकिन इसके लिए सही स्कीम का चुनाव करना बेहद जरूरी है.

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