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फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्या है होता क्रेडिट रिस्क, यहां किसे लगाना चाहिए पैसा

निवेशकों को यह जानना बेहद जरूरी है कि फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्रेडिट रिस्क क्या होता है.

निवेशकों को यह जानना बेहद जरूरी है कि फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्रेडिट रिस्क क्या होता है.

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FE Online
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Understanding credit risks in fixed income investments before investment, debt fund, credit risk fund, mutual fund investors, interest risk scheme, yield, franklin templeton crisis, क्रेडिट रिस्क, इंटरेस्ट रिस्क

निवेशकों को यह जानना बेहद जरूरी है कि फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्रेडिट रिस्क क्या होता है.

Understanding credit risks in fixed income investments before investment, debt fund, credit risk fund, mutual fund investors, interest risk scheme, yield, franklin templeton crisis, क्रेडिट रिस्क, इंटरेस्ट रिस्क निवेशकों को यह जानना बेहद जरूरी है कि फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्रेडिट रिस्क क्या होता है.

हाल ही में एक खबर ने म्यूचुअल फंड निवेशकों को चौंका दिया था, जब फ्रैंकलिन टेम्पलटन इंडिया म्यूचुअल फंड ने अपनी 6 क्रेडिट स्कीम बंद कर दी. इससे निवेशकों को तगड़ा झटका लगा और उनके करीब 28 हजार करोड़ रुपये अटक गए. कोरोना वायरस की वजह से कैश क्राइसिस की सिथति में कंपनी को यह करना पड़ा. ऐसे में इस तरह की दूसरी स्कीम में भी पैसा फंसने का डर बढ़ा है. इसलिए निवेशकों को यह जानना बेहद जरूरी है कि फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम में क्रेडिट रिस्क क्या होता है.

2 तरह के मुख्य रिस्क फैक्टर

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फिक्स्ड इनकम इन्वेसटमेंट में 2 तरह के मुख्य रिस्क फैक्टर होते हैं. पहला इंटरेस्ट रेट रिस्क और दूसरा क्रेडिट रिस्क.

इंटरेस्ट रेट रिस्क का मतलब ब्याज दरों से है. अगर ब्याज दरें कम होती हैं तो ब्रांड की कीमतें बढ़ती हें. लेकिन अगर सरकार ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बांड की कीमतों में गिरावट आती है. यानी इस तरह के डेट फंड में ब्याज दर के अपोजिट रिएक्शन देखने को मिलता है.

वहीं फिक्स्ड इनकम में क्रेडिट रिस्क का मतलब उस स्थिति से है जब बांड जारी करने वाला घाटे या कैश की कमी की वजह से निवेशकों को इंटरेस्ट या मेच्योरिटी पेमेंट करने से डिफाल्ट कर जाता है. ऐसी स्थिति में बांड की कीमत भी गिर जाती है.

क्रेडिट रिस्क स्थाई

इंटरेस्ट रिस्क टेम्परेरी होता है, जबकि क्रेडिट रिस्क स्थाई होता है. इंटरेस्ट रिस्क में ब्याज दर बढ़ने पर फिक्स्ड इनकम इंस्ट्रूमेंट का रेट गिरता है, जबकि ब्याज दर कम होने से रेट बढ़ता है. हालांकि यह बदलाव साइक्लिक है. इंटरेस्ट रिस्क वाले डेट फंडों में लंबी अवधि के निवेश है तो इसमें जोखिम कवर हो जाता है.

लेकिन अगर बांड जारी करने वाला पेमेंट में डिफाल्ट कर गया तो उस स्कीम को लेकर सेंटीमेंट बुरी तरह से बिगड़ जाते हैं. बांड की कीमत तेजी से नीचे आ जाती है.  कुछ डेट फंड अच्छे एसेट्स से बुरे एसेट्स (जिसमें पेमेंट से डिफाल्ट किया हो) को अलग करने के लिए साइड-पॉकेट बना सकते हैं.

हालांकि, स्कीम के साइड-पॉकेट्स में अंतर्निहित परिसंपत्तियां इलिक्विड होंगी और इन खराब परिसंपत्तियों से राशि की रिकवरी की समय-सीमा अनिश्चित होगी. इसलिए, फिक्स्ड इनकम में क्रेडिट रिस्क अक्सर स्थायी होता है और निवेशकों को इस जोखिम को कम करने का लक्ष्य रखकर चलना चाहिए.

क्रेडिट रिस्क को समझें

लांग टर्म इंसट्रूमेंट (1 साल से ज्यादा मेच्योरिटी वाली स्कीम)

रेटिंग        रिस्क

AAA        हाइएस्ट सेफ्टी

AA          हाई सेफ्टी

A             सुरक्षित

BBB        मॉडरेट सेफ्टी

BB          मॉडरेट रिस्क

B             हाई रिस्क

C            बहुत ज्यादा रिस्क

D           डिफाल्ट की आशंका

शॉर्ट टर्म इंसट्रूमेंट (1 साल से कम मेच्योरिटी वाली स्कीम)

रेटिंग          रिस्क

A1            लोएस्ट रिस्क

A2           लो रिस्क

A3           मॉडरेट रिस्क

A4           हाई रिस्क

D             डिफाल्ट की आशंका

(Source: CRISIL)

ज्यादा रिटर्न के लालच में करते हैं निवेश

कम रेट वाले इंस्ट्रूमेंट आमतौर पर ज्यादा रेटिंग वाली स्कीम की तुलना में ज्यादा रिटर्न देते हें. उदाहरण के तौर पर "A" रेटेड पेपर "AAA" रेटेड पेपर की तुलना में 200 बीपीएस अधिक यील्ड दे सकता है. कुछ फंड मैनेजर अधिक यील्ड हासिल करने के लिए लो रेटेड पेपर में निवेश कर सकते हैं लेकिन जोखिम भी उसी के अनुसार बढ़ता है. आपको जोखिमों को बहुत स्पष्ट रूप से समझना चाहिए और अपनी जोखिम सहने के आधार पर निवेश करना चाहिए. साफ है कि जिनके पास उच्च जोखिम लेने की क्षमता है, उसे ही यहां पैसे लगाना चाहिए.

क्रेडिट रेटिंग में आता है बदलाव

फिक्स्ड इनकम वाली स्कीम की क्रेडिट रेटिंग्स में समय समय पर बदलाव आता है. पेमेंट करने और प्रदर्शन के आधार पर रेटिंग बदल सकती है. मसलन AAA रेटेड पेपर की आगे रेटिंग खराब प्रदर्शन के चलते A या BBB हो सगती है. इसी तरह से BBB रेटेड वाले पेपर की रेटिंग A भी हो कसती है. रेटिंग बढ़ने या घटने के आधार पर बांड की कीमतों में तेजी या गिरावट आ सकती है. निवेशकों के लिए बेहतर है कि वे समय समय पर रेटिंग की समीक्षा कर निवेश करें.

(लेखक: वैभव शाह, हेड-प्रोडक्ट्स, मार्केटिंग एंड कम्युनिकेशंस, मिराए एसेट्स इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड)