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अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश से भारतीय निवेशकों को गूगल, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दुनिया की बड़ी कंपनियों हिस्सेदारी का मौका मिलता है.
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ग्लोबल लेवल पर पोर्टफोलियो डायवर्सिफिकेश के चलते निवेशकों को डोमेस्टिक मार्केट पर निर्भरता से जुड़ा रिस्क कम करने में भी मदद मिलती है.
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अमेरिकी डॉलर में निवेश से एक्सचेंज रेट में बदलाव का फायदा भी मिल सकता है, जिससे रुपये में एफेक्टिव रिटर्न बढ़ सकता है.
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भारतीय निवेशक अमेरिकी बाजार में 3 तरीकों से निवेश कर सकते हैं: विदेशी ब्रोकर के जरिये, भारतीय ब्रोकर्स के अंतरराष्ट्रीय टाई-अप के जरिये और म्यूचुअल फंड या ETF के जरिये.
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अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश करने से पहले उसके टैक्स इम्प्लिकेशन्स को समझना जरूरी है. डबल टैक्सेशन से बचने के लिए DTAA के तहत टैक्स एडजस्टमेंट किया जा सकता है.
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अमेरिकी बाजार में निवेश से जुड़ी चुनौतियों में एक्सचेंज रेट रिस्क भी शामिल है, जो आपके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है.
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अगर आप सीधे अमेरिकी बाजार में निवेश करना चाहते हैं तो अमेरिकी इंडस्ट्री, सरकारी नीतियों की जानकारी होना जरूरी है.
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अमेरिकी बाजार में निवेश का फैसला करने से पहले अपने निवेश सलाहकार की राय जरूर लें.
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