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Photograph: (FE File)
FPI withdraw Rs 7300 crore from equities in a week: विदेशी निवेशकों यानी एफपीआई का भारतीय शेयर बाजारों से निकासी का सिलसिला जारी है. फरवरी के पहले हफ्ते में उन्होंने शेयर बाजारों से 7,300 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है. अमेरिका द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे देशों पर शुल्क लगाने की वजह से वैश्विक व्यापार को लेकर जो तनाव बना है उसके चलते विदेशी निवेशक यह रुख अपना रहे हैं. इससे पहले जनवरी 2025 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों से 78,027 करोड़ रुपये की निकासी की थी.
FPI ने 1 से 7 फरवरी के बीच बेचे 7,300 करोड़ के शेयर
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुकाबिक विदेशी निवेशकों ने इस महीने सात फरवरी तक भारतीय शेयरों से 7,342 करोड़ रुपये निकाले हैं. इससे पहले जनवरी 2025 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजारों से 78,027 करोड़ रुपये की निकासी की थी. दिसंबर, 2024 में एफपीआई ने भारतीय बाजारों में 15,446 करोड़ रुपये का निवेश किया था. विशेषज्ञों का मानना है कि आगे चलकर बाजार की धारणा वैश्विक वृहद आर्थिक घटनाक्रमों, घरेलू नीतिगत उपायों और करेंसी के उतार-चढ़ाव से तय होगी.
बता दें कि विदेशी निवेशकों ने 2024 में भारतीय शेयरों में सिर्फ 427 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश किया था. इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये के शुद्ध निवेश किया था. इसकी तुलना में, 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा दरों में आक्रामक वृद्धि के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी की थी.
बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेशकों ने किया निवेश
वहीं दूसरी तरफ बॉन्ड बाजार यानी डेट मार्केट में विदेशी निवेशकों ने इस दौरान निवेश किए. उन्होंने बॉन्ड में साधारण सीमा के तहत 1,215 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग के माध्यम से 277 करोड़ रुपये का निवेश किया है.
भारतीय शेयरो से निकासी की क्या है वजह
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध-हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई की निकासी का एक प्रमुख कारण वैश्विक व्यापार तनाव था, क्योंकि अमेरिका ने कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे देशों पर शुल्क लगाया है, जिससे व्यापार युद्ध की संभावना बढ़ी है. उन्होंने कहा कि इस अनिश्चितता की वजह से वैश्विक निवेशकों ने जोखिम न उठाने का विकल्प चुना है. इसके चलते वे भारत जैसे उभरते बाजारों से निकासी कर रहे हैं. श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय रुपया भी कमजोर होकर पहली बार 87 प्रति डॉलर से नीचे आ गया है. कमजोर रुपये से विदेशी निवेशकों का प्रतिफल घटता है और उनके लिए भारतीय संपत्तियां कम आकर्षक रह जाती हैं.
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा, ‘‘डॉलर इंडेक्स में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड पर अधिक यील्ड एफपीआई को बिकवाली के लिए मजबूर कर रहा है. आगे चलकर एफपीआई की बिकवाली में कमी आने की उम्मीद है क्योंकि डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में अब नरमी का रुख दिख रहा है.’’ उन्होंने कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत लघु अवधि में सकारात्मक प्रभाव डालेगी. हालांकि, बाजार का मध्यम से दीर्घावधि का रुख आर्थिक वृद्धि और कंपनियों की आमदनी में सुधार पर निर्भर करेगा.