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No cost EMI से सावधान! महंगे पड़ सकते हैं ललचाने वाले ऑफर, खरीदारी से पहले कर लें पूरी जानकारी

Truth of No-cost EMI : नो-कॉस्ट ईएमआई या जीरो-कॉस्ट ईएमआई के ऑफर पहली नजर में बेहद लुभावने दिखते हैं. लेकिन सुनने में आकर्षक लगने वाले ऐसे नो-कॉस्ट ऑफर्स के पीछे भी कई बार लागत छिपी होती है.

Truth of No-cost EMI : नो-कॉस्ट ईएमआई या जीरो-कॉस्ट ईएमआई के ऑफर पहली नजर में बेहद लुभावने दिखते हैं. लेकिन सुनने में आकर्षक लगने वाले ऐसे नो-कॉस्ट ऑफर्स के पीछे भी कई बार लागत छिपी होती है.

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Viplav Rahi
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No-cost EMI, Hidden Costs, Truth of No-cost EMI

No-cost EMI or zero-cost EMI के नाम पर पेश किए जा रहे बहुत सारे ऑफर्स असल में पूरी तरह नो-कॉस्ट या जीरो कॉस्ट नहीं होते. (Image : Pixabay)

No-cost EMI or zero-cost EMI may actually have hidden costs: नो-कॉस्ट ईएमआई या जीरो-कॉस्ट ईएमआई के ऑफर पहली नजर में बेहद लुभावने दिखते हैं. आमतौर पर ऑनलाइन शॉपिंग (Online Shopping) के दौरान बैंकों या क्रेडिट कार्ड कंपनियों की तरफ से दिए जाने वाले ऐसे कई ऑफर आपने भी देखे होंगे. कई बार ऑफलाइन शॉपिंग में भी ऐसे ऑफर दिए जाते हैं. लेकिन जरूरी नहीं कि ऐसे ऑफर वाकई में उतने फायदेमंद हों, जितने आप समझ रहे हैं. ऐसा इसलिए कि ऐसे बहुत सारे ऑफर्स असल में पूरी तरह नो-कॉस्ट या जीरो कॉस्ट नहीं होते. सुनने में काफी आकर्षक लगने वाले ऐसे ऑफर्स के पीछे भी लागत छिपी होती है. गहराई से देखने पर पता चलता है कि इन ऑफर्स में भी दरअसल कई तरह की लागतें छिपी होती हैं. इसलिए अगर आप भी ऐसे किसी ऑफर का फायदा उठाकर खरीदारी करने की सोच रहे हैं, तो पहले इस बारे में पूरी जानकारी हासिल कर लें. 

रेगुलर ईएमआई vs नो-कॉस्ट ईएमआई 

जब आप कोई सामान ईएमआई के जरिए खरीदते हैं, तो दरअसल आप एक कर्ज ले रहे होते हैं, जिसे मासिक किस्त के रूप में चुकाना होता है. रेगुलर ईएमआई में इस किस्त का कुछ हिस्सा मूल धन (Principal amount) का और बाकी ब्याज का होता है. इसके अलावा आपको शुरुआत में लोन प्रॉसेसिंग फीस भी देनी पड़ सकती है. साथ ही, हर बार ईएमआई का पेमेंट करते समय आपको गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) का भुगतान भी करना होता है. नो-कॉस्ट ईएमआई के मामले में भी आमतौर पर ग्राहक को ईएमआई के साथ ब्याज तो देना पड़ता है, लेकिन विक्रेता या ऑनलाइन शॉपिंग पोर्टल की तरफ से उतनी ही रकम आपको पहले ही डिस्काउंट के तौर पर दे दी जाती है. यानी ग्राहक ईएमआई के साथ जो ब्याज भरता है, उसकी भरपाई डिस्काउंट के तौर पर पहले कर दी जाती है. 

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नो-कॉस्ट ईएमआई की छिपी हुई लागत

नो-कॉस्ट ईएमआई में ब्याज के बराबर की रकम भले ही डिस्काउंट के तौर पर पहले से मिल जाती है, लेकिन ग्राहकों को बैंकों या फाइनेंसिंग कंपनियों को प्रॉसेसिंग फीस चुकानी पड़ सकती है. साथ ही ईएमआई के साथ जीएसटी का भुगतान भी करना होता है, जो ग्राहकों के नजरिये से एक लागत ही है. जीएसटी की रकम ब्याज के 18% के बराबर होती है. इसके अलावा प्री-क्लोजर फीस, प्री-पेमेंट पेनाल्टी, लेट पेमेंट चार्ज जैसे कई और खर्चे भी जुड़े हो सकते हैं. लेकिन बहुत सारे ग्राहक इन छिपी हुई लागतों पर ध्यान दिए बिना ही खरीदारी कर लेते हैं. इसलिए अगली बार आप जब भी नो-कॉस्ट-ईएमआई स्कीम के जरिए कोई खरीदारी करने के बारे में सोचें, तो इन छिपी हुई लागतों को भी जरूर ध्यान में रखें.

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