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Power SIP के जरिए इक्विटी में निवेश करने पर बाजार के उतार-चढ़ाव का ध्यान भी रखा जाता है, जिससे बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद रहती है.
What is Power SIP, how this is different from regular systematic investment plans: सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) आम निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड के जरिए इक्विटी यानी शेयर बाजार में निवेश का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका है - यह बात अक्सर कही जाती है और सही भी है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि SIP में नियमित रूप से लंबे समय तक निवेश करने पर इक्विटी प्राइस की एवरेजिंग हो जाती है, जिससे न सिर्फ बेहतर रिटर्न मिलते हैं, बल्कि आपकी पूंजी पर बाजार की उथल-पुथल का असर भी कम पड़ता है. SIP का एक और फायदा ये भी है कि अगर आपने अपने बैंक को हर महीने एक निश्चित रकम निवेश करने का निर्देश दे दिया, तो नियमित बचत अपने आप होने लगती है.
लेकिन इन तमाम फायदों के बावजूद SIP के साथ छोटी सी दिक्कत भी है. और वो ये कि अगर आपने एक बार SIP की रकम तय कर ली, तो हर महीने उतनी रकम आपकी तरफ से इक्विटी मार्केट में निवेश कर दी जाती है. इस बात की परवाह किए बिना कि निवेश करते समय शेयर मार्केट के वैल्यूएशन कैसे हैं? कहीं मार्केट ‘ओवरहीटेड’ तो नहीं है? यानी शेयरों की कीमत इंफ्लेटेड तो नहीं है? इसी तरह अगर बाजार बड़े करेक्शन के बाद काफी नीचे आ चुका है, तब भी निवेश की रकम उतनी ही रहती है, मौके का फायदा उठाने के लिए उसमें कोई इजाफा नहीं किया जाता.
SIP के साथ निवेश की बेहतर टाइमिंग का भी फायदा
अगर आप बाजार में रेगुलर निवेश के जरिए एवरेजिंग का लाभ लेने के साथ ही साथ बड़ी गिरावट के वक्त ज्यादा निवेश करके फायदा उठाने और महंगे बाजार में थोड़ा हाथ रोक कर पैसे लगाना चाहते हैं, तो क्या करें? इस सवाल का जवाब है पावर एसआईपी (Power SIP). यह ऐसी SIP स्कीम है, जिसमें नियमित निवेश के साथ ही साथ बाजार के उतार-चढ़ाव का फायदा उठाने की रणनीति पर काम किया जाता है. फंड्स इंडिया (FundsIndia), एडलवीज (Edelweiss) और महिंद्रा मैनुलाइफ म्यूचुअस फंड (Mahindra Manulife Mutual Fund ) जैसी कई कंपनियां अलग-अलग पावर SIP स्कीम लेकर आई हैं. इन सभी कंपनियों की स्कीमों में कुछ अंतर हो सकते हैं, लेकिन आम तौर पर इन्वेस्टमेंट फिलॉसफी यही है कि SIP के जरिए निवेश करते समय वैल्यूएशन का पूरा ध्यान रखा जाए.
वैल्यूएशन देखकर खरीदारी का फैसला
बाजार में फलों-सब्जियों की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव और उस दौरान अधिकांश लोगों की प्रतिक्रिया के जरिए आप पावर SIP की रणनीति को आसानी से समझ सकते हैं. हर साल कुछ महीने ऐसे होते हैं, जब किसी खास फल या सब्जी की कीमतें आसमान पर पहुंच जाती हैं. ऐसे समय में अधिकांश लोग उन फलों-सब्जियों की खपत कम कर देते हैं और जब कीमतें गिरती हैं, तो उनकी खपत बढ़ा लेते हैं. खासतौर पर अगर किसी को साल भर खाने के लिए आम, मिर्च, आंवले या नींबू का अचार बनाना है, तो बाजार में भाव गिरने पर ही उनकी बड़ी मात्रा में खरीदारी की जाती है. पावर SIP में शेयरों की खरीद के लिए भी कुछ हद तक ऐसी ही रणनीति पर काम किया जाता है. जिस वक्त शेयर बाजार काफी ऊंचाई पर होते हैं, SIP के जरिए इक्विटी में निवेश घटाकर करेक्शन का इंतजार किया जाता है. और फिर कीमतें घटने पर ज्यादा शेयर खरीदे जाते हैं, ताकि उन पर बेहतर रिटर्न हासिल किया जा सके. आम तौर पर रिटेल इन्वेस्टर्स को यही सलाह दी जाती है कि उन्हें बाजार को ‘टाइम’ करने के चक्कर में पड़े बिना नियमित निवेश करना चाहिए, क्योंकि उनके लिए बाजार के ट्रेंड का पूर्वानुमान लगा पाना आसान नहीं होता. लेकिन बाजार और उसके ट्रेंड्स पर लगातार नजर रखने वाले प्रोफेशनल म्यूचुअल फंड मैनेजर ऐसा कर सकते हैं, जिसका फायदा आम निवेशकों को भी मिल सकता है.
कैसे काम करता है पावर SIP?
पावर SIP कैसे काम करता है, इसे अच्छी तरह समझने के लिए एक उदाहरण की मदद लेते हैं :
- मान लीजिए आप SIP के जरिए हर महीने 10,000 रुपये निवेश करने का फैसला करते हैं. अब अगर आप यह निवेश पावर SIP के जरिए करते हैं, तो हर इंस्टालमेंट को बाजार में लगाने से पहले एक वैल्यूएशन मॉडल के जरिये यह तय किया जाएगा कि आपकी रकम को इक्विटी और डेट के बीच किस अनुपात में बांटकर लगाना है.
- मिसाल के तौर पर अगर बाजार का वैल्यूएशन ज्यादा है तो 10 हजार रुपये का 50 फीसदी या उससे भी कम हिस्सा इक्विटी में लगाया जाएगा, जबकि बाकी हिस्सा अस्थायी तौर पर डेट में निवेश किया जाएगा.
- अगर उसके अगले महीने की SIP का निवेश करते समय बाजार कुछ नीचे आ गया, यानी न ज्यादा न महंगा तो हो सकता है वैल्यूएशन मॉडल के हिसाब आपके 10 हजार रुपये का 70 या 80 फीसदी हिस्सा इक्विटी में लगाया जाए और बाकी 20 से 30 फीसदी अस्थायी तौर पर डेट में.
- इसी तरह हर महीने आपकी SIP की रकम का इनवेस्टमेंट उस वक्त बाजार के आकलन के आधार पर इक्विटी और डेट में बांटकर किया जाता रहेगा.
- अगर किसी महीने में बाजार में भारी करेक्शन आ गया और चुने गए शेयरों की कीमतें काफी आकर्षक हैं, तो हो सकता है वैल्यूएशन मॉडल इक्विटी में 300 फीसदी निवेश की सलाह दे. यानी मॉडल के हिसाब से उस महीने इक्विटी में 30 हजार रुपये लगाने चाहिए.
- लेकिन आपकी SIP 10 हजार रुपये की है. ऐसे में बाकी 20 हजार रुपये कहां से आएंगे? पावर SIP स्कीम में यह रकम इससे पहले अस्थायी तौर पर डेट में लगाई जा चुकी राशि में से निकालकर लगा दी जाएगी.
- इस तरह करेक्शन के दौरान आपकी SIP तो उतनी ही रहेगी, लेकिन इक्विटी में आपका निवेश बढ़ जाएगा, जिससे लंबे समय के दौरान आप बेहतर रिटर्न हासिल कर सकें.
अच्छी बात यह है कि बाजार के उतार-चढ़ाव के हिसाब से हर महीने निवेश की रणनीति बदलने के लिए आपको कुछ नहीं करना होगा. फंड मैनेजर पहले से तय रणनीति और पैरामीटर के आधार पर यह सारा काम अपने आप करते रहेंगे. आपको तो सिर्फ हर महीने SIP की निश्चित रकम निवेश करनी है.
SWP के लिए भी है पावर SIP
पावर SIP की यह रणनीति सिर्फ निवेश के लिए ही नहीं, बल्कि सिस्टमैटिक विथड्रॉल प्लान यानी SWP के लिए भी काम करती है. कुछ म्यूचुअल फंड्स ने अपनी पावर SIP स्कीम में ऐसा इंतजाम किया है कि न सिर्फ आपकी पूंजी को इक्विटी में लगाते समय, बल्कि शेयर से निकालते समय भी बाजार के उतार-चढ़ावों का ध्यान रखा जाता है.
कब काम नहीं करती पावर SIP की रणनीति
अगर बाजार ‘बबल फेज’ में हों, यानी हाई वैल्यूएशन के बावजूद बाजार में रैली जारी रहे, तो शॉर्ट टर्म में पावर SIP की रणनीति अंडर-परफॉर्म कर सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि पावर SIP में ज्यादा निवेश के लिए मार्केट करेक्शन का इंतजार किया जाता है और हाई वैल्यूएशन के दौरान इक्विटी में एलोकेशन कम रहता है. लेकिन 5 से 7 साल के मार्केट साइकल के दौरान पावर SIP का रिटर्न बेहतर रहने की उम्मीद रहती है. इसीलिए पावर SIP को 5 साल या उससे ज्यादा अवधि के निवेश के लिए बेहतर माना जाता है.