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विदेशी निवेशकों ने बॉन्ड बाजार यानी डेट मार्केट में निवेश किया है. इस दौरान उन्होंने बॉन्ड में डेट जनरल लिमिट के तहत 1,296 करोड़ रुपये और वॉलेंटरी रिटेंशन रुट के जरिए 206 करोड़ रुपये डाले हैं.
FPIs withdraw Rs 21272 crore from equities in February so far: भारतीय शेयर बाजार से विदेशी निवेशकों यानी एफपीआई (FPI) की निकासी का सिलसिला जारी है. अमेरिका द्वारा आयात पर टैरिफ लगाए जाने के बाद ग्लोबल लेवल पर तनाव बढ़ने के बीच फरवरी के पहले दो हफ्तों में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों से 21,272 करोड़ रुपये निकाले हैं. इससे पहले जनवरी में भी एफपीआई ने 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे.
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक इस महीने 14 फरवरी तक अबतक विदेशी निवेशकों ने 21,272 करोड़ रुपये के शेयर बेचे हैं. इसके साथ ही 2025 में अबतक भारतीय शेयरों से विदेशी निवेशकों ने लगभग एक लाख करोड़ रुपये (99,299 करोड़ रुपये) की निकासी कर चुके हैं. पिछले साल यानी 2024 में भारतीय शेयरों में एफपीआई का निवेश सिर्फ 427 करोड़ रुपये रहा था. इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय शेयर बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये डाले थे. इसकी तुलना में 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा आक्रामक तरीके से नीतिगत दर बढ़ाने के बीच एफपीआई ने 1.21 लाख करोड़ रुपये निकाले थे.
इसके उलट, विदेशी निवेशकों ने बॉन्ड बाजार यानी डेट मार्केट में निवेश किया है. इस दौरान उन्होंने बॉन्ड में डेट जनरल लिमिट के तहत 1,296 करोड़ रुपये और वॉलेंटरी रिटेंशन रुट के जरिए 206 करोड़ रुपये डाले हैं. हालांकि भारतीय बाजारों को लेकर विदेशी निवेशक सतर्क रुख अपना रहे हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार का मानना है कि जब डॉलर सूचकांक नीचे जाएगा, तो एफपीआई की रणनीति में उलटफेर होगा.
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर नए शुल्क लगाए जाने तथा कई देशों पर ऊंचा शुल्क लगाने की योजना की घोषणा जाने से बाजार की चिंताएं बढ़ गई हैं. श्रीवास्तव ने कहा कि इन घटनाक्रमों ने संभावित वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं को फिर से जगा दिया है, जिससे एफपीआई को भारत सहित उभरते बाजारों में अपने निवेश का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है.
वॉटरफील्ड एडवाइजर्स के वरिष्ठ निदेशक (सूचीबद्ध निवेश) विपुल भोवर ने कहा, ‘‘वैश्विक विशेष रूप से अमेरिकी नीतियों में बदलाव एफपीआई के बीच अनिश्चितता की धारणा पैदा कर रहे हैं, जो बदले में भारत जैसे बाजारों में अपनी निवेश रणनीतियों को नया रूप दे रहे हैं.’’ उन्होंने कहा कि घरेलू मोर्चे पर कंपनियों के उम्मीद से कमतर तिमाही नतीजों और डॉलर के मुकाबले रुपये में बड़ी गिरावट से भारतीय संपत्तियों का आकर्षण घटा है.