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Delhi HC rejects Kejriwal's plea: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक्साइज पॉलिसी मामले में गिरफ्तार करने की प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी है.
Delhi HC rejects Arvind Kejriwal's plea against his arrest by ED: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक्साइज पॉलिसी मामले में गिरफ्तार करने की प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्रवाई पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मुहर लगा दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि केजरीवाल को पहले ईडी की रिमांड में देने और फिर न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजे जाने की प्रक्रिया में भी कानूनी तौर पर कोई खामी नहीं है. कोर्ट ने मंगलवार को अरविंद केजरीवाल की जिस याचिका पर आदेश दिया, वह गिरफ्तारी को चुनौती देने के लिए थी, जमानत की मांग करने के लिए नहीं. याचिका में गिरफ्तारी को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट (PMLA) की धारा 19 के खिलाफ बताया गया था. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने केजरीवाल की तरफ से पेश इस दलील को खारिज कर दिया.
संवैधानिक नैतिकता की चिंता है राजनीतिक नैतिकता की नहीं : हाईकोर्ट
अदालत ने केंद्र सरकार की एजेंसी द्वारा लोकसभा चुनावों से ठीक पहले के राष्ट्रीय विपक्षी दल के संयोजक और मुख्यमंत्री के खिलाफ की गई इस कार्रवाई के राजनीतिक पहलू पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि कोर्ट का काम संवैधानिक नैतिकता (constitutional morality) का ध्यान रखना है, राजनीतिक नैतिकता (political morality) की फिक्र करना नहीं. जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा (Justice Swarana Kanta Sharma) की अदालत ने अपने आदेश के दौरान ऐसी कई और बातें भी कही हैं, जिन्हें भारत जैसे संवैधानिक लोकतंत्र में पढ़ना-समझना जरूरी है.
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश की बड़ी बातें
अरविंद केजरीवाल की ईडी के हाथों गिरफ्तारी कानून के खिलाफ नहीं है.
केजरीवाल की रिमांड और न्यायिक हिरासत को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता.
याचिकाकर्ता की मनी लॉन्डरिंग केस में गिरफ्तारी और रिमांड की जांच कोर्ट को कानून को ध्यान में रखते हुए करनी है. चुनावों की टाइमिंग से इसका कोई लेना-देना नहीं है.
याचिकाकर्ता (केजरीवाल) को पता रहा होगा कि लोकसभा चुनावों का एलान होना है. लेकिन वे जांच में शामिल नहीं हुए.
ईडी की तरफ से किसी बदनीयती (mala fide) का प्रमाण मौजूद नहीं है, ऐसे में चुनावों से पहले गिरफ्तारी को टाइमिंग के आधार पर दी गई चुनौती स्वीकार करने लायक नहीं है.
न्यायाधीश कानून से बंधे होते हैं, राजनीति से नहीं. न्यायिक फैसले कानूनी सिद्धांतों के आधार पर लिखे जाते हैं, राजनीतिक जुड़ावों (political affiliations) के आधार पर नहीं.
राजनीतिक वजहों को कानून के तहत काम करने वाली अदालतों के सामने पेश नहीं किया जा सकता.
चुनाव लड़ने के लिए कौन किसे टिकट देता है और कौन इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदता है, इससे अदालत को कोई मतलब नहीं है.
अदालतों को संवैधानिक नैतिकता की फिक्र होती है, राजनीतिक नैतिकता की नहीं.
कोर्ट में पेश मौजूदा मामला केंद्र सरकार और केजरीवाल के बीच टकराव का नहीं है. यह केजरीवाल और ईडी के बीच का मुकदमा है.
जांच एजेंसी को आपराधिक न्याय से जुड़े मामले (criminal jurisprudence) में एक व्यक्ति की सुविधा के हिसाब से तहकीकात करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता. जांच तो अपने हिसाब से ही चलेगी.
ईडी की तरफ से जुटाए गए मैटेरियल के मुताबिक एक्साइज पॉलिसी बनाने और इससे जुड़ी साजिश में केजरीवाल का हाथ रहा है और उन्होंने आपराधिक ढंग से मिले धन का इस्तेमाल भी किया है.
ईडी का आरोप है कि केजरीवाल एक्साइज पॉलिसी तैयार करने और उसके एवज में रिश्वत मांगने में निजी तौर पर और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक की हैसियत से शामिल रहे हैं.
ईडी के पास मौजूद मैटेरियल केजरीवाल की गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त हैं.
ईडी द्वारा पेश मैटेरियल में हवाला डीलर्स के बयान और AAP के एक सदस्य का बयान भी शामिल है. फैसले में उनके नामों का खुलासा नहीं किया गया है.
कोर्ट का मानना है कि ईडी ने पर्याप्त मैटेरियल पेश किए हैं, जिनमें वायदा माफ गवाहों के बयान के साथ ही उनके (AAP के) अपने उम्मीदवार का बयान भी है, जिसमें उसने गोवा चुनाव के लिए धन दिए जाने की बात कही है. इससे गोवा चुनाव के लिए धन भेजे जाने की चेन पूरी होती है.
याचिकाकर्ता ने वायदा माफ गवाह (approvers) बने रेड्डी और राघव के बयानों को अविश्वसनीय बताते हुए उन पर सवाल उठाए हैं. लेकिन कोर्ट का मानना है कि अप्रूवर को माफी देने के फैसले पर संदेह करना, न्यायिक प्रक्रिया पर उंगली उठाना होगा.
याचिकाकर्ता की तरफ से ईडी द्वारा दस्तावेजों और वायदा माफ गवाहों के पिछले बयानों को उपलब्ध नहीं कराए जाने पर सवाल उठाया गया है. इस पर कोर्ट का कहना है कि याचिकाकर्ता को ट्रायल का सही समय आने पर दस्तावेजों के निरीक्षण का अधिकार है. लेकिन वह सही समय अभी नहीं आया है.
केजरीवाल को गवाहों से सवाल-जवाब (cross examine) करने का अधिकार दिया जाएगा. उन लोगों को सही समय पर सवालों के जवाब देने होंगे, लेकिन यह अदालत अभी ट्रायल कोर्ट की तरह काम नहीं कर सकती और रिट ज्युरिसडिक्शन (writ jurisdiction) के मामले में मिनी ट्रायल नहीं कर सकती. (रिट ज्युरिसडिक्शन के तहत ऊंची अदालतें लोगों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के मामले में सीधे दखल दे सकती हैं)
वायदा माफ गवाहों से जुड़ा कानून (law of approver) सौ साल से भी पुराना है. यह कोई एक साल पुराना कानून नहीं है, जिसके बारे में यह आरोप लगाया जा सके कि इसे याचिकाकर्ता (केजरीवाल) को फंसाने के लिए लाया गया है.
अदालत ने हाल ही में अमानतुल्लाह केस में दिए गए अपने फैसले का संदर्भ देते हुए कहा कि आम लोगों और खास लोगों के लिए कानूनी अधिकारक्षेत्र अलग-अलग नहीं हो सकते.
यह अदालत कानून की ऐसी अलग-अलग कैटेगरी नहीं बना सकती, जिसमें एक मुख्यमंत्री को आम नागरिकों से अलग विशेष अधिकार दिए जाएं.
केजरीवाल द्वारा जांच में शामिल न होने और उनकी वजह से जांच में हुई देरी ने न्यायिक हिरासत में मौजूद लोगों को भी प्रभावित किया है.
अदालत में ईडी की तरफ से पेश फाइलों से पता चलता है कि केजरीवाल को कानून के तहत प्राप्त सभी मौके दिए गए और पंकज बंसल केस में बताई गई कानूनी प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया गया है.
यह अदालत मानती है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी संबंधित धाराओं या पंकज बंसल केस में दिए गए निर्देशों के खिलाफ नहीं है. उनकी रिमांड को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है.
मजिस्ट्रेट कोर्ट का आदेश तार्किक और सही था.
दिल्ली शराब नीति मामले में ईडी द्वारा अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी कानूनी तौर पर वैध है.
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अरविंद केजरीवाल के खिलाफ क्या है मामला
तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने 21 मार्च को दिल्ली एक्साइज पॉलिसी केस में गिरफ्तार किया था. ट्रायल कोर्ट ने 1 अप्रैल को उन्हें 15 अप्रैल तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया. ईडी का आरोप है कि केजरीवाल कथित शराब घोटाले में आपराधिक ढंग से कमाए गए धन के मुख्य लाभार्थी हैं. दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन भी इस केस के सिलसिले में जेल में बंद हैं. इनके अलावा संजय सिंह समेत आम आदमी पार्टी के कई और बड़े नेता भी इस केस की जांच के दायरे में हैं. संजय सिंह हाल ही में इसी मामले में जमानत पर रिहा हुए हैं.