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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को कहा कि ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ सम्मेलन विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने का एक मंच बन गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) का उद्घाटन किया. शिखर सम्मेलन में उन्होंने साझा वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए विकासशील देशों के बीच एकता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. पीएम मोदी ने उद्घाटन सत्र के दौरान कहा कि भारत हमेशा ग्लोबल साउथ के साथ खड़ा रहा है और यह शिखर सम्मेलन समावेशी विकास के लिए हमारी प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है. उन्होंने आतंकवाद, उग्रवाद, जलवायु परिवर्तन और खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई के महत्व पर जोर दिया, जो विकासशील देशों को काफी प्रभावित करते हैं.
पीएम मोदी ने आगे कहा कि संघर्षों और अन्य चिंताओं के बीच मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में अनिश्चितता है और कहा कि वैश्विक शासन और वित्तीय संस्थान आज की चुनौतियों से निपटने में अक्षम हैं. आज हम ऐसे समय में मिल रहे हैं जब दुनिया भर में अनिश्चितता का माहौल है. दुनिया कोविड के प्रभाव से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई है. दूसरी ओर, युद्ध की स्थितियों ने हमारी विकास यात्रा के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. पीएम मोदी ने कहा कि हम जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना कर रहे हैं और अब स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियां भी हैं.
फूड, हेल्थ, एनर्जी सिक्योरिटी की समस्याओं का सामना कर रहे हैं: मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने विकासोन्मुखी दृष्टिकोण यानी डेवलेपमेंट ओरिएंटेड अप्रोच (development oriented approach) से G20 को आगे बढ़ाया और इस ग्रुप के हमारे नेतृत्व में हमने‘ग्लोबल साउथ’ की अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और प्राथमिकताओं के आधार पर एजेंडा बनाया. मोदी ने ‘ग्लोबल साउथ’ के सामने आ रही चुनौतियों पर कहा कि अनिश्चितताओं का माहौल है, हम भोजन, स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा की समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें एकजुट होना चाहिए: मोदी
प्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद हमारे समाज के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं. उन्होंने आह्वान किया कि ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों को एक-दूसरे के साथ खड़ा होना चाहिए और साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए एकजुट रहना चाहिए. प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक स्तर पर शासन संबंधी विषयों से निपटने के लिए पिछली शताब्दी में स्थापित संस्थाएं वर्तमान शताब्दी की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा, ‘‘हमारी ताकत, एकता में है और इसी एकता के बल पर हम नयी दिशा की ओर बढ़ेंगे.
यह समय की मांग है कि ग्लोबल साउथ के देश एक साथ आएं, एक स्वर में एक-दूसरे की ताकत बनें. हमें एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना चाहिए, अपनी क्षमताओं को साझा करना चाहिए और दुनिया की दो-तिहाई मानवता को मान्यता देनी चाहिए. भारत तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी कर रहा है, जो भारत के 'वसुधैव कुटुंबकम' के दर्शन पर आधारित एक कार्यक्रम है.
विदेश मंत्रालय ने इस हफ्ते की शुरुआत में एक बयान में कहा कि यह शिखर सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' के दृष्टिकोण का विस्तार है. शिखर सम्मेलन का उद्देश्य ग्लोबल साउथ के देशों को एक मंच पर विभिन्न प्रकार के मुद्दों पर चर्चा करने और विचारों और प्राथमिकताओं का आदान-प्रदान करने के लिए एक साथ लाना है. विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह शिखर सम्मेलन विभिन्न जटिल मुद्दों पर आगे की चर्चा के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा, जो दुनिया को प्रभावित करते रहते हैं, जिसमें संघर्ष, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित संकट और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं, जो सभी विकासशील देशों को असमान रूप से और गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं.
बता दें कि भारत ने जनवरी 2023 में पहला वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) और नवंबर 2023 में दूसरा वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट दोनों ही डिजिटल रूप से आयोजित किया था. ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ सम्मेलन विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने का एक मंच बन गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली की मेजबानी में डिजिटल रूप से आयोजित ग्लोबल साउथ सम्मेलन में कहा कि ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ सम्मेलन एक ऐसा प्लेटफार्म है, जहां हम उन लोगों की जरूरतों, आकांक्षाओं को आवाज देते हैं, जिन्हें अभी तक अनसुना किया गया है. ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है.