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Supreme Court on Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सेलेक्टिव रवैया नहीं अपना सकता SBI, उसे चुनावी बॉन्ड के यूनीक नंबर समेत सारी उपलब्ध जानकारी का खुलासा करना पड़ेगा. (Photo : Shared by PTI on X)
Supreme Court orders SBI to make full disclosure of electoral bond details by 21 March: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) सेलेक्टिव रवैया नहीं अपना सकता और उसे चुनावी बॉन्ड की सभी ‘‘संभावित’’ जानकारियों का खुलासा करना पड़ेगा. इसमें वो यूनीक बॉन्ड नंबर भी शामिल हैं जिनसे चंदा देने वाले और बॉन्ड हासिल करने वाले राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक संबंध का खुलासा होगा. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई चेयरमैन को चुनावी बॉन्ड से जुड़े सभी विवरण मुहैया कराने के बाद अदालत में हलफनामा दाखिल करके यह जानकारी देने के लिए 21 मार्च 2024 को शाम 5 बजे तक का समय दिया है.
चुनावी बॉन्ड के नंबर का खुलासा हमारे आदेश में शामिल : SC
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में अपने फैसले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से बॉन्ड के सभी विवरण का खुलासा करने को कहा था. इसमें किसी संदेह की गुंजाइश नहीं है. बैंक को आदेश पर अमल के लिए अगले आदेश का इंतजार नहीं करना चाहिए था. संविधान पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से कहा, ‘‘हमने एसबीआई से सभी जानकारियों का खुलासा करने के लिए कहा था जिसमें चुनावी बॉन्ड के यूनीक नंबर भी शामिल हैं. एसबीआई को विवरण का खुलासा करने में सेलेक्टिव रुख नहीं अपनाना चाहिए था.’’
नंबर देने हैं तो दे देंगे, कोई दिक्कत नहीं है : SBI
सुनवाई के दौरान स्टेट बैंक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि अगर नंबर देने हैं, तो हम दे देंगे. इसमें कोई दिक्कत नहीं है. उन्होंने SBI का बचाव करते हुए कहा कि बैंक ने अब तक जो खुलासे किए, वो कोर्ट के अप्रैल 2019 के अंतरिम आदेश के बारे में बैंक की समझ पर आधारित थे.
SBI नंबर्स के खुलासे के लिए ड्यूटी बाउंड है : SC
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते देश के सबसे बड़े बैंक SBI को अपने आदेश के बावजूद चुनावी बॉन्ड के यूनीक अल्फा-न्यूमेरिक नंबर का खुलासा न करने के लिए ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी करके कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि एसबीआई उन नंबर्स के खुलासे के लिए "ड्यूटी बाउंड" है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड मामले में औद्योगिकी संगठनों - एसोचैम और कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) की अनलिस्टेड याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने बॉन्ड विवरण का खुलासा करने से जुड़े अपने फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध करने वाले ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (SCBA) के अध्यक्ष के पत्र पर विचार करने से भी इनकार कर दिया. सीजेआई ने एससीबीए के अध्यक्ष से कहा, ‘‘आपने मेरे स्वत: संज्ञान लेने संबंधी अधिकारों को लेकर पत्र लिखा है. ये सभी प्रचार से जुड़ी बातें हैं. हम इसमें नहीं पड़ेंगे.’’
सभी दलों ने चंदा देने वालों का विवरण नहीं दिया : प्रशांत भूषण
याचिकाकर्ता समाजसेवी संगठन की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कई प्रमुख राजनीतिक दलों ने चंदा देने वालों का विवरण नहीं दिया है. केवल कुछ ही दलों ने ऐसा किया है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 अप्रैल 2019 को एक अंतरिम आदेश पारित करके राजनीतिक दलों से कहा था कि वे उन्हें मिलने वाले चंदे की पूरी जानकारी एक सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग को मुहैया कराएं.
संविधान पीठ ने 15 फरवरी को सुनाया ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार की लाई चुनावी बॉन्ड योजना को ‘‘असंवैधानिक’’ करार देते हुए रद्द कर दिया था. इसके साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वो चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई रकम और बॉन्ड के जरिये चंदा पाने वाले राजनीतिक दलों का ब्योरा 13 मार्च तक सार्वजनिक कर दें. कोर्ट ने बॉन्ड जारी करने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को भी निर्देश दिया था कि वो इससे जुड़ी सारी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए. लेकिन SBI ने दी गई डेडलाइन तक निर्देश का पालन नहीं किया और कोर्ट से 30 जून 2024 तक का समय मांगा. सुप्रीम कोर्ट ने SBI का यह अनुरोध खारिज करते हुए उसे बेहद कड़ी फटकार लगाई और अवमानना की कार्रवाई करने की चेतावनी दी. इसके बाद एसबीआई ने चुनावी बॉन्ड से जुड़े कुछ आंकड़े अगले ही दिन चुनाव आयोग को सौंप दिए. लेकिन बॉन्ड के यूनीक नंबर का ब्योरा उसने अब तक नहीं दिया है.
चुनावी बॉन्ड से सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक चुनावी बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिला है. कई ऐसी कंपनियों ने भी इन बॉन्ड के जरिये राजनीतिक चंदा दिया है, जिनके खिलाफ आयकर विभाग, ED या CBI जैसी केंद्र सरकार की एजेंसियों की जांच होती रही है. कई घाटे वाली कंपनियों ने भी बढ़चढ़कर करोड़ों रुपये के चंदे दिए हैं. इससे यह पूरी स्कीम दबाव डालकर वसूली करने और मनी लॉन्डरिंग जैसे गंभीर आरोपों में घिरी नजर आ रही है. हालांकि मोदी सरकार के बड़े मंत्री अब भी इस स्कीम का यह कहकर बचाव कर रहे हैं कि गुमनाम ढंग से राजनीतिक चंदा देने की सुविधा देने वाली इस स्कीम का मकसद दरअसल चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना और काले धन का असर खत्म करना था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम के बारे में इससे बिलकुल उल्टी टिप्पणियां की हैं. अब सबकी नजर इस बात पर रहेगी कि बॉन्ड के यूनीक नंबर का डिटेल सामने आने पर किन नई बातों का खुलासा होता है.