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The woman IPS officer of the Uttar Pradesh Cadre, has said in her complaint that the alleged fraudster has used her photo in her official uniform in the fake account. (Representational Image)
साइबर क्राइम के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में आपकी थोड़ी सी लापरवाही बड़ा नुकसान करा सकती है. इससे बचने का बस एक ही तरीका है सावधान रहें. आमतौर पर आप अपने कंप्यूटर को इस्तेमाल करने के बाद बंद कर देते हैं, लेकिन आप मोबाइल फोन को इस्तेमाल के बाद कभी भी स्विच ऑफ नहीं किया जाता. आज के समय में मोबाइल के ज़रिए यूपीआई पेमेंट से लेकर बैंकिंग ट्रांजेक्शन जैसे सारे अहम काम होते हैं. आपके बैंक बैलेंस से लेकर NEFT ट्रांसफर, EPFO स्टेटमेंट आदि एसएमएस के रूप में आते हैं, इतना ही नहीं, आप व्हाट्सएप पर अपने आधार कार्ड जैसी चीजें शेयर करते हैं. ऐसे में साइबर क्राइम की आशंका बनी रहती है. आइए जानते हैं कि आप साइबर क्राइम के इन खतरों से कैसे बच सकते हैं.
डिजिटल डिवाइस की निगरानी करें
Nortonlifelock के सेल्स एंड फील्ड मार्केटिंग डायरेक्टर रितेश चोपड़ा कहते हैं कि साइबर क्राइम सिर्फ इतना भर नहीं है कि वायरस अटैक के जरिए कोई हमारी प्राइवेसी के बारे में जान लिया या फिर जरूरी डाटा चुरा लिया. कई बार हम अपनी आदतों की वजह से भी ऐसा करने का ऑफर दे देते हैं. वह कहते हैं कि आमतौर पर पर्सनल कंप्यूटर इस्तेमाल करने के बाद हम में ज्यादातर लोग उसे बंद कर देते हैं, लेकिन मोबाइल फोन कभी भी स्विच ऑफ नहीं करते हैं, जबकि उसका इस्तेमाल हम अपने रोजमर्रा के हर काम में करते हैं. इस पर बैंक बैलेंस से जुड़ा मैसेज, फंड ट्रांसफर, ईपीएफओ स्टेटमेंट तमाम जरूरी लेनदेन के मैसेज आते हैं. कई बार हम खुद व्हाट्सएप के जरिए अपना बोर्डिंग पास या आधार कार्ड किसी और को शेयर करते हैं. इसके अलावा एप के माध्यम से डाक्टर्स का अप्वाइंटमेंट या बाहर से फूड मंगाते हैं. ऐसा करते समय हमें अपने डिजिटल डिवाइस को सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने की जरुरत है.
मोबाइल फोन में रखें एंटी-वायरस साफ्टवेयर
रितेश चोपड़ा सलाह हेते हैं कि आपको अपने सभी डिवाइस में एक बेहतर प्रोटेक्शन सॉफ़्टवेयर यानी एंटी-वायरस का इस्तेमाल करना चाहिए. लगभग 90 फीसदी लोग अपने पर्शनल कंप्यूटर की सुरक्षा के लिए एंटी-वायरस का इस्तेमाल करना जरूरी भी समझते हैं. मगर मोबाइल फोन की सुरक्षा के लिए बहुत कम ही लोग एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं. जबकि फोन खरीदते समय ही आपको सबसे पहले एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर के लिए पैसे खर्च करना चाहिए. नॉर्टन 360 एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर का जिक्र करते हुए रितेश चोपड़ा ने बताया कि केवल 999 रुपये कीे खर्च पर आपको सलाना तीन डिवाइस के प्रोटेक्शन के लिए सुविधा मिल जाती है. एक बार मोबाइल फोन में यह नॉर्टन 360 इस्टाल कर लेने के बाद आपको मैसेज फ़िल्टरिंग जैसी तमाम सुविधाएं मिलने लगती हैं. नॉर्टन 360 एंटी-वायरस सॉफ़्टवेयर आपके फोन पर मैसेज के रुप में आए हानिकारक ट्रोजन या स्पाइवेयर वायरस के प्रति एलर्ट करता है. और यह साफ्टवेयर लगातार आपके फोन को स्कैन भी करता रहता है साथ ही खतरों के बारे में भी एलर्ट करता रहता है.
एप एडवाइजर एप करें डाउनलोड
Norton द्वारा एक साल पहले किए गए सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक औसतन भारतीय अपने फोन में 48 एप्स रखते हैं. इनमें से ज्यादातर लोग अपने मोबाइल फोन में एप को इस्तेमाल करने के बाद उसे लॉग ऑफ नहीं करते हैं और न ही वे लोग इन एप द्वारा मांगी गई परमिशन ऑप्शन के बारे में जानते हैं बावजूद उस पर अपनी सहमति दे देते हैं. हालांकि कुछ एप को इस्तेमाल करने के लिए माइक्रोफ़ोन, कैमरा और लोकेशन के लिए परमिशन देने की जरूरत पड़ सकती है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि लोग बिना जरुरत के अनजाने में किसी एप द्वारा मांगी गई परमिशन को सहमति दे बैठते हैं.
रितेश चोपड़ा बताते हैं कि आपको जानकर एक पल के लिए हैरानी हो सकती है कि आपके मोबाइल फोन पर कई सारे अनचाहे विज्ञापन आने शुरू हो गए हैं, ऐसा इसलिए होने लगा है क्योंकि आपके फोन में मौजूद एप आपकी बातचीत सुन रहे हैं या आपके ब्राउज़िंग हिस्ट्री को ट्रैक कर रहे हैं. इस पर नज़र रखने के लिए, आपको एक ऐप एडवाइज़र भी अपने फोन में डाउनलोड कर लेना चाहिए. ये आपके फोन में इन्स्टाल एप में किसी तरह का बदलाव होने पर आपको एलर्ट करता है. ठीक वैसे ही, जैसे आपको सभी ऐप के लिए माइक्रोफ़ोन और कैमरे के लिए परमिशन देने पर अलर्ट मिलता है.
रिस्क भरपूर है सावधान रहें
हमेशा विश्वसनीय साइट्स से ही कोई चीजें डाउनलोड करें. बिना ऑथेंटिसिटी की जांच किए अपने फोन के ब्राउजर या प्लेस्टोर से किसी भी एप या एक्सटेंशन को डाउनलोड न करें. दरअसल कुछ लिंक पर खतरनाक मालवेयर वायरस भी हो सकते हैं जो कीलॉगर प्रोग्राम की तरह होते हैं. इसे आप जैसे ही डाउनलोड करते हैं यह हैकर्स को आपके कीबोर्ड से डाटा चुराने का एक्सेस दे देता है. और आप जैसे ही अपना पासवर्ड इस्तेमाल करते हैं वैसे ही यह हैकर्स आपके पासवर्ड को हैक कर सकते हैं. ठीक ऐसे ही आप सोशल मीडिया पर देखे गए प्रोफाइल पर भरोसा न करें. किसी भी प्रोफाइल पर भरोसा करने से पहले उसके सभी दावों की पुष्टि कर लें. इस बात को ऐसे समझिए, मान लीजिए मैने सोशल मीडिया पर एक बड़ी कंपनी का एचआर मैनेजर होने का दावा कर दिया और आपको एक अच्छी नौकरी का लुभावना ऑफर देकर आप से जरूरी दस्तावेज या सैलरी स्लिप मांग लिया. बाद में आपको पता चले कि आपके साथ धोखाधड़ी हो गई. ये सब भी साइबर क्राइम के दायरे में आता है इसलिए सावधान रहें और सतर्क रहें.