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ULIPs: यूलिप में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा प्रीमियम का भुगतान करते हैं तो सेक्शन 10 (10डी) के तहत उपलब्ध टैक्स एग्जेम्पशन हटा दिया गया है.
अगर आप यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसीज (ULIPs) में निवेश करते हैं तो आपके लिए जरूरी खबर है. अगर आप यूलिप में एक साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा के प्रीमियम का भुगतान करते हैं तो सेक्शन 10 (10डी) के तहत उपलब्ध टैक्स एग्जेम्पशन हटा दिया गया है. यह नियम मौजूदा यूलिप पर लागू नहीं होगा. सिर्फ इस साल 1 फरवरी के बाद बेची गई पॉलिसियों पर ही यह प्रभावी होगा. इन पर हुए कैपिटल गेंस पर उसी तरह से टैक्स लगेगा, जैसे कि इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड पर लगाया जाता है. यानी इन पर 10 फीसदी टैक्स लगेगा.
बजट के अनुसार, आयकर अधिनियम के मौजूदा प्रावधानों के तहत, पॉलिसी की अवधि के दौरान किसी भी व्यक्ति द्वारा भुगतान किए जा रहे वार्षिक प्रीमियम की राशि पर कोई कैप नहीं है. ऐसे कुछ उदाहरण सामने आए हैं जहां हाई नेट वर्थ वाले निवेशक यूलिप में भारी प्रीमियम के साथ निवेश करके इस क्लॉज के तहत छूट का दावा कर रहे हैं. भारी प्रीमियम के साथ यूलिप में इस तरह की टैक्स छूट देने से इस क्लॉज का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है.
इक्विटी ओरिएंटेड फंड की तरह प्रावधान
इसका मतलब है कि 2.5 लाख या इससे ज्यादा की प्रीमियम राशि यूलिप में निवेश को कैपिटल एसेट्स माना जाएगा. इस तरह के यूलिप को सेक्शन 112 ए के तहत एक इक्विटी-ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड की तरह माना जाएगा. जिससे इक्विटी-ओरिएंअेड फंड की तरह उस पर टैक्स लगाया जा सके. इस तरह से सेक्शन 111A और 112A के प्रावधान ऐसे यूलिप की बिक्री या रीडेम्पशन पर लागू होंगे.
क्या है यूलिप?
एक यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान, एक ऐसा उत्पाद है जहां बीमा और निवेश लाभ एक साथ मिलता है. इन्हें बीमा कंपनियों द्वारा पेश किया जाता है. जब आप एक प्रीमियम का भुगतान करते हैं, तो इसका एक हिस्सा बीमा कंपनी द्वारा आपको बीमा कवरेज प्रदान करने के लिए उपयोग किया जाता है और बाकी का कर्ज और इक्विटी में निवेश करने के लिए उपयोग किया जाता है.
इस प्रोडक्ट में इंश्योरेंस और इंवेस्टमेंट का कॉम्बिनेशन 5 साल के लॉक-इन पीरियड के साथ आता है. ग्राहकों को रिस्क के हिसाब से लार्ज, मिड या स्मॉल कैप, डेट या बैलेंस्ड इन्वेस्टमेंट में निवेश करने की छूट दी जाती है. इसी के साथ अलग-अलग फंडों में स्विच करने की भी सुविधा मिलती है.
पीएफ से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स
ज्यादा कमाने वाले लोग टैक्स बचाने के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल करते रहे हैं, इस बजट में उनमें से कुछ को खत्म किया गया है. प्रोविडेंट फंड कॉन्ट्रिब्यूशन से कमाया जाने वाला ब्याज अगर साल में 2.5 लाख रुपये से ज्यादा है तो उस पर सामान्य दरों से टैक्स लगेगा. इस कदम से ज्यादा वेतन पाने वाले उन लोगों को नुकसान होगा जो टैक्स-फ्री इंटरेस्ट कमाने के लिए वॉलेंट्ररी प्रोविडेंट फंड (वीपीएफ) का इस्तेमाल करते हैं.