scorecardresearch

Year-ender 2020: साल 2021 में कैसा रहेगा कैपिटल मार्केट का हाल? कोरोना महामारी से मिले ये सबक

Capital market Outlook: साल 2020 के बारे में चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन कैपिटल मार्केट के लिए न तो सुस्त साल रहा है और न ही बोरिंग.

Capital market Outlook: साल 2020 के बारे में चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन कैपिटल मार्केट के लिए न तो सुस्त साल रहा है और न ही बोरिंग.

author-image
FE Online
New Update
Capital market Outlook

Capital market Outlook: साल 2020 के बारे में चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन कैपिटल मार्केट के लिए न तो सुस्त साल रहा है और न ही बोरिंग.

Capital market Outlook: साल 2020 के बारे में चाहे कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन एक चीज साफ है कि कैपिटल मार्केट के लिए न तो सुस्त साल रहा है और न ही बोरिंग. यहां ब्लादीमिर लेनिन की एक बात याद आती है कि ''दशकों बीत जाते हैं जब कोई घटना नहीं होती लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि हफ्तों में दशक गुजर जाते हैं.'' आर्थिक दृष्टि से इस साल की शुरुआत धीमी गति से हुई थी. वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी ग्रोथ रेट था 4.2 फीसदी. जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष यानी 2018-19 का जीडीपी ग्रोथ रेट था 6.1 फीसदी.

मौजूदा वित्त वर्ष यानी 2020-21 की पहली तिमाही यानी अप्रैल-जून की जीडीपी ग्रोथ में भारी गिरावट आई. यह सीधे 23.9 फीसदी घट गई. हालांकि दूसरी तिमाही में वापसी हुई और सारे अनुमानों को गलत बताते हुए गिरावट -7.5 फीसदी तक पहुंची. और जब साल का अंत हो रहा है तो लंबी अवधि यानी 10 साल के बॉन्ड का यील्ड साल की शुरुआत की तुलना में 50 से 60 बेसिस प्वॉइंट नीचे चले गए हैं. भले ही महंगाई 200 बेसिस प्वाइंट ज्यादा क्यों नहीं बढ़ गई हो.

2021 का आउटलुक

Advertisment

इस साल की बात करें तो अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस महामारी (कोविड-2019) की गहरा असर हुआ है. बहरहाल, 2018 से मुश्किलों का सामना कर रही अर्थव्यवस्था अब अपनी अहम रफ्तार हासिल करने की ओर बढ़ रही है. अब जब हम 2021 में प्रवेश करने जा रहे हैं तो हमें उम्मीद की कुछ किरणें नजर आ रही हैं.

Factor-1: ग्रोथ

कोविड-19 से पहले आर्थिक गतिविधियां सुस्त थीं. वित्तीय हालात काफी कठिन थे. बैंकिंग सेक्टर खराब एसेट क्वालिटी की समस्या से जूझ रहे थे. उद्योग गवर्नेंस के मुद्दे से जूझ रहे थे. इसलिए 2019-20 की आखिरी तिमाही तक आते-आते ग्रोथ भी घट कर 3.1 फीसदी रह गई.

कोविड का सबसे अच्छा नतीजा यह निकला कि हमारे सामने एक बेहद ढीली मौद्रिक नीति पेश हुई. लिक्विडिटी (तरलता) की अधिकता थी और इसने डिमांड साइकिल को चलाने में मदद की. हाई फ्रिक्वेंसी इंडिकेटर्स, जो अगस्त/सितंबर में काफी बेहतर दिख रहे थे वे फेस्टिवल सीजन के बाद भी अच्छे दिख रहे हैं. अहम डेटा मसलन वाहनों की बिक्री, बिजली की मांग, रेल माल ढुलाई और सीमेंट की लदान और जीएसटी कलेक्शन बढ़ने से अर्थव्यवस्था में मजबूती के संकेत मिल रहे हैं.

हमें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2022-23 में प्री-कोविड लेवल के 4 से 6 फीसदी के ग्रोथ रेट तक आने से पहले वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 3 से 4 फीसदी के ग्रोथ रेट तक पहुंचने में कामयाबी मिल जाएगी. वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी प्री कोविड लेवल के 4 से 6 फीसदी ग्रोथ रेट को पकड़ने से पहले जाकर 3 से 4 फीसदी की रफ्तार हासिल कर लेगी.

Factor-2: ब्याज दरें

जहां तक ब्याज दरों का सवाल है तो उम्मीद है कि आरबीआई वित्त वर्ष 2021-22 के ज्यादातर समय में यथास्थिति बनाए रखेगा. महंगाई को नियंत्रित करने की तुलना में आरबीआई ग्रोथ को प्राथमिकता देगा. कीमतों के लगातार बढ़ने के बावजूद आरबीआई की ओर से नीतिगत दरों को बढ़ाने की संभावना कम ही है. क्योंकि सीपीआई पर आधारित महंगाई में जो बढ़ोतरी हो रही है वह सप्लाई साइड या खाद्य पदार्थों या फिर दोनों की वजह से है. यह आरबीआई के नियंत्रण के दायरे से बाहर की चीज है.

अब जबकि ग्रोथ में तेली दिखने लगी है तो ऐसे हालात में पूंजीगत खर्चों को भी बढ़ाने की जरूरत होगी. ऐसे में कम लागत में पूंजी की मांग बढ़ेगी. इसलिए अगर आरबीआई की नीतियों की वजह से ब्याज दरें महंगी हुईं तो इकोनॉमी में ये जो शुरुआती रिकवरी दिख रही है वह बैठ जाएगी. इससे निवेश (सप्लाई साइड) में भी कमी आएगी. लिहाजा मध्यम अवधि में सप्लाई साइड की महंगाई बढ़ेगी.

Factor-3: महंगाई

महंगाई आरबीआई के लिए एक चिंता का विषय है. गर्मियों के पूरे महीनों के दौरान सप्लाई चेन के टूटने, पूरे देश में लगे लॉकडाउन, आयात पर रोक और मानसून की बारिश का विस्तार (अक्टूबर) देर से होने की वजह से वजह से ग्रोथ कमजोर रही है. हालांकि जनवरी में आलू, प्याज जैसी चीजों की महंगाई कम हो गई थी लेकिन अभी भी कोर महंगाई चिंता का विषय बनी हुई है. कमोडिटी की कीमतें मजबूत हुई हैं और ऊपर की ओर ही बढ़त दिख रही हैं. तांबा, एल्यूमीनियम, स्टील और कई कमोडिटी के दाम कई साल के उच्चतम स्तर पर हैं क्योंकि चीन में इन चीजों की मांग मजबूत बनी हुई है. कच्चे तेल की कीमत 40 से 45 डॉलर के बीच चल रही है. यहां तक कि ओपेक की ओर से जनवरी की शुरुआत से उत्पादन बढ़ाने की खबरों के बावजूद कीमतो में गिरावट नहीं आई है.

Factor-5: तेल की कीमतें रिकॉर्ड हाई पर

मार्च/अप्रैल में जब तेल की कीमतें काफी गिर गई थीं तो उत्पाद शुल्क बढ़ा दिए गए थे. अभी तक ये वापस नहीं लिए गए हैं और इससे तेल यानी पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकार्ड ऊंचाई पर बनी हुई हैं. इससे कीमतों में आम तौर पर बढ़त बनी रहेगी. लिहाजा कोर महंगाई दर के 5.5 फीसदी से ऊपर बने रहने का अनुमान है. मौद्रिक नीति कमेटी यानी MPC ने अपनी हाल की बैठकों में अल्पावधि की महंगाई में 100 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी का आकलन पेश किया है. हमें लगता है कि कुल महंगाई दर 2021 के ज्यादातर समय 5.5 से 6.5 फीसदी पर बनी रहेगी.

Factor-6: लिक्विडिटी

लिक्वडिटी पर 2021 में खास नजर रहेगी. आरबीआई की मौजूदा व्यवस्था नीतिगत दरों के जरिये लिक्वडिटी को बढ़ाने के पक्ष में है. यह पूंजी लागतों को कम रखने की समर्थक है. कोविड-19 से पहले भी इसका यही रुख रहा. हालांकि महंगाई की आशंकाओं को स्वीकार करने के बावजूद इसने लिक्विडिटी के सवाल पर कुछ नहीं कहा है. दरअसल आरबीई ने सेकंडरी मार्केट में सरकारी बॉन्ड की सक्रिय खरीदारी की है. लिक्विडिटी की मौजूदा अधिकता में इसका बड़ा हाथ है. विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूदा करंट अकाउंट सरप्लस और पूंजी इन-फ्लो भी जुड़ गया है. आरबीआई ने इस इनफ्लो को समेटने का काम किया है ताकि रुपये की कीमत बढ़ने को रोका जा सके.

हम उम्मीद करते हैं कि 2021 में भी आरबीआई रुपये की कीमतों में बढ़ोतरी रोकने की कोशिश करेगा. बाहरी मोर्चे पर किसी भी मैक्रो असंतुलन की स्थिति के असर से बचने के लिए आरबीआई रिजर्व बनाए रखना चाहेगा. इसके अलावा कम ब्याज दरें किसी भी करंसी इनफ्लो को रोकने का काम करेगी.

जब तक स्थानीय स्तर पर बैंकों की ओर से अनुचित रिस्क प्राइसिंग या लिक्विडिटी की अधिकता पैदा करने या इक्विटी मार्केट में जोखिम भरे एसेट में निवेश जैसी मैक्रो असंतुलन की स्थिति पैदा करने जैसी स्थिति नहीं दिखती तब तक आरबीआई जहां तक संभव होगा ऑपरेटिंग रेट के तौर पर रिवर्स रेपो रेट का इस्तेमाल करना पसंद करेगा.

हालांकि महंगाई का उच्च स्तर बरकरार रहा तो आरबीआई 2021 में किसी भी वक्त सिस्टम में ज्यादा लिक्विडिटी सोखने के लिए कदम उठा सकता है. या तो वह बाजार में मौजूद ज्यादा लिक्वडिटी सोख सकता है या फिर इसे कम कर सकता है.

2021 के लिए डेट प्रोडक्ट्स

ग्रोथ की वापसी, महंगाई बरकरार रहने, महंगी कमोडिटी और शेयर बाजार के दोबारा मजबूत होकर उभरने की वजह से किसी राहत पैकेज और ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम हो गई है. इसके उलट ग्रोथ को लेकर अपसाइड रिस्क बना रह सकता है.

तमाम विपरीत हालातों की वजह से लंबी अवधि जैसे दस साल के दौरान आउट परफॉर्मेंस को समर्थन मिलता दिख रहा है. ऐसे हालात 2 से 5 साल की अवधि वाले फंड हमारी प्राथमिकता होंगे. कॉरपोरेट बॉन्ड फंड, बैंकिंग, पीएसयू और डायनेमिक फंड 2021 के प्रमुख प्रोडक्ट बने रहेंगे.

(लेखक: कुमारेश रामाकृष्णन, सीआईओ-फिक्स्ड इनकम, पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड)

Indian Economy Mutual Fund