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भदोही के ताने-बाने से सामने आई एक कहानी, ग्लोबल ट्रेड वॉर ने सिखाई असली वित्तीय तैयारी की अहमियत

टैरिफ का असर छोटे निर्यात शहरों पर सीधे पड़ता है. जब व्यापार में अनिश्चितता बढ़ती है, तब परिवारों को संभालने में मदद बड़ी कमाई नहीं, बल्कि स्थिर और सुरक्षित वित्तीय तैयारी, जैसे इमरजेंसी फंड, करती है.

टैरिफ का असर छोटे निर्यात शहरों पर सीधे पड़ता है. जब व्यापार में अनिश्चितता बढ़ती है, तब परिवारों को संभालने में मदद बड़ी कमाई नहीं, बल्कि स्थिर और सुरक्षित वित्तीय तैयारी, जैसे इमरजेंसी फंड, करती है.

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Sneha Virmani
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Story from Bhadohi Why Emergency Fund Required

भदोही के बुनकरों पर ट्रंप टैरिफ का असर, सामने आई इमरजेंसी फंड की अहमियत. (AI Image: Perplexity)

मैं भदोही में रहती हूं जिसे भारत की कारपेट सिटी कहा जाता है. मुझे अब भी याद है जब पहली बार मैं कालीन फैक्ट्री में गई थी. सबसे पहले कानों में आवाज पड़ी, लकड़ी की चरमराहट, धागों का खिंचाव, हाथों की लयबद्ध हरकतें. दर्जनों बुनकर झुके हुए गलीचे बुन रहे थे और करघे की धमक में उनकी बातें दब रही थीं. यह वही लय थी जिसे मेरे पति और उनके साथी मजदूर दिल से जानते हैं.

अब यह लय टूटी सी लगती है. अमेरिका से जो ऑर्डर आसानी से मिल जाया करते थे वे अब टैरिफ की चर्चाओं में उलझकर देर से आने लगे हैं. मजदूरों को दोपहर से ही फैक्ट्री छोड़ना पड़ता है क्योंकि बिना नए ऑर्डर के बिजली का खर्च उठाना मुश्किल हो गया है. एक मालिक ने कहा कि वह हफ्ते में सिर्फ दो शिफ्ट चला पाता है मुनाफे के लिए नहीं बल्कि इसलिए कि उसके लोग खाली हाथ घर न लौटें.

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वॉशिंगटन में दिया गया एक भाषण या किसी टैरिफ लाइन में बदलाव और यहां डिनर टेबल की बातचीत सीधे इस सवाल पर आ जाती है कि क्या इस महीने फैक्ट्री सबको काम दे पाएगी. तब मुझे एहसास हुआ कि जब वॉशिंगटन को जुकाम होता है तो हमारे करघों को बुखार चढ़ जाता है.

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पैसे का वह सबक जिसकी मुझे उम्मीद नहीं थी

यह पैसे का सबक मुझे कभी उम्मीद नहीं थी. सबकुछ अपनी आंखों के सामने बदलते देखना मेरे लिए जैसे फाइनेंशियल प्लानिंग का क्रैश कोर्स रहा. जिस दिन मेरे पति घर लौटे और बताया कि एक बड़ा ऑर्डर कैंसिल हो गया है, उसी दिन समझ आया कि आमदनी कितनी नाजुक होती है. एक्सपोर्ट रुकते हैं तो हमारी छोटी-छोटी खुशियां भी थम जाती हैं.

मेरे लिए सीख साफ थी कि सेविंग को बाद के लिए नहीं छोड़ा जा सकता. यही वह सहारा है जब दुनिया की राजनीति आपके रोजगार से खिलवाड़ करती है. जैसे मेरी मां बारिश वाले दिनों में सोने के सिक्के अलग रखती थीं, वैसे ही अब मैं हमारी इमरजेंसी फंड को अनिवार्य मानती हूं. यह कोई बड़ा निवेश नहीं, बस इतना है कि जब हालात बिगड़ें तो घर-परिवार की गाड़ी चलती रहे.

कागजों पर आंकड़े चमकदार लगते हैं. जुलाई 2025 में भारत का कुल निर्यात 68.27 अरब डॉलर रहा, पिछले साल से 4.52 फीसदी ज्यादा. कालीनों का निर्यात भी 8.05 फीसदी बढ़कर 133 मिलियन डॉलर तक पहुंचा. लेकिन जब आप बुनकरों से बात करेंगे तो उनकी चिंता साफ नजर आती है. आंकड़े चाहे विकास दिखाएं, एक टैरिफ का फैसला महीनों की मेहनत पर पानी फेर सकता है. विकास का मतलब हमेशा सुरक्षा नहीं होता.

इसीलिए मैंने अपने घर की अर्थव्यवस्था को एक छोटे माइक्रो-इकोनॉमी की तरह देखना शुरू किया है. अच्छे वक्त में बचत जोड़नी है, जहां संभव हो डाईवर्सिटी लानी है और हमेशा मानकर चलना है कि गिरावट कभी भी आ सकती है.

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मुश्किल वक्त का सामना करने के लिए प्लानिंग है जरूरी

दुनिया सिर्फ एक्सपोर्ट के आंकड़े देखती है, हम उनके पीछे के चेहरों को देखते हैं. वो आदमी जो रात तक बुनाई करता है, वो महिलाएं जो घटते बजट संभाल रही हैं, वो बच्चे जिनका भविष्य इस बात पर निर्भर है कि ऑर्डर कितने स्थिर रहते हैं.

भदोही में हिम्मत सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि जिंदा रहने की वजह है. हमारी फैक्ट्रियां नोटबंदी, GST और COVID लॉकडाउन जैसी चुनौतियों से भी टिक गईं. हर बार जब तालमेल टूटता, हमने उसे फिर से जोड़ लिया.

यह सबक सिर्फ एक्सपोर्टर्स के लिए नहीं है. झटके हर घर में आते हैं. चाहे अचानक नौकरी चली जाए, मेडिकल बिल बढ़ जाए या EMI अचानक बढ़ जाए. ‘सामान्य’ जीवन कितना नाजुक हो सकता है, इसे समझने के लिए बिजनेस चलाना ही जरूरी नहीं

तो, ये हैं कुछ वित्तीय सबक जो हमारे परिवार ने अनुभवों से सीखे

इमरजेंसी फंड बनाएं – कम से कम तीन से छह महीने के खर्च के बराबर. यही फर्क है घबराहट और राहत के बीच.

आय के स्रोत विविध रखें – केवल एक स्रोत पर भविष्य निर्भर न करें. साइड हसल, किराये की आमदनी या छोटा SIP भी मायने रखता है.

कठिन महीनों के लिए तैयारी करें – मेरे पिता हमेशा कहते थे, “हर दिन रविवार नहीं होता.” बारिश वाले महीनों की योजना बनाना कठिन है, लेकिन बहुत असरदार है.

विकास को स्थिरता न समझें – कारपेट एक्सपोर्ट्स में 8% की बढ़ोतरी का मतलब यह नहीं कि हर बुनकर चैन से सो रहा था. आंकड़े ऊपर जा सकते हैं, लेकिन अनिश्चितता बनी रहती है.

बड़ी तस्वीर यही है कि नीतिगत झटके तय हैं. यूके-इंडिया एफटीए शायद नए दरवाज़े खोले, लेकिन तब तक हम जैसे छोटे निर्यातक कम संसाधनों में काम चलाना सीख रहे हैं, हर रुपये का सही इस्तेमाल कर रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि मज़दूरों को काम मिलता रहे, भले ही ऑर्डर कम हों.

यही असली लचीलापन है. और परिवारों के लिए भी इसका मतलब वही है. बाहर की दुनिया के शोर को हम रोक नहीं सकते, लेकिन अपने घर के भीतर सुरक्षा कवच बना सकते हैं.

व्यापार युद्ध भले समंदर पार लड़े जाते हों, लेकिन उनकी गूँज हमारे जैसे कस्बों में महसूस होती है. और मैंने जो सबसे बड़ा सच सीखा है, वह यह है कि ज़िंदगी अमीर बनने की नहीं, स्थिर बनने की दौड़ है.

क्योंकि जब वॉशिंगटन छींके तो हमारी फैक्ट्रियां जरूर कांपती हैं, लेकिन अगर इमरजेंसी फंड और ठोस योजना हो तो कम से कम घर के भीतर गर्माहट बनी रहती है.

नोट:इस आर्टिकल का मकसद सिर्फ निवेश से जुड़ी जानकारी, डेटा और सोचने पर मजबूर करने वाले नजरिए साझा करना है. यह किसी भी तरह की निवेश सलाह नहीं है. अगर आप किसी निवेश आइडिया पर कदम बढ़ाना चाहते हैं, तो किसी योग्य वित्तीय सलाहकार से जरूर सलाह लें. यह लेख केवल शिक्षा और जानकारी के लिए है. इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं और उनके वर्तमान या पुराने नियोक्ताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते.

लेखक के बारे में

स्नेहा विरमानी एक कंटेंट स्ट्रेटेजिस्ट और राइटर हैं, जिनके पास 10 साल से ज्यादा का एक्सपीरियंस है. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज से इकोनॉमिक्स और साइकोलॉजी की पढ़ाई की है. स्नेहा कहानियों के जरिए कंटेंट रणनीति और उपभोक्ता शिक्षा पर काम करती हैंय उनका स्टाइल आसान, स्पष्ट और रोज़मर्रा के पाठकों के लिए समझने योग्य है.

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Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy. 

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