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सरकारी बैंकों के राइट ऑफ किए गए लोन की खराब रिकवरी ने सरकार को चिंता में डाल दिया है. (Illustration : C R Sasikumar)
PSU Banks recovery rate from written-off accounts is only 14 per cent : सरकारी बैंकों (PSBs) के राइट ऑफ किए जा चुके लोन की बेहद कमजोर रिकवरी रेट से मोदी सरकार परेशान है. पिछले 5 वित्त वर्षों के दौरान देश के सरकारी बैंकों ने 7.34 लाख करोड़ रुपये के कर्ज राइट ऑफ किए हैं. बट्टे खाते में डाले गए इन एकाउंट्स से रिकवरी का रेट महज 14 फीसदी रहा है, जिसे मोदी सरकार बढ़ाना चाहती है.
रिकवरी रेट बढ़ाकर 40% करने का निर्देश : सूत्र
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि राइट ऑफ किए जा चुके लोन एकाउंट्स के कमजोर रिकवरी रेट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को चिंता में डाल दिया है. यही वजह है कि मंत्रालय ने सरकारी बैंकों से रिकवरी रेट को बढ़ाकर 40 फीसदी तक पहुंचाने का निर्देश दिया है. दरअसल, मार्च 2022 में खत्म 5 सालों के दौरान देश के सरकारी बैंकों ने 7.34 लाख करोड़ रुपये के जो लोन राइट ऑफ किए थे, उनमें से सिर्फ 1.03 लाख करोड़ रुपये ही वसूल किए जा सके. इस तरह मार्च 2022 के अंत में सरकारी बैंकों के नेट राइट ऑफ लोन की रकम 6.31 लाख करोड़ रुपये हो चुकी थी.
बैंकों के मैनेजमेंट की मीटिंग बुलाएगी सरकार
सूत्रों के मुताबिक इस मुद्दे की समीक्षा के लिए डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज बहुत जल्द सरकारी बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक करने जा रहा है. इस प्रस्तावित बैठक में राइट ऑफ किए जा चुके खातों से जुड़े उन मुकदमों की समीक्षा भी की जाएगी, जो अलग-अलग अदालतों, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) और डेट रिकवरी अपीलेट ट्रिब्यूनल (DRAT) में पेंडिंग हैं. वित्त मंत्रालय ने सरकारी बैंकों से कहा है कि उन्हें राइट ऑफ किए जा चुके बड़े एकाउंट्स के मामले में ज्यादा सक्रियता दिखानी होगी.
राइट-ऑफ के बाद वसूली में ढिलाई बरतते हैं सरकारी बैंक
सूत्रों के मुताबिक वित्त मंत्रालय को लगता है कि नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) को एक बार राइट-ऑफ कर दिए जाने के बाद सरकारी बैंक उनकी वसूली को लेकर ढिलाई बरतने लगते हैं. जिससे रिकवरी रेट काफी कम हो जाता है, जो सरकार को मंजूर नहीं है. दूसरी तरफ राइट ऑफ किए गए लोन की वसूली होने पर वो रकम सीधे बैंक के मुनाफे में जुड़ती है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार आता है.
मार्च 2022 में खत्म 6 सालों के दौरान देश के तमाम बैंकों ने कुल मिलाकर 11.17 लाख करोड़ रुपये के फंसे हुए कर्जों को अपने बही-खातों से राइट ऑफ किया है यानी बट्टे खाते में डाला है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक इसमें सरकारी बैंकों (PSBs) द्वारा राइट ऑफ किए गए लोन 8,16,421 करोड़ रुपये के हैं, जबकि 3,01,462 करोड़ रुपये के लोन प्राइवेट बैंकों ने राइट ऑफ किए हैं.
बैंक क्यों करते हैं लोन को राइट ऑफ?
बैंक अपनी बैलेंस शीट को साफ-सुथरा रखने, टैक्स बेनिफिट लेने और कैपिटल के बेहतर मैनेजमेंट के लिए नियमित तौर पर फंसे हुए कर्जों को राइट-ऑफ करते रहते हैं. राइट ऑफ की ये प्रक्रिया आरबीआई के दिशानिर्देशों और बैंकों के बोर्ड्स द्वारा मंजूर पॉलिसी के आधार पर पूरी की जाती है. फंसे हुए लोन (NPAs) राइट-ऑफ किए जाने पर बैंकों की बैलेंस शीट से हटा दिए जाते हैं. इनमें 4 साल पुराने वे एनपीए भी शामिल हैं, जिनके लिए 100 फीसदी प्रॉविजनिंग की जाती है. ऐसा करने से बैंकों की बैलेंस शीट अच्छी दिखने लगती है.