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Retirement Planning: वर्किंग लाइफ में चुनौतियां होती हैं, लेकिन उससे भी ज्यादा कठिनाई रिटायरमेंट के बाद आ सकती हैं.
Financial Planning for Retirement: बढ़ रही महंगाई और लीविंग कास्ट लगातार बढ़ने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जिनके लिए रिटायरमेंट प्लानिंग पहली प्राथमिकता नहीं है. वे रिटायरमेंट के लिए लॉन्ग् टर्म प्लानिंग तो करते हैं, लेकिन बीच बीच में लक्ष्य से भटक जाते हैं, जिससे तय समय पर तय किया गया टारगेट हासिल करना मुश्किल हो जाता है. इससे रिटायरमेंट की बात की जिंदगी वर्किंग ईयर की तुलना में कुछ चुनौतियों वाली हो जाती है. इसलिए जरूरी है कि समय रहते ही प्राथमिकता देकर सही तरीके से इसके लिए प्लानिंग करें. वैसे भी जिस तरह से हैल्थकेयर की सुविधाएं बढ़ने से देश में औसत आयु में इजाफा हुआ है, जिसके चलते रिटायरमेंट के बाद की लाइफ 30 सारल या इससे भी ज्यादा हो सकती है.
उदाहरण से समझें
मान लिया कि आप वर्किंग है और आपने यह प्लान किया है कि रिटायरमेंट जल्दी लेना है और उसके बाद दुनिया की सैर करनी है. इसके लिए आप 20 साल या 30 साल का लक्ष्य रखकर फाइनेंशियल प्लानिंग शुरू करते हैं. लेकिन बीच बीच में दूसरी अन्य जरूरतें आ जाने से आपके लक्ष्य में बदलाव होता रहता है. इस केस में 20 साल 30 साल जो भी, उस समय तक आपका रिटायर होने के लिए फाइनेंशियली पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाते. इसके चलते आप जो रिटायरमेंट पहले लेना चाहते थे, उसकी समय सीमा बढ़ाते जाते हैं.
लाइफ की दूसरी इनिंग में बड़ी चुनौतियां
चुनौतियां सिर्फ वर्किंग इयर्स के दौरान अर्निंग को लेकर नहीं है, बल्कि आगे उस लंबी अवधि को पूरा करने में भी है, जिस दौरान हम वर्किंग नहीं होते हैं. आज के दौर में हेल्थकेयर सर्विसेज में बहुत ज्यादा सुधार हुआ है, जिसके चलते देश में औसत लाइफ भी बढ़ रही है. ऐसे में नॉन-वर्किंग ईयर यानी रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी 30 साल या इससे भी अधिक हो सकती है. रिटायरमेंट के बाद के सालों में हमारी जरूरतें पूरी हो सके, इसके लिए अभी से सही ढंग से निवेश करने की जिम्मेदारी भी हमी पर है. क्योंकि रिटायरमेंट के बाद अपनी लाइफस्टाइल से समझौता करना शायद ही कोई विकल्प होगा, जिसके हम लंबे समय से आदी हो चुके हैं.
प्लानिंग करते समय इन बातों का रखें ध्यान
आपको हेल्थकेयर, देखभाल करने वालों, बच्चों की शिक्षा, बच्चों की शादी और एक बुजुर्ग व्यक्ति की जीवन शैली की जरूरतों पर होने वाले ज्यादा खर्च के साथ ही महंगाई के चलते रहन सहन पर खर्च की बढ़ रही लागत को भी ध्यान में रखना होगा. बदलते माहौल में अब आप यह भरोसा भी नहीं कर सकते कि आप अपने बच्चों पर आर्थिक रूप से निर्भर हो सकते हैं. हो सकता है कि जब आप रिटायर हो रहे हों, वे अपने करियर के लिए किसी दूसरे शहर या दूसरे देश में रह रहे हों.
SIP और SWP का मिक्स
रिटायरमेंट प्लानिंग के दो फेज हैं. फंड में लगातार बढ़ोतरी करना और फंड का साइज घटाना. फंड बढ़ाने का फेज SIP के माध्यम से किया जा सकता है, जो कि एक पॉपुलर विकल्प है. इस फेज में कंपाउंडिंग की पावर का फायदा उठाने के लिए इक्विटी में अपने निवेश का एक बड़ा हिस्सा रखने की सलाह है. SIP ऐसा विकल्प है, जिससे रेगुलर निवेश की जाने वाली छोटी राशि आपके रिटायर होने तक आपके लिए एक बड़ा फंड बनाने की क्षमता रखती है.
अब दूसरा फेज यह कि रिटायरमेंट के बाद अपने मंथली खर्चों को पूरा करने के लिए अपने निवेश का कैसे इस्तेमाल किया जाए. इसके लिए सिस्टमैटिक विद्ड्रॉल प्लान यानी SWP मदद कर सकता है. SWP का भी मुख्य लाभ एसआईपी की तरह ही है. जैसे SIP के मामले में हम अनुशासित तरीके से निवेश करते हैं, वैसे ही SWP में हम अनुशासित तरीके से निकासी करते हैं.
क्या है सिस्टेमैटिक विद्ड्रॉल प्लान
SWP या सिस्टेमैटिक विद्ड्रॉल प्लान अपने निवेश से पैसा निकालने का एक अनुशासित तरीका है. यह विकल्प रिटायरमेंट के लिए या जॉब से ब्रेक लेने के समय बेहतर काम करता है. आपको इसके लिए अपने म्युचुअल फंड को महीने की एक तय तारीख पर एक तय राशि डेबिट करने के लिए निर्देश देना होगा, और पैसा आपके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा. निकासी के बाद बचा हुआ फंड निवेश में बना रहता है और आपको उस पर रिटर्न मिलता रहता है, जिससे आपको कंपाउंडिंग का फायदा भी मिलना जारी रहता है.
उदाहरण से समझें
अगर आपने एसआईपी के जरिए 1 करोड़ रुपये का फंड जमा किया है और आपका औसत मंथली खर्च 1 लाख रुपये है, आप 20 साल के लिए एक SWP करना चाहते हैं. हिस्टोरिक डाटा के अनुसार 1 लाख रुपये मंथली विद्ड्रॉल विकल्प के साथ 1 मार्च 2003 को निफ्टी 50 में 1 करोड़ रुपये का निवेश करने पर करीब 18% XIRR रिटर्न मिला (सोर्स: NSE सूचकांक, इंटरनल रिसर्च). फिर आपने 20 साल तक 1 लाख रुपये प्रति माह के निकासी से लगभग 2.4 करोड़ रुपये वापस ले लिया. लेकिन अभी भी 10.75 करोड़ रुपये (31 मार्च, 2023 तक) का कॉर्पस बचेगा.
(Disclaimer: ऊपर दिया गया उदाहरण कंपाउंडिंग की ताकत को दिखाने के लिए है. इसे म्यूचुअल फंडों के सांकेतिक यील्ड/रिटर्न के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. रिटर्न समय-समय पर बदलते रहेंगे और बाजार की चाल, निवेश की तारीख, निवेश की अवधि आदि सहित कई फैक्टर पर आधारित होते हैं. फंड का पिछला प्रदर्शन भविष्य में भी बना रह सकता है या नहीं भी रह सकता है.)
लेखक: महमूद बाशा, हेड- रिटेल एंड इंटरनेशनल बिजनेस, बड़ौदा बीएनपी परिबा म्यूचुअल फंड