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यह जरूरी हो गया है कि डिस्प्ले के जितने विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं, उनकी खासियतों और खामियों को समझ लें ताकि अपने बजट में बेस्ट ऑप्शन चुनने में आसानी हो. (Image- Pixabay)
OLED vs AMOLED vs POLED Display: जब आप स्मार्टफोन खरीदने जाते हैं तो उसके स्पेशिफिकेशंस के जरिए अपने लिए बेहतर मॉडल का चयन करते हैं. स्क्रीन साइज, बैट्री बैकअप, ऑपरेटिंग सिस्टम, रैम साइज, कैमरे की क्वालिटी इत्यादि के आधार पर आप अपने लिए स्मार्टफोन चुनते हैं. पहले सभी स्मार्टफोन की डिस्प्ले टेक्नोलॉजी समान थी लेकिन कुछ समय से अब डिस्प्ले भी महत्वपूर्ण हो गया है और इसमें OLED, AMOLED और POLED जैसे विकल्प आ गए हैं. मोबाइल फोन या स्मार्टफोन अब धीरे-धीरे बेसिक जरूरत बन गए हैं और इसके जरिए कई जरूरी काम निपटाए जाते हैं. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि डिस्प्ले के जितने विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं, उनकी खासियतों और खामियों को समझ लें ताकि अपने बजट में बेस्ट ऑप्शन चुनने में आसानी हो.
OLED Display
- OLED का मतलब ऑर्गेनिक लाइट एमिटिंग डायोड है. यह ऐसी डिस्प्ले टेक्नोलॉजी है जिसमें एलईडी ऑर्गेनिक मैटेरियल का होता है और जब इसमें करेंट गुजरती है तो यह लाइट उत्सर्जित करता है.
- इसका इस्तेमाल वाइब्रेंट कलर को डिस्प्ले करने के लिए किया जाता है यानी कि इसमें एलईडी के मुकाबले अधिक चमक होती है.
- लाइट उत्सर्जित करने वाले लेयर के चलते यह बहुत हल्का होता है और फ्लेक्सिबल होता है.
- इसमें एलसीडी की तरह बैकलाइट की जरूरत नहीं होती है.
- इसे आसानी से तैयार किया जा सकता है.
- इसमें करीब 170 डिग्री के एंगल तक का व्यू देख सकते हैं.
- हालांकि इसकी लाइफ एलसीडी और एलईडी डिस्प्ले टेक्नोलॉजी के मुकाबले कम होती है.
- इसके कलर बैलेंस में काफी वैरिएशन होता है.
- यह पानी से खराब हो सकता है यानी यह वॉटर रेजिस्टेंट नहीं है.
AMOLED Display
- OLED डिस्प्ले का एक टाइप ही है- एक्टिव मैट्रिक्स ओलेड जिसमें एलईडी को ड्राइव करने के लिए एक्टिव मैट्रिक्स (टीएफटी) का इस्तेमाल किया जाता है जो हर पिक्सल में करेंट को कंट्रोल करता है यानी कि पिक्सल को ट्रिगर करने के लिए टीएफटी (थिन फिल्म ट्रांजिस्टर) एक स्विच के तौर पर काम करता है. इसमें दो टीएफटी होती है जिनका काम अलग-अलग होता है. एक का काम स्टोरेज कैपेसिटर्स को चार्ज करना और बंद करना तो दूसरे का काम कैपेसिटर्स की चार्जिंग को बढ़ाना.
- इसमें हर पिक्सल लाइट ट्रांसमिट करता है जिसके चलते इसमें ओएलई़डी की तुलना में अधिक आर्टिफिशियल कंट्रास्ट रेट होता है. हालांकि ओएलईडी में पिक्सल पर हाई लेवल का कंट्रोल होता है जिसके चलते इसे पूरी तरह बंद किया जा सकता है और एमोलेड की तुलना में अधिक बेहतर कंट्रास्ट रेट मिल सकता है.
- इस डिस्प्ले को किसी भी आकार में बनाया जा सकता है यानी कि छोटे से लेकर बड़े स्क्रीन तक और इसमें बिजली की खपत भी एलईडी और ओएलईडी डिस्प्ले की तुलना में कम होती है.
- इसका रिफ्रेश रेट PMOLED की तुलना में अधिक होता है.
- इसका व्यूइंग एंक बेहतर है.
- यह ओएलईडी डिस्प्ले की तुलना में अधिक फ्लेक्सिबल है लेकिन इसमें बिजली की खपत अधिक है.
- तमाम खासियतों के बावजूद इसका सबसे बड़ा डिसएडवांटेज ये हैं कि समय के साथ-साथ इसकी क्वालिटी गिरती जाती है.
- अन्य डिस्प्ले टेक्नोलॉजी की तुलना में यह महंगी है यानी कि यह आमतौर पर महंगे स्मार्टफोन में ही मिल सकता है.
POLED Display
- इसका मतलब है प्लास्टिक लाइट एमिटिंग डायोड. इस तकनीक में ग्लास की बजाय पॉलीएथिलीन टेरेप्थैलेट (PET) जैसे फ्लेक्सिबल प्लास्टिक सब्स्ट्रेट का इस्तेमाल किया जाता है. ओलेड और पोलेड डिस्प्ले टेक्नोलॉजी में मुख्य अंतर यही है कि ओलेड में ग्लास का इस्तेमाल होता है जबकि पोलेड में प्लास्टिक का.
- पीईटी के इस्तेमाल के चलते बिना टूटे यह डिस्प्ले पैनल मोड़ा जा सकता है.
- ओलेड की तुलना में इसकी लागत कम होती है और मोटाई भी कम होती है यानी अधिक स्लिम होता है.
- यह ग्लास पैनल की तुलना में अधिक ड्यूरेबल होता है.
- अधिक फ्लेक्सिबिलिटी के चलते ओलेड पैनल की तुलना में यह अधिक शॉकप्रूफ होता है.
- इसकी डिस्प्ले क्वालिटी ओलेड की तुलना में कम बेहतर होती है क्योंकि ग्लास की ऑप्टिकल प्रॉपर्टी प्लास्टिक की तुलना में अधिक बेहतर और साफ होती है.
- इस डिस्प्ले पर स्क्रैच का डर रहता है.