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4G की तरह ही Jio देश में "स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क" प्लान के साथ टेलीकॉम सेक्टर में फिर से अपनी धाक जमाने की तैयारी में है
Jio to bring Standalone 5G in India: देश में जल्द ही रिलायंस अपनी Jio 5G सेवाएं शुरू करने जा रहा है. रिलायंस जियो ने अपनी 45वीं सालाना आम बैठक में दिवाली तक भारत में 5जी के रोल आउट प्लान समेत कई बड़े ऐलान किये हैं. कंपनी की एजीएम में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कहा कि उनकी कंपनी का 5G नेटवर्क बाकी सभी कंपनियों से बेहतर होगा, क्योंकि Jio ने "स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क" लॉन्च करने की तैयारी की है. रिलायंस का दावा है कि उसके “standalone 5G network” की वजह से उपभोक्ताओं को बाकी कंपनियों के 5G कनेक्शन के मुकाबले किफायती और हाईस्पीड कनेक्शन का फायदा मिलेगा.
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रिलायंस जियो की 45वीं सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुए मुकेश अंबानी ने कहा कि "अधिकांश ऑपरेटर 4G इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही अपना 5G नेटवर्क लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं. जिसे गैर-स्टैंडअलोन 5G कहा जा सकता है. क्योंकि इन ऑपरेटर्स के 5G और 4G कनेक्शन के प्रदर्शन और क्षमता में कोई खास बदलाव नहीं होगा. जबकि रिलायंस जियो 5G सेवाओं के लिए पूरी तरह से नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है, जिसे स्टैंड-अलोन 5G कहा जा सकता है. हमारी 5G सर्विस किसी भी मायने में 4G नेटवर्क पर जरा भी निर्भर नहीं होगी.”
तेज इंटरनेट और पावरफुल ब्रॉडबैंड सेवाओं का जहां उपभोक्ताओं को बेसब्री से इंतजार है वहीं कुछ उपभोक्ता ऐसे भी हैं, जिनके दिमाग में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. मसलन, स्टैंडअलोन 5जी क्या है और ये नॉन-स्टैंडअलोन 5जी से बेहतर क्यों है? इसके क्या फायदे हैं? और भी ना जाने कितने सवाल उपभोक्ताओं के दिमाग में घूम रहे हैं.
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स्टैंडअलोन (SA) 5G बनाम गैर-स्टैंडअलोन (NSA) 5G
स्टैंडअलोन 5G और नॉन-स्टैंडअलोन 5G में ममुख्य अंतर उनके इंफ्रास्ट्रक्चर यानी बुनियादी ढांचे का है. स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर खास तौर पर 5G सेवाओं के लिए ही बनाया या डिजाइन किया गया है. यानी जियो का स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क उसके 4G नेटवर्क से बिलकुल अलग होगा. माना जा रहा है कि इससे जियो के 5G नेटवर्क पर बेहतर और ज्यादा तेज रफ्तार कनेक्टिविटी मिल पाएगी.
दूसरी तरफ, गैर-स्टैंडअलोन (NSA) 5G का मतलब ये है कि इसमें 5G कनेक्टिविटी के लिए भी मुख्य तौर पर उसी इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया जाएगा, जिसके जरिए फिलहाल 4G कनेक्टिविटी का संचालन हो रहा है. यानी 5G और 4G दोनों कनेक्शन एक ही इंफ्रास्ट्रक्चर को शेयर करेंगे. माना जा रहा है कि शेयर्ड इंफ्रास्ट्रक्चर की वजह से इसमें 5G नेटवर्क का परफॉर्मेंस उतना अच्छा नहीं होगा, जितना जियो के स्टैंअलोन 5G में मिलेगा.
कौन सा बेहतर है?
जानकारों का यही मानना है कि स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क की क्वॉलिटी और परफॉर्मेंस नॉन-स्टैंडअलोन (NSA) 5G के मुकाबले बेहतर रहेगी. लेकिन एयरटेल और वोडाफोन आइडिया जैसी कंपनियां गैर-स्टैंडअलोन 5G नेटवर्क का इस्तेमाल इसलिए कर रही हैं ताकि 5G सेवा को कम से कम समय में रोल-आउट किया जा सके. साथ ही स्टैंडअलोन 5G के मुकाबले इसे शुरू करने पर खर्च भी कम होगा. हालांकि रिलायंस ने अपनी स्टैंडअलोन 5G सेवा के किफायती होने का दावा किया है, लेकिन लागत के लिहाज से देखें तो इसे शुरू करना ज्यादा खर्चीला होगा. हालांकि ये भी संभव है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच बाजार में अपनी लीडरशिप पोजिशन कायम रखने के लिए जियो शुरुआती दौर में इस लागत को पूरी तरह कंज्यूमर से वसूल न करे.ने की बजाय अपना ध्यान बाजार के ज्यादा से ज्यादा हिस्से पर कब्जा जमाने पर केंद्रित करे.