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Koo App और CIIL में अहम करार, सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल और आपत्तिजनक भाषा की रोकथाम के लिए मिलाया हाथ

Koo App और CIIL के इस समझौते के तहत ऐसे शब्दों और अभिव्यक्तियों का कोष तैयार किया जाएगा, जिन्हें संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में आक्रामक या संवेदनशील माना जाता है.

Koo App और CIIL के इस समझौते के तहत ऐसे शब्दों और अभिव्यक्तियों का कोष तैयार किया जाएगा, जिन्हें संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में आक्रामक या संवेदनशील माना जाता है.

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Koo App और CIIL में अहम करार, सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल और आपत्तिजनक भाषा की रोकथाम के लिए मिलाया हाथ

CIILऔर Koo App मिल कर करेंगे काम

सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकने और भाषा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज (CIIL)ने देश में ही विकसित बहुभाषी माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म Koo App के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है ताकि इसकी कंटेंट मॉडरेशन नीतियों को मजबूत करने के साथ ही यूजर्स को ऑनलाइन सुरक्षा मुहैया की जा सके. कंपनी का कहना है कि यह समझौता यूजर्स को ऑनलाइन दुर्व्यवहार, बदमाशी और धमकियों से बचाने की दिशा में काम करेगा और एक पारदर्शी और अनुकूल इको सिस्टम बनाएगा.

Koo App कोष बनाने के लिए डेटा शेयर करेगा

इस समझौते के जरिये CIIL शब्दों, वाक्यांशों, संक्षिप्त रूपों और संक्षिप्त शब्दों सहित अभिव्यक्तियों का एक कोष तैयार करेगा, जिन्हें भारत के संविधान में आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं में आक्रामक या संवेदनशील माना जाता है।. जबकि Koo App कोष बनाने के लिए प्रासंगिक डेटा साझा करेगा और इंटरफेस बनाने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करेगा जो सार्वजनिक पहुंच के लिए कोष की मेजबानी करेगा. यह सोशल मीडिया पर भारतीय भाषाओं के जिम्मेदार इस्तेमाल को विकसित करने के लिए एक दीर्घकालिक समझौता है और यह यूजर्स को सभी भाषाओं में एक सुरक्षित और व्यापक नेटवर्किंग अनुभव प्रदान करके दो साल के लिए वैध होगा.

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CIIL और Koo को बेहतर नतीजे की उम्मीद

इस समझौते का स्वागत करते हुए CIIL के निदेशक प्रो. शैलेंद्र मोहन ने कहा कि भारतीय भाषाओं के यूजर्स को Koo मंच पर संवाद करने में सक्षम बनाना, वास्तव में समानता और बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार की अभिव्यक्ति है, जो हमारे बहुत सम्मानित संवैधानिक मूल्य हैं. CIIL और Koo के बीच समझौता ज यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रयास है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल, विशेष रूप से Koo App, बोलने लिखने की स्वच्छता के साथ आता है और यह अनुचित भाषा और दुरुपयोग से मुक्त है.

इस सहयोग पर प्रकाश डालते हुए Koo App के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अप्रमेय राधाकृष्ण ने कहा, “एक बेहतरीन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के रूप में Koo भारतीयों को कई भाषाओं में जुड़ने और चर्चा में सक्षम बनाता है. हम ऑनलाइन इको सिस्टम को बढ़ाकर अपने यूजर्स को सशक्त बनाना चाहते है, ताकि दुरुपयोग को प्रभावी तरीके से रोका जा सके. हम चाहते हैं कि हमारे यूजर्स भाषाई संस्कृतियों के लोगों के साथ सार्थक रूप से बातचीत करने के लिए मंच का लाभ उठाएं.

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