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Monsoon Rain: देश में मानसून सीजन की दूसरी छमाही (अगस्त और सितंबर) के दौरान सामान्य बारिश होने की संभावना है. (Reuters)
Monsoon Impact on Economy/Capital Markets: भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार इस मानसून सीजन में जुलाई में सामान्य से अधिक बारिश हुई है. जबकि देश में मानसून सीजन की दूसरी छमाही (अगस्त और सितंबर) के दौरान सामान्य बारिश होने की संभावना है. IMD के अनुसार जुलाई में पूरे देश में 13 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई, हालांकि देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों में 1901 के बाद से जुलाई में कम बारिश दर्ज की गई. लेकिन अगस्त और सितंबर में इन इलाकों में ज्यादा बारिश का अनुमान है. इस सीजन की बात करें तो जून में सामान्य से 9 फीसदी कम बारिश हुई तो जुलाई में 13 फीसदी अधिक. देश में अब तक मानसून सीजन में सामान्य 445.8 मिमी की तुलना में 467 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जो 5 फीसदी अधिक है. फिलहाल यह रिपोर्ट देश की अर्थव्यवस्था के साथ कैपिटल मार्केट के लिए पॉजिटिव है. बड़ौदा बीएनपी पारिबा म्यूचुअल फंड के CEO, सुरेश सोनी ने बताया है कि किस तरह से मानसून आपके पोर्टफोलियो पर असर डाल सकता है.
असल में अगर मॉनूसन सामान्य रहता है तो इससे जहां देश की रूरल इकोनॉमी को सपोर्ट मिलता है, वहीं इससे कई सेक्टर सीधे तौर पर बेनेफिशियरी साबित होते हैं. इससे खेती किसानी की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जैसा इस साल देखने को मिल रहा है. बीज, फर्टिलाइजर, कृषि के उपकरण, पंप आदि की मांग तेज होती है. वहीं रूरल इनकम बढ़ी तो खरीदने की क्षमता बढ़ती है. इससे बाजार में कंजम्पशन बढ़ता है. एफएमसीजी, आटो सेक्टर खासतौर से टू व्हीलर और कज्यूमर गुड्स की मांग बढ़ती है. वहीं खरीदने की क्षमता बढ़ने से दोपहिया वाहनों, ऑटो, रूरल फाइनेंसिंग, एग्रोकेमिकल और चुनिंदा FMCG कंपनियों को भी फायदा होता है. जिससे इनके स्टॉक में भी तेजी देखने को मिलती है.
साउथ-वेस्ट मानसून बेहद अहम
भारत में जून से सितंबर तक चलते वाले मानसून सीजन की शुरुआत दक्षिण-पश्चिम (साउथ-वेस्ट) मानसून के साथ होती है. साउथ-वेस्ट मानसून इस मौसम में कुल पानी की जरूरतों का करीब 75 फीसदी पूरा करता है. ऐसे में यह खरीफ और रबी दोनों फसलों की खेती के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है. खरीफ की फसल का मौसम जुलाई से अक्टूबर तक होता है, जबकि रबी की फसल का मौसम अक्टूबर से मार्च तक होता है. दक्षिण-पश्चिम मानसून न केवल खरीफ की फसलों पर सीधा प्रभाव डालता है बल्कि जलाशयों, झीलों और ग्राउंडवाटर जैसे जल स्रोतों को फिर से भरने में भी मदद करता है, जिनका उपयोग रबी फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है.
मानसून से किन सेक्टर पर ज्यादा असर
एग्री सेक्टर: मानसून का असर खरीफ और रबी दोनों फसलों की पैदावार पर पड़ता है. खरीफ फसल का मौसम जुलाई से अक्टूबर तक होता है, जबकि रबी फसल का मौसम अक्टूबर से मार्च तक होता है. दक्षिण-पश्चिम मानसून न सिर्फ खरीफ फसलों पर सीधा प्रभाव डालता है, बल्कि जलाशयों जैसे वाटर सोर्सेज को फिर से भरने में भी सहायता करता है. झीलें और ग्राउंड वाटर का उपयोग रबी फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है.
रूरल डिमांड और सेंटीमेंट: मानसून का अक्सर रूरल डिमांड (ग्रामीण मांग) और सेंटीमेंट पर सीधा प्रभाव पड़ता है. जिससे उन कंपनियों और सेक्टर के स्टॉक प्राइस पर असर पड़ता है, जो रूरल कंजम्पशन पर निर्भर हैं. मानसून से प्रभावित होने वाले सेक्टर एफएमसीजी, ऑटो-ट्रैक्टर और दोपहिया वाहन, फर्टिलाइजर और पेस्टिसाइड (कीटनाशक) हो सकते हैं.
FMCG सेक्टर: एफएमसीजी सेक्टर मानसून से 2 तरह से प्रभावित होते हैं. एक ओर, कमोडिटी की कीमतें इन कंपनियों की लागत को प्रभावित करती हैं. दूसरी ओर, रूरल इनकम पर भी इसका असर पड़ता है. मानसून अच्छा रहता है तो रूरल इनकम बढ़ती है, जिससे रूरल डिमांड भी बढ़ती है. इसका फायदा एफएमसीजी सेक्टर को होता है.
ऑटो सेक्टर: रूरल सेल्स विशेष रूप से पैसेंजर व्हीकल और टू व्हीलर सेगमेंट के लिए महत्वपूर्ण है. बेहतर मानसून से रूरल इनकम बढ़ती है तो ऑटो सेक्टर को भी अच्छी डिमांड मिलती है.
बैंकिंग सेक्टर: मानसून का ग्रामीण अर्थव्यवस्था के हेल्थ से सीधा संबंध है. यह बैंकिंग सेक्टर, एनबीएफसी और माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को प्रभावित कर सकता है. असल में डिमांड बढ़ने से फाइनेंस कंपनियों या बैंक के लोन बिजनेस में भी ग्रोथ आती है.
महंगाई
बारिश का सीधा असर कृषि उपज पर पड़ता है. बारिश चावल, सोयाबीन, मक्का, गन्ना और तिलहन जैसी फसलों की पैदावार को प्रभावित कर सकती है, जिससे खाने पीने की चीजों की महंगाई पर असर पड़ सकता है.
कच्चे माल की कीमतें
अनाज, दालें और फसलें आमतौर पर अलग अलग इंडस्ट्री के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होते हैं. ऐसे में पैदावार पर होने वाला असर कच्चे माल की कीमतों को सीधे प्रभावित कर सकता है.
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
इस साल मानसून की बारिश बेहतर रही है. एग्री-इकोनॉमी और बाजार के सेंटीमेंट के लिए मानसून महत्वपूर्ण है. हालांकि शेयर बाजार की चाल सिर्फ किसी एक फैक्टर की वजह से तय नहीं होती है. बाजार के मूवमेंट के पीछे कई तरह के फैक्टर कारक होते हैं, जिनमें एफआईआई द्वारा किया गया निवेश या बिकवाली, ब्याज दरें, कॉर्पोरेट रिजल्ट, जियो-पॉलिटिकल और मानसून शामिल हैं. बाजार का अनुमान लगाने और फिर इनमें से हर फैक्टर पर रिएक्शन देने की बजाय, निवेशक अगर अच्छी तरह से फाइनेंशियल प्लानिंग बनाकर उस पर कायम रहें तो बेहतर रिजल्ट मिल सकता है. इसके लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लेनी चाहिए.