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इंडिया-अमेरिका 50-50 : निवेश के लिए अपनाएं ये तरीका, मिलेगा डबल इंजन कंपाउंडिंग का फायदा

Indo-American Portfolio: पोर्टफोलियो में 50 फीसदी शेयर भारतीय कंपनियों के और 50 फीसदी शेयर अमेरिकी कंपनियों का रखना डाइवर्सिफिकेशन का अच्छा तरीका है.

Indo-American Portfolio: पोर्टफोलियो में 50 फीसदी शेयर भारतीय कंपनियों के और 50 फीसदी शेयर अमेरिकी कंपनियों का रखना डाइवर्सिफिकेशन का अच्छा तरीका है.

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Sushil Tripathi
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Compounding Return

Double Engine Compounding: भारतीय निवेशकों के लिए मुनाफे का नया मंत्र है डबल इंजन कंपाउंडिंग

Double Engine Compounding: घरेलू शेयर बाजार आज के दौर में सबसे मजबूत इमर्जिंग मार्केट में शामिल है. घरेलू बाजार का आकार साल दर साल बढ़ रहा है और यह विदेशी निवेशकों के लिए भी हॉट स्‍पॉट बन गया है. बाजार की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि कोविड महामारी के दौर के बाद से यह ग्‍लोबल बाजारों की तुलना में ज्‍यादा स्‍टेबल और फ्लेक्सिबल साबित हुआ है. दूसरी ओर अमेरिकी बाजार दुनियाभर के निवेशकों के लिए निवेश का एक बड़ा अवसर के रूप में रहा है. लेकिन हाल फिलहाल में या पिछले कुछ साल से जिस तरह का माहौल ग्‍लोबल लेवल पर बना है कि भारतीय निवेशकों के पास 50 फीसदी और 50 फीसदी अमेरिका बेस्‍ड पोर्टफोलियो से डबल इंजन कंपाउंडिंग रिटर्न हासिल करने का मौका है. इस बारे में मर्सिलस पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस ने ब्‍लॉग में डिटेल रिपोर्ट दी है.

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50:50 इंडो: अमेरिकी पोर्टफोलियो

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मौजूदा दौर की बात करें तो जब जियो पॉलिटिकल टेंशन बढ़ रहा है और साथ ही संरक्षणवाद को भी कई देश बढ़ावा दे रहे हैं, दुनिया की 2 बड़े लोकतंत्र के साथ 2 बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं भारत और अमेरिका के निवेशकों को कंपाउंडिंग के सुनहरे दशक से मुनाफा कमाने का मौका है. चीन और रूस के अमेरिका के प्रति खराब रिश्‍तों और दूसरी ओर भारत और चीन के बीच बढ़ रहे टेंशन को देखते हुए, इन 2 बड़े बाजार वाले देशों को एक दूसरे के और नजदीक आने का विकल्‍प खुला हुआ है. जिससे दोनों को ट्रेड और डिफेंस के जरिए लाभ होगा. वहीं दोनों देशों के निवेशकों को भी 50:50 इंडो: अमेरिकी पोर्टफोलियो के जरिए डबज इंजन कंपाउंडिंग रिटर्न हासिल करने का भी मौका है. 50:50 इंडो: अमेरिकी पोर्टफोलियो का सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसी एक ही देश के शेयर बाजार के आसपास बनाए गए स्टैंडअलोन पोर्टफोलियो की तुलना में इसमें मजबूत रिस्‍क-एडजस्‍टेड रिटर्न हासिल होगा. विशेष रूप से, 50:50 ग्लोबल कंपाउंडर्स : कंसिस्टेंट कंपाउंडर्स पोर्टफोलियो और भी अधिक पावरफुल कॉम्बिनेशन है.

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भारत क्यों अमेरिका के लिए स्वीट स्पॉट

भारत एक ग्लोबल स्वीट स्पॉट बन गया है, जिसके पीछे यहां का बड़ा बाजार और बेहतर ग्रोथ है. जैसे-जैसे चीन को लेकर अमेरिका की चिंताएं बढ़ रही हैं, भारत सप्लाई चेन, इनोवेशन सेंटर और ज्वॉइंट वेंचर्स में एक बेहतर विकल्प बनकर उभरा है. तेजी से ओपेन हो रही इकोनॉमी और एक मजबूत टेक्नोलॉजी सेक्टर के साथ भारत में क्षमताएं अपार हैं. जिसके चलते यह अमेरिका के लिए सबसे महत्वपूर्ण संभावित पार्टनर बन सकता है.

इंडेक्स लेवल पर डबल इंजन कंपाउंडिंग का गणित

अगर पिछले 20 साल की बात करें तो निफ्टी 50 ने रुपये के टर्म में 14.3% कंपाउंड रिटर्न दिया है. इसी अवधि में, S&P 500 इंडेक्‍स मेंने रुपये के टर्म में 12.5% कंपाउंडिंग ​​रिटर्न रहा है. (सोर्स: ब्लूमबर्ग)

अगर आपने 20 साल पहले 50:50 इंडो: अमेरिकन पोर्टफोलियो शुरू किया होता (50:50 अनुपात को बनाए रखने के लिए एनुअल रीबैलेंसिंग के बाद), तो आपका रिस्‍क एडजस्‍टेड रिटर्न 0.95 फीसदी और आपका सीएजीआर रिटर्न 13.9% होता. यह स्टैंडअलोन निफ्टी-50 के 0.66 और स्टैंडअलोन एस एंड पी 500 के 0.92 मिलने वाले रिस्‍क एडजस्‍टेड रिटर्न से बेहतर है. ध्यान देने की बात यह है कि 50% S&P500: 50% Nifty50 पोर्टफोलियो का 13.9% 20-ईयर CAGR रिटर्न इसी अवधि में MSCI वर्ल्ड के रिटर्न (10.6%) से कहीं अधिक है. वहीं एक डबल इंजन कंपाउंडिंग पोर्टफोलियो बनाकर चलाकर, आप डाइवर्सिफिकेशन का लाभ भी पा सकते हैं.

(Disclaimer: यहां जानकारी मर्सिलस पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विस द्वारा ब्लॉग के जरिए दी गई है. यह फाइनेंशियल एक्सप्रेस के निजी विचार नहीं हैं. बाजार में जोखिम होते हैं, इसलिए निवेश के पहले एक्सपर्ट की राय लें.)

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