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आयोग ने अपने 24 जून 2025 के आदेश में स्पष्ट किया कि SIR की प्रक्रिया उसके संवैधानिक दायित्वों का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वोटर लिस्ट की शुद्धता और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है. (Image: PTI)
सड़क से लेकर संसद तक विपक्ष के विरोध के बावजूद, चुनाव आयोग ने मतदाता सूचियों की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए देशभर में वोटर लिस्ट का स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Voter List SIR) शुरू करने का ऐलान किया है. आयोग ने 24 जून को जारी आदेश में कहा कि यह कवायद उसके संवैधानिक दायित्व का हिस्सा है, ताकि मतदाता सूची की पवित्रता बनी रहे और केवल पात्र नागरिकों के नाम ही दर्ज हों. आयोग ने बताया कि बिहार में यह प्रक्रिया पहले चल रही है, जबकि देश के बाकी हिस्सों के लिए जल्द ही शेड्यूल जारी की जाएगी.
देशभर में वोटर लिस्ट स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया उसके संवैधानिक दायित्वों का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वोटर लिस्ट की शुद्धता और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है. आयोग ने कहा - मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए अत्यंत आवश्यक है.
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क्या है SIR और क्यों जरूरी है यह प्रक्रिया?
चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई इस SIR प्रक्रिया के तहत देशभर में डुप्लिकेट, मृत या अयोग्य मतदाताओं की पहचान कर उन्हें वोटर लिस्ट से हटाया जाएगा. विशेष रूप से उन मतदाताओं को चिन्हित किया जा रहा है जो स्थायी और वर्तमान दोनों पते पर पंजीकृत हैं. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल मतदाताओं के वंशजों को किसी भी प्रकार का "एनसेस्ट्री प्रूफ (ancestry proof)" देने की आवश्यकता नहीं है.
बिहार में 51 लाख गड़बड़ियां सामने आईं
हाल ही में बिहार में SIR के तहत हुई जांच में 18 लाख मृत मतदाता, 26 लाख ऐसे मतदाता जो अपनी विधानसभा सीट बदल चुके हैं, और 7 लाख डुप्लिकेट एंट्रीज़ पाई गईं. आयोग ने इसे वोटर लिस्ट की शुद्धता और चुनावी पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अनिवार्य कदम बताया. इसके जवाब में आयोग ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड का उपयोग केवल पहचान सत्यापन के लिए किया जा रहा है, नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं.
SIR पर संसद में विपक्ष में हमलावर
बिहार में सामने आई इन विसंगतियों को लेकर राजनीतिक घमासान तेज़ हो गया है. पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने SIR प्रक्रिया की आलोचना करते हुए इसे पक्षपातपूर्ण बताया और संकेत दिए कि विपक्ष राज्य में आगामी चुनावों का बहिष्कार भी कर सकता है. मामला संसद तक पहुंच गया है, जहां मानसून सत्र लगातार चार दिनों तक बाधित रहा.
सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में SIR की वैधता पर सुनवाई
SIR की वैधता को लेकर मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, जो आगामी 28 जुलाई 2025 को इस पर अगली सुनवाई करेगा. अदालत में आयोग ने साफ किया है कि यह प्रक्रिया पूरी तरह कानूनी ढांचे—Representation of the People Act, 1950 और Registration of Electors Rules, 1960—के तहत की जा रही है.
क्या आगे होगा?
देशव्यापी पुनरीक्षण की विस्तृत समय-सारणी चुनाव आयोग जल्द जारी करेगा. फिलहाल SIR को लेकर जहां एक ओर सरकार इसकी संवैधानिक उपयोगिता पर ज़ोर दे रही है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक उपकरण बता रहा है. आने वाले दिनों में यह मुद्दा भारत की चुनावी राजनीति में और अधिक चर्चा का केंद्र बन सकता है.