/financial-express-hindi/media/media_files/2025/05/23/QTiX3ifOP9Yf48kaLs4K.jpg)
हार्वर्ड के लगभग 27% छात्र विदेशी हैं, इसलिए इस फैसले से छात्र संख्या में बड़ा बदलाव आ सकता है. (Photo : AP)
Trump Administration Bars Harvard Foreign Students Enrollment News: अमेरिका में शिक्षा और राजनीति की टकराहट एक नए मोड़ पर पहुंच गई है. ट्रंप प्रशासन (Donald Trump) ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर विदेशी छात्रों के दाखिले पर रोक लगा दी है. इस फैसले ने न सिर्फ अमेरिका की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी को मुश्किल में डाल दिया है, बल्कि उच्च शिक्षा से जुड़े कई बड़े सवाल भी खड़े कर दिए हैं.
गुरुवार को अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से वह अधिकार छीन लिया जिससे वह अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला दे सकती थी. यह आदेश विभाग की प्रमुख क्रिस्टी एल नोएम के निर्देश पर जारी हुआ. अब हार्वर्ड कोई नया विदेशी छात्र नहीं ले सकेगी और जो पहले से पढ़ रहे हैं, उन्हें या तो दूसरी यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर होना होगा या फिर अपने कानूनी वीज़ा स्टेटस को खोने का खतरा उठाना पड़ेगा.
क्या हैं सरकार के आरोप?
नोएम का आरोप है कि हार्वर्ड ने पिछले पांच सालों में उन विदेशी छात्रों की जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिन पर हिंसक प्रदर्शनों और गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का शक था. उनका दावा है कि यूनिवर्सिटी ने "अमेरिका-विरोधी और आतंकवाद समर्थक" तत्वों को न केवल पनाह दी, बल्कि उन्हें डर फैलाने और कैंपस का माहौल खराब करने की इजाजत भी दी.
इतना ही नहीं, नोएम ने यह भी आरोप लगाया कि हार्वर्ड ने चीन की अर्धसैनिक बलों के सदस्यों को ट्रेनिंग दी, हालांकि इस दावे का कोई सार्वजनिक सबूत अब तक सामने नहीं आया है. सरकार ने यूनिवर्सिटी को 72 घंटे का समय दिया है कि वह विदेशी छात्रों से जुड़े सभी डिजिटल और अनुशासनात्मक रिकॉर्ड जमा कराए.
हार्वर्ड का पलटवार
इस फैसले के बाद हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता जैसन न्यूटन ने ट्रंप प्रशासन की कार्रवाई को “गैरकानूनी और बदले की भावना से प्रेरित” बताया. उन्होंने कहा, “हम अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और विद्वानों की रक्षा के लिए हर कानूनी रास्ता अपनाएंगे.”
न्यूटन ने आगे कहा कि 140 से ज्यादा देशों से आने वाले छात्र हार्वर्ड और अमेरिका दोनों के लिए अमूल्य हैं और इस तरह के फैसले न सिर्फ यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक मिशन को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि पूरे देश को कमजोर करते हैं.
अर्थव्यवस्था और प्रतिष्ठा पर असर
2024-25 के शैक्षणिक वर्ष में हार्वर्ड में 6,793 अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो कुल छात्रसंख्या का लगभग 27% हैं. इतने बड़े वर्ग पर असर पड़ना यूनिवर्सिटी के कई विभागों की आर्थिक स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है. कुछ विभाग अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर काफी निर्भर हैं.
गौरतलब है कि ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में हार्वर्ड पहले ही 2.7 यूएस डॉलर अरब से ज़्यादा की फेडरल फंडिंग रोक दिए जाने का सामना कर चुकी है और अब यूनिवर्सिटी व्हाइट हाउस के खिलाफ एक कानूनी लड़ाई भी लड़ रही है, जिसमें उसने सरकार पर राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप लगाया है.
कानूनी लड़ाई शुरू होने की तैयारी
कानूनी जानकारों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन का यह फैसला अदालत में टिक नहीं पाएगा. अमेरिकन काउंसिल ऑन एजुकेशन के अध्यक्ष टेड मिशेल का कहना है कि "यह फैसला गलत, संकीर्ण सोच वाला और कानून के खिलाफ है." उन्होंने कहा कि यूनिवर्सिटी का सर्टिफिकेशन रद्द करने के लिए एक तय प्रक्रिया होती है, लेकिन सरकार ने उसे नज़रअंदाज़ किया है.
प्रेसिडेंट्स अलायंस ऑन हायर एजुकेशन एंड इमिग्रेशन की मिरियम फेल्डब्लम ने भी यही बात दोहराई. उन्होंने कहा कि “सरकार ने न अपील की प्रक्रिया अपनाई और न ही अपने ही बनाए नियमों का पालन किया.”
फैसला अभी क्यों आया?
यह कदम उस समय आया है जब अमेरिका भर में गाज़ा युद्ध से जुड़े छात्रों के प्रदर्शनों को लेकर सरकार पहले से ही सख्ती दिखा रही है. पिछले महीने जब छात्र वीज़ा रद्द करने को लेकर कोर्ट में केस हुआ, तब होमलैंड सिक्योरिटी ने कुछ समय के लिए वीज़ा डाटा में बदलाव रोक दिया था.
व्हाइट हाउस ने इस फैसले को "अमेरिकी मूल्यों की रक्षा" बताया है. प्रवक्ता एबिगेल जैक्सन ने कहा, “हार्वर्ड अब अमेरिका-विरोधी, यहूदी-विरोधी और आतंकवाद समर्थक विचारों का अड्डा बन चुका है. अब उन्हें अपने कर्मों का अंजाम भुगतना होगा.”