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डिनर टेबल की बातचीत से बन सकती है बच्चों की फाइनेंशियल समझ, फिर इसमें देरी क्यों?

अधिकतर बच्चे घर में पैसों की बातें नहीं सुनते, जिससे वे जरूरी वित्तीय समझ से दूर रह जाते हैं. डिनर टेबल की बातचीत जैसी हर रोज होने वाली एक्टिविटीज के जरिए उन्हें पैसे का पाठ सिखाया जा सकता है.

अधिकतर बच्चे घर में पैसों की बातें नहीं सुनते, जिससे वे जरूरी वित्तीय समझ से दूर रह जाते हैं. डिनर टेबल की बातचीत जैसी हर रोज होने वाली एक्टिविटीज के जरिए उन्हें पैसे का पाठ सिखाया जा सकता है.

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FE Hindi Desk
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Dinner Table Financial Literacy Class AI Image

बच्चों को पैसे की समझ देने में देरी एक महंगी भूल हो सकती है. (AI Image)

by Chinmayee P Kumar

सीन नंबर 1 : वो गुरुवार जिसने सब कुछ बदल दिया

डाइनिंग टेबल के ऊपर पंखा चल रहा था, धीमी आवाज में. रसोई से प्रेशर कुकर की सीटी और भाप की आवाज आ रही थी. आशीष और नेहा के घर में सब कुछ वैसा ही था जैसे हर गुरुवार होता है - एक आम सा दिन.

लेकिन आज उनकी 14 साल की बेटी रिया खाने पर ध्यान नहीं दे रही थी.
 
रिया ने अचानक कहा - पापा, तान्या फिर मालदीव चली गई. और उन्होंने नई कार भी ले ली. हम कभी ऐसा कुछ क्यों नहीं करते?

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आशीष ने रोटी से नजरें हटाईं और रिया की तरफ देखा. कमरे में एक पल को सन्नाटा छा गया, लेकिन हैरानी की वजह से नहीं.

उन्होंने शांत स्वर में कहा - बेटा, डिनर के बाद सब बस दस मिनट बैठें एक साथ? कुछ बात करनी है - अब वक्त आ गया है."

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सीन नंबर 2: जब ज़िंदगी ने उन्हें सिखा दिया, उससे पहले कि वो अपने बच्चों को सिखा पाते

आशीष ने रिया से पूछा, "तुम्हें याद है न, जब दादी को पिछले साल अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था?"

रिया ने सिर हिलाकर हाँ कहा.

"उनकी सर्जरी में 2.4 लाख रुपये लगे थे. हमारा बीमा सिर्फ 1.5 लाख रुपये तक ही कवर करता था. उस समय हमारा इमरजेंसी फंड ही हमारे काम आया."

आशीष ने समझाया कि ये फंड किसी एक्स्ट्रा पैसे से नहीं बना था, बल्कि अनुशासन से बना था. हर महीने बिना चूके उन्होंने 3,000 रुपये अलग रखे - चाहे जो भी हो. यही छोटी-छोटी बचतें धीरे-धीरे एक मजबूत सुरक्षा कवच बन गईं.

फिर उन्होंने एक पेज पलटा. एक मासिक बजट का चार्ट था जिसमें किराया, स्कूल फीस, राशन, SIP यानी सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान, बीमा प्रीमियम, कार की ईएमआई और एक लाइन थी मज़े के लिए पैसे.

नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा, "हम महीने में सिर्फ एक बार बाहर खाना खाते हैं, क्योंकि हमारी योजना में वही फिट बैठता है. बात ये नहीं कि हम ज़्यादा खर्च नहीं कर सकते, बात ये है कि हमें पता है कि हमारे लिए सबसे ज़रूरी क्या है."

रिया अब चुप थी. कोई नाराज़गी नहीं थी. बस उसे बातें समझ आने लगी थीं.

तभी उसका छोटा भाई आर्यन उत्सुकता से बोला, "ईएमआई क्या होता है?"

और फिर बातचीत गहराने लगी.

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सीन नंबर 3: करके सीखना, सिर्फ सुनकर नहीं

आशीष ने बच्चों को सिर्फ EMI का मतलब नहीं समझाया - उन्होंने उन्हें पूरा तरीका करके दिखाया.

उन्होंने बैंक पोर्टल खोला, कार की ₹7,200 मासिक EMI दिखाई, और ₹3.2 लाख बचे हुए लोन का सारांश भी दिखाया. फिर बोले, “हमने अपनी सारी बचत एक साथ खर्च नहीं की, इसलिए हर महीने किश्त भरते हैं.”

इसके बाद उन्होंने एक सवाल पूछा, जिसने बच्चों की सोच बदल दी - 

“जब 18 महीने बाद ये कार लोन खत्म हो जाएगा, तब इस EMI के पैसों का क्या किया जाए?”

रिया ने कुछ देर सोचा और बोली, “उससे वेकेशन के लिए सेविंग कर सकते हैं?”

आशीष मुस्कुराए.. “बिलकुल सही. इसे ऑपर्च्यूनिटी कॉस्ट (opportunity cost) कहते हैं. हर रुपये के कई उपयोग हो सकते हैं, एक को चुनने का मतलब है बाकी को छोड़ना.”

अब बजट बनाना बोझ नहीं, बल्कि एक समझदारी भरा निर्णय लगने लगा...जैसे ये कोई खेल हो, जिसमें सबकी भागीदारी हो.

इसके बाद उन्होंने हर महीने के दूसरे शनिवार, दोपहर के खाने के बाद 30 मिनट की एक ‘फैमिली फाइनेंस मीटिंग’ तय कर दी. इसका मकसद था समझाना नहीं, बस मिलकर अनुभव बांटना.

धीरे-धीरे बच्चे भी इसमें शामिल होने लगे.

रिया ने घर के किराने का खर्च ट्रैक करना शुरू कर दिया. ऑनलाइन और स्थानीय दुकानों की कीमतें तुलना करने लगी. आर्यन ने गाड़ी की माइलेज और पेट्रोल खर्च का हिसाब रखना शुरू किया. और दोनों ने मिलकर एक छोटा-सा 'फैमिली वेकेशन फंड' भी शुरू किया. हर हफ्ते 100-100 रुपये की बचत करके एक गुल्लक में जमा करने लगे.

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वहीं दूसरी ओर... गली के उस पार

कबीर इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल कर रहा था, और अमेजन पर उसकी विशलिस्ट भरी हुई थी.

उसके घर में पैसों की बात कभी नहीं होती थी. ना खाने की टेबल पर, ना चलते-फिरते, ना ही कभी किसी बहाने से.

पेरेंट्स का मानना था कि बच्चों को सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए. उनका ये भी मानना था कि पैसों की बात करने से बच्चे 'लालची' या 'चिंतित' हो जाएंगे.

लेकिन कबीर पैसों से दूर नहीं था. वो पैसों को यूट्यूबर्स, इंस्टा रील्स, क्रिप्टो वालों और ऑनलाइन डिस्काउंट ऐप्स से सीख रहा था.

19 की उम्र में उसके पास खुद का क्रेडिट कार्ड था.

24 की उम्र तक उसके पास तीन कार्ड थे, लेकिन कंपाउंड इंटरेस्ट क्या होता है..ये नहीं पता था.

और 26 की उम्र में वो कर्ज़ से टूटकर, मानसिक रूप से थककर, वापस अपने माता-पिता के घर आ गया.

अब तस्वीर के बड़े फ्रेम की बात करें, ये सिर्फ एक घर की नहीं, पूरे समाज की कहानी है 

2024 की एक फाइनेंशियल लिटरेसी रिपोर्ट के मुताबिक, 18 से 29 साल के सिर्फ 27% भारतीय युवाओं को बुनियादी वित्तीय समझ है.

मतलब हर चार में से तीन युवा उस दुनिया में कदम रखते हैं जहां उन्हें नौकरी, किराया, क्रेडिट कार्ड और निवेश ऐप्स से सामना करना होता है — और उन्हें सिखाया ही नहीं गया कि इनसे कैसे निपटना है.

हम उन्हें ज़िंदगी का खेल खेलने भेज देते हैं, बिना नियम बताए. और फिर हैरान होते हैं जब वे कर्ज़ के जाल में फंस जाते हैं या गलत आर्थिक फैसले लेते हैं.

यह सिर्फ पैरेंटिंग में चूक नहीं है. यह एक सामाजिक आपातकाल है.

पारिवारिक सोच में बदलाव और आज की चुनौती

हमारे दादा-दादी के समय में खर्च ‘हाथ में नकद’ जैसा था — हर रुपया नापा-तौला जाता था, और पैसे की समझ घर के आंगन में बैठकर ही आ जाती थी. लेकिन आज के माता-पिता बच्चों को असुविधा से बचाने के चक्कर में उन्हें पैसों से जुड़ी ज़रूरी बातें बताना ही भूल जाते हैं.

विडंबना देखिए — हमने बच्चों को "पैसों की बात" से बचाया, लेकिन यूट्यूब और इंस्टाग्राम ने उन्हें वही बातें सीखा दीं… अपने तरीके से.

तो क्या किया अशीष और नेहा ने जो बाकी नहीं कर पाए?

उन्होंने बच्चों को तब शामिल किया जब ज़िंदगी ठीक चल रही थी — ना कि तब, जब सबकुछ बिगड़ चुका था.

उन्होंने पैसों को छुपाया नहीं, बल्कि दिखाया. बिल, बजट, ईएमआई सब कुछ.

मौकों का सही इस्तेमाल किया — बेटे के बर्थडे पर पार्टी बजट, बेटी के नए फोन पर खर्च की समझ.

छोटी गलतियाँ करने दी — जिससे बच्चे खुद सीखें.

पैसों पर बात को नार्मल बना दिया — डर या शर्म के बिना.

और पैसे को सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि एक साझा जिम्मेदारी और खुशी से जोड़ा.

अब खुद से पूछिए — अगर कल मैं बीमार हो गया, तो क्या मेरा बच्चा घर चलाने की ज़िम्मेदारी समझ पाएगा?

क्या वो ग्रॉसरी का खर्च जानता है?
क्या वो ईएमआई या इंश्योरेंस का मतलब समझता है?
अगर जवाब ‘ना’ है, तो शुरुआत करने का वक्त अब है.

ये कोई लेक्चर देने की बात नहीं, ये साथ बैठकर समझाने की बात है.

क्योंकि आप सिर्फ बच्चे नहीं पाल रहे — आप एक आने वाले करदाता, उद्यमी, गृहस्वामी और ज़िम्मेदार नागरिक तैयार कर रहे हैं.

आज की अर्थव्यवस्था में अज्ञानता कोई मासूमियत नहीं, एक महंगी भूल है.

तो अगली बार जब आपकी बेटी आइसक्रीम मांगे या बेटा कोई ब्रांड चुन रहा हो — वहीं से एक सीख की शुरुआत हो सकती है.

अगर आपने नहीं सिखाया… तो कोई और सिखाएगा.
और जरूरी नहीं कि वो सिखाने वाला आपके बच्चे का भला ही चाहे.

चिन्मयी पी कुमार (Chinmayee P Kumar) एक लेखिका हैं जो पैसे और निवेश से जुड़े विषयों पर लिखती हैं. उन्हें इस बात की खास समझ है कि आम लोगों को भी कठिन निवेश की बातें आसान और दिलचस्प तरीके से कैसे समझाई जाएं. चाहे कोई पहली बार निवेश कर रहा हो या लंबे समय से बाजार में हो — उनकी कहानियां और जानकारी हर किसी के काम आती हैं.

नोट: इस लेख का मकसद सिर्फ आपको सोचने पर मजबूर करने वाले डेटा, चार्ट और विचारों को साझा करना है. यह किसी तरह की निवेश सलाह नहीं है. अगर आप निवेश के बारे में सोच रहे हैं, तो अपने सलाहकार से ज़रूर बात करें. यह लेख सिर्फ सीखने और समझने के लिए है.

Note: This content has been translated using AI. It has also been reviewed for accuracy. 

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