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Investing in US Market : अमेरिकी मार्केट में निवेश भारतीय निवेशकों के लिए एक रोमांचक संभावना है. लेकिन कोई भी फैसला करने से पहले पूरी जानकारी लेना जरूरी है. (Image : Pixabay)
Investing in US Market from India:डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के तौर पर कामकाज संभालने के बाद अमेरिकी बाजारों में तेजी नजर आई है. ट्रंप की संभावित आर्थिक नीतियों पर सारी दुनिया की नजरें टिकी हैं. अगर वे अपने पिछले भाषणों और बयानों में घोषित संरक्षणवादी (Protectionist) नीतियों की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, तो उसका असर सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था और बाजारों पर पड़ेगा. सवाल यह भी है कि अमेरिका के हितों को सबसे ऊपर रखने की उनकी नीति का लंबी अवधि में अमेरिकी कंपनियों और बाजारों को कितना फायदा होगा. आर्थिक-राजनीतिक सरगर्मी से भरे इस माहौल के बीच बहुत से निवेशक अमेरिकी बाजार में निवेश करने के बारे में भी सोच रहे होंगे. ऐसे में सवाल ये है कि किसी भारतीय निवेशक के लिए अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश करने के फायदे और चुनौतियां क्या हैं? और सारी बातों को समझने के बाद अगर कोई भारतीय निवेशक अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश करना चाहता है, तो इसके लिए उसे क्या करना होगा?
अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश के फायदे
अमेरिकी शेयर बाजार में निवेश भारतीय निवेशकों के लिए एक नई और रोमांचक संभावना है. इससे न सिर्फ दुनिया की दिग्गज कंपनियों में हिस्सेदारी का मौका मिलता है, बल्कि पोर्टफोलियो को ग्लोबल लेवल पर डायवर्सिफाई भी किया जा सकता है. गूगल, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी दुनिया की सबसे बड़ी और प्रभावशाली कंपनियां अमेरिकी मार्केट में लिस्टेड हैं. इन कंपनियों में निवेश से आपको उनकी ग्रोथ का लाभ मिल सकता है. ग्लोबल लेवल पर डायवर्सिफाइड निवेश आपके पोर्टफोलियो को उन जोखिमों से बचा सकता है, जिनका सामना केवल भारतीय बाजार पर निर्भर रहने पर करना पड़ सकता है. अमेरिकी डॉलर में निवेश करने से आपको कई बार एक्सचेंज रेट में बदलाव का फायदा भी हो सकता है. अगर अमेरिकी डॉलर भारतीय रुपये के मुकाबले मजबूत होता है, तो रुपये में आपका एफेक्टिव रिटर्न भी बढ़ सकता है.
अमेरिकी मार्केट में कैसे करें निवेश
भारतीय निवेशकों के लिए अमेरिकी मार्केट में निवेश करने तीन तरीके हो सकते हैं. पहला तरीका है विदेशी ब्रोकर के जरिये एक अकाउंट खोलने का. यह अमेरिकी शेयर बाजार में डायरेक्ट इनवेस्टमेंट का सबसे सीधा तरीका है. कई अमेरिकी ब्रोकर भारतीय निवेशकों को खाता खोलने की इजाजत देते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक की लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के तहत आप हर साल 250,000 डॉलर तक का निवेश कर सकते हैं. भारत के निवेशकों के लिए अमेरिका में निवेश का दूसरा तरीका भारतीय ब्रोकर्स के अंतरराष्ट्रीय टाई-अप के जरिये निवेश करने का हो सकता है. भारतीय ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म, मिसाल के तौर पर ICICI Direct, HDFC Securities और Kotak Securities की अमेरिकी ब्रोकर्स के साथ साझेदारी है. इनके जरिये आप आसानी से अमेरिकी स्टॉक्स में निवेश कर सकते हैं.इनमें कई प्लेटफॉर्म पर आपको 3-इन-1 खाता खोलने की सुविधा मिलती है. कुछ प्लेटफॉर्म्स पर आप महंगे शेयरों के छोटे हिस्से (fractional shares) भी खरीद सकते हैं. इसके अलावा तीसरा तरीका एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ETF) और म्यूचुअल फंड के जरिये निवेश करने का है. यह आम निवेशकों के लिए अमेरिकी बाजार में निवेश का सबसे सरल और सुरक्षित तरीका कहा जा सकता है. ऐसे कई भारतीय म्यूचुअल फंड्स या ETF हैं जो S&P 500 जैसे अमेरिकी इंडेक्स को ट्रैक करते हैं और आपको अमेरिकी शेयर बाजार में एक्सपोजर देते हैं.
अमेरिकी मार्केट में निवेश से जुड़े टैक्स के नियम
भारतीय निवेशकों को अमेरिकी मार्केट में निवेश करते समय ऐसे इनवेस्टमेंट के टैक्स से जुड़े असर (Tax Implications) को भी समझना होगा. मिसाल के तौर पर
- अमेरिकी शेयरों से होने वाले लाभ पर भारत में कैपिटल गेन्स टैक्स लगेगा. इसमें 24 महीनों से अधिक के निवेश पर हुए लाभ पर 20% की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) टैक्स लगेगा.
- 24 महीनों से कम के निवेश पर हुआ मुनाफा शॉर्ट-टर्म गेन माना जाएगा, जिस पर आपको अपने इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स देना पड़ सकता है.
- अमेरिकी कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड पर अमेरिका में 25% डिविडेंड टैक्स कटता है. हालांकि, दोहरे टैक्सेशन से बचने के समझौते (DTAA or Double Taxation Avoidance Agreement) के तहत इसे भारत में अपनी टैक्स लायबिलिटी यानी देनदारी में एडजस्ट किया जा सकता है.
- भारत में टैक्सेशन से जुड़े नियमों के अनुसार आपके लिए अपने विदेशी एसेट्स और उनसे होने वाली आमदनी को इनकम टैक्स रिटर्न में घोषित करना जरूरी है.
अमेरिकी बाजार में निवेश से जुड़ी चुनौतियां
भारतीय निवेशकों को अमेरिकी बाजार में निवेश करते समय कुछ चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है, जिन्हें पहले से जानना जरूरी है. मिसाल के तौर पर :
एक्सचेंज रेट रिस्क : डॉलर और रुपये के बीच एक्सचेंज रेट्स में उतार-चढ़ाव आपके निवेश पर मिलने वाले रिटर्न को प्रभावित कर सकता है.
प्लेटफॉर्म फीस : अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म द्वारा ली जाने वाली फीस और कमीशन आपके रिटर्न को कम कर सकते हैं.
अगर आपको अमेरिकी बाजार में निवेश करना है, तो आपको अमेरिका की इंडस्ट्री और कंपनियों से जुड़ी जानकारी, सरकारी नीतियों के असर और पूरे अमेरिकी इकनॉमिक सिस्टम की समझ होनी चाहिए. खास तौर पर अगर आप यूएस मार्केट में सीधे निवेश करना चाहते हैं. अगर आप इस तरह की जानकारी को लगातार ट्रैक नहीं कर सकते, तो अमेरिकी बाजारों में डायरेक्ट इनवेस्टमेंट आपके लिए ज्यादा रिस्की हो सकता है.
(डिस्क्लेमर: इस लेख का मकसद सिर्फ जानकारी देना है, निवेश की सलाह देना नहीं. निवेश से जुड़े फैसले करने से पहले अपने निवेश सलाहकार की राय जरूर लें.)