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रिटायरमेंट प्लानिंग को लेकर है उलझन; ऐसे चुनें निवेश की बेस्ट स्कीम, रिटर्न की चिंता होगी खत्म

निवेश पर रिटर्न में हल्का सा भी उतार-चढ़ाव आता है तो रिटारमेंट कॉर्पस पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में अपने रिटारमेंट के लिए पर्याप्त फंड तैयार करने के लिए सही इंवेस्टमेंट विकल्प का चयन करना चाहिए.

निवेश पर रिटर्न में हल्का सा भी उतार-चढ़ाव आता है तो रिटारमेंट कॉर्पस पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में अपने रिटारमेंट के लिए पर्याप्त फंड तैयार करने के लिए सही इंवेस्टमेंट विकल्प का चयन करना चाहिए.

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FE Online
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ULIPs vs NPS vs Equity Funds vs EPF Which is better for retirement planning

रिटायरमेंट प्लानिंग के तहत बैलेंस्ड पोर्टफोलियो में निवेश करना चाहिए.

ULIPs Vs NPS Vs SIP Vs EPF: निवेश पर रिटर्न में हल्का सा भी उतार-चढ़ाव आता है तो रिटारमेंट कॉर्पस पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में अपने रिटारमेंट के लिए पर्याप्त फंड तैयार करने के लिए सही इंवेस्टमेंट विकल्प का चयन करना चाहिए. टैक्स एफिशिएंसी, रिटर्न प्रॉस्पेक्ट्स, स्टेबिलिटी, लिक्विडिटी और रिस्क का लेवल जैसे कुछ महत्वपूर्ण फैक्टर्स हैं जिनके आधार पर अपने लिए बेहतर इंवेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स का चयन किया जा सकता है ताकि रिटायरमेंट फंड के अपने लक्ष्य को हासिल किया जा सके. रिटायरमेंट फंड के लिए आकर्षक इंवेस्टमेंट प्रॉडक्ट्स की बात करें तो यूलिप, एनपीएस, इक्विटी फंड्स और ईपीएफ जैसे कुछ बेहतरीन विकल्प हैं.

रिटायरमेंट प्लानिंग के तहत बैलेंस्ड पोर्टफोलियो में निवेश करना चाहिए. एनपीएस, ईपीएफ, यूलिप, इक्विटी फंड्स, डेट स्कीम्स, एफडी, गोल्ड और रीयल एस्टेट जैसे कई विकल्पों में अपनी पूंजी को डाइवर्सिफाई कर निवेश करना चाहिए. इसके अलावा रिटायरमेंट के लिए निवेश करते समय नीतियों में बदलावों पर भी नजर रखना चाहिए. अगर कहीं कोई समस्या आ रही है तो किसी प्रमाणित निवेश सलाहकार से संपर्क करना चाहिए.

यूनिट लिंक्ड इंवेस्टमेंट प्लान्स (ULIPs)

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यूलिप ऐसे फाइनेंसिलय इंस्ट्रूमेंट्स हैं जिसमें इंश्योरेंस और इंवेस्टमेंट दोनों फीचर्स उपलब्ध हैं यानी कि निवेशकों को न सिर्फ रिटर्न मिलता है बल्कि उन्हें लाइफ कवर भी मिलता है. इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी के तहत यूलिप पर 1.5 लाख रुपये का टैक्स डिडक्शन बेनेफिट लिया जा सकता था. पहले सम एश्योर्ड के 10 फीसदी से कम प्रीमियम की यूलिप टैक्स फ्री होती थी लेकिन इस बार 2021-22 के बजट में 2.5 लाख रुपये से अधिक के सालाना प्रीमियम के यूलिप पॉलिसी को टैक्स दायरे में लाया गया. 2.5 लाख रुपये से अधिक के प्रीमियम पर इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की तरह टैक्स देनदारी होगी. इक्विटी म्यूचतुअल फंड्स पर 1 लाख रुपये से अधिक के लांग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है.

यूलिप को लेकर बजट में बदलाव के चलते अन्य विकल्प को भी देखना चाहिए जिससे बेहतर रिटर्न मिल सके. हालांकि अगर सालान प्रीमियम 2.5 लाख रुपये से कम है तो नए प्रस्ताव से कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS)

रिटायरमेंट की योजना बनाते समय सिर्फ इक्विटी या डेट में निवेश करना समझदारी भरा फैसला नहीं है. एनपीएस के जरिए निवेशकों को इक्विटी, कॉरपोरेट डेट और गवर्नमेंट डेट में निवेश का विकल्प मिलता है यानी कि इन तीनों में निवेश होता है. सेक्शन 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये तक के टैक्स डिडक्शन का लाभ भी मिलता है और सेक्शन 80सीसीडी के तहत 50 हजार रुपये का एडीशनल टैक्स डिडक्शन बेनेफिट मिलता है. सुपरएन्यूएशन ऐज पर पहुंचने के बाद एनपीएस से 60 फीसदी रकम निकाली जा सकती है जो टैक्सफ्री होगी. शेष 40 फीसदी रकम से एन्यूटी प्लान खरीदना होता है और इस एन्यूटी इनकम पर निवेशक के स्लैब रेट के मुताबिक टैक्स देनदारी बनती है.

इंवेस्टमेंट फ्लेक्सिबिलिटी (इक्विटी-डेट) और रिटर्न को लेकर एनपीएस अच्छा विकल्प है लेकिन रिटायरमेंट के बाद एन्यूटी पर टैक्स देनदारी बनती है और इसमें लिक्विडिटी नहीं है.

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स SIP

रिटायरमेंट प्लानिंग जैसे लांग टर्म इंवेस्टमेंट्स की बात करें को इक्विटी म्यूचुअल फंड्स से हाई रिटर्न पाया जा सकता है. एसआईपी मोड के जरिए निवेश से बेहतर रिटर्न पाया जा सकता है. एक वित्त वर्ष में इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर 1 लाख रुपये से अधिक की एलटीसीजी पर 10 फीसदी की दर से टैक्स चुकाना होता है. अगर आपने सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन बेनेफिट्स के लिमिट कोटा को पूरा नहीं किया है यानी 1.5 लाख रुपये से कम का निवेश किया है तो इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम्स (ELSS) में निवेश कर सकते हैं. उम्र, रिस्क लेने की क्षमता और रिटर्न की उम्मीद के आधार पर इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश किया जा सकता है और रिटायरमेंट के जैसे-जैसे करीब पहुंचते हैं तो रिस्क कम करने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स एक्सपोजर कम कर सकते हैं.

इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर आकर्षक रिटर्न, हाई लिक्विडिटी और फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है. हालांकि इसमें रिस्क भी जुड़े होते हैं.

एंप्लाईज प्रोविडेंट फंड (EPF) और वालंटरी प्रोविडेंट फंड (VPF)

सुरक्षित निवेश और हाई रिटर्न के चलते सैलरीड निवेशकों के बीच ईपीएफ पसंदीदा विकल्प है. ईपीएफ पर वर्तमान में 8.5 फीसदी सालाना रिटर्न मिल रहा है जबकि पीपीएफ पर 7.9 फीसदी, अधिकतर सरकारी व निजी बैंकों में 1 करोड़ रुपये से कम के फिक्स्ड डिपॉजिट्स पर 4-6.5 फीसदी की दर से रिटर्न मिल रहा है. इसके अलावा ईपीएफ में एंप्लाईज के कांट्रिब्यूशन पर सेक्शन 80सी के तहत टैक्स डिडक्शन का लाभ मिलता है. एंप्लाई अपनी इच्छा से वीपीएफ में निवेश कर सकते हैं जिस पर ईपीएफ के बराबर ब्याज मिलता है.

बजट 2021 के पहले ईपीएफ और वीपीएफ पर मिलने वाला ब्याज टैक्सफ्री था. बजट 2021 में सरकार ने अगले वित्त वर्ष से सालाना 2.5 लाख रुपये से अधिक के पीएफ कांट्रिब्यूशन को ब्याज दायर में लाने का प्रावधान रखा है. इस प्रस्ताव से ईपीएफ अब अधिक वेतन वाले निवेशकों के लिए कम आकर्षक रह जाएगा जो वीपीएफ में अधिक निवेश करते हैं जैसे कि हर महीने 20 हजार रुपये से अधिक का वीपीएफ में कांट्रब्यूशन. हालांकि जिनका कांट्रिब्यूशन 2.5 लाख रुपये से कम होगा, उन पर इस नए प्रस्ताव का असर नहीं पडेगा.

(Article: Adhil Shetty, CEO, BankBazaar.com)