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SEBI चीफ के कई बड़े एलान, म्यूचुअल फंड, ब्रोकर से लेकर कंपनियों तक पर पड़ेगा असर

SEBI big decisions: ब्रोकर, म्यूचुअल फंड नहीं ले सकेंगे अन-रेगुलेटेड इंफ्लुएंसर्स की सेवाएं, वॉलंटरी डी-लिस्टिंग के लिए स्टॉक प्राइस तय करने का नया फॉर्मूला पेश

SEBI big decisions: ब्रोकर, म्यूचुअल फंड नहीं ले सकेंगे अन-रेगुलेटेड इंफ्लुएंसर्स की सेवाएं, वॉलंटरी डी-लिस्टिंग के लिए स्टॉक प्राइस तय करने का नया फॉर्मूला पेश

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Viplav Rahi
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SEBI चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई अहम एलान किए. (PTI Video screenshot)

SEBI tightens rules on use of unregulated financial influencers: सेबी ने ब्रोकर्स और म्यूचुअल फंड्स को निर्देश दिया है कि अपने मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग कैपेन्स के लिए अन-रेगुलेटेड इंफ्लुएंसर्स की सेवाएं लेना बंद कर दें. भारतीय शेयर बाजार में पिछले कुछ अरसे के दौरान ऐसे कथित फाइनेंशियल इंफ्लुएंसर्स की लोकप्रियता काफी बढ़ी है, जो अपने यूट्यूब चैनलों और इंस्टाग्राम, X जैसे सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिये स्टॉक्स और निवेश के अन्य माध्यमों के बारे में सलाह (investment advise) देते रहते हैं.  

सेबी की तरफ से जारी एक बयान में बताया गया है कि उसने यह फैसला अन-रेगुलेटेड इंफ्लुएंसर्स द्वारा निवेशकों को गलत दावे करके गुमराह किए जाने की बढ़ती शिकायतों और चिंताओं को ध्यान में रखते हुए किया है. हालांकि सेबी ने यह भी साफ किया है कि जो फाइनेंशियल इंफ्लुएंसर्स सिर्फ इनवेस्टर एजुकेशन का काम कर रहे हैं, वे इन पाबंदियों के दायरे में नहीं आएंगे. सेबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में अप्रैल 2019 से अप्रैल 2024 के बीच ट्रेडिंग अकाउंट्स की संख्या 3.6 करोड़ से बढ़कर 15.4 करोड़ हो चुकी थी. यानी यह संख्या 5 साल में चार गुने से ज्यादा बढ़ चुकी है.

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वॉलंटरी डी-लिस्टिंग के लिए स्टॉक प्राइस का नया फॉर्मूला

SEBI की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने कहा है कि जो कंपनियां वॉलंटरी डी-लिस्टिंग करना चाहती हैं, उन्हें इसके लिए अपने स्टॉक प्राइस एक तय फॉर्मूले के हिसाब से फिक्स करनी होगी. उन्होंने कहा है कि डी-लिस्टिंग करने वाली कंपनियों को अपने शेयर की कीमत तय करते समय मिनिमम फ्लोर प्राइस+15 फीसदी प्रीमियम के फॉर्मूले को ध्यान में रखना होगा. बुच ने यह बात गुरुवार 27 जून को सेबी के बोर्ड की बैठक के बाद आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही. उन्होंने बताया कि सेबी के बोर्ड ने कंपनियों की वॉलंटरी डी-लिस्टिंग के लिए नियमों में अहम बदलावों को मंजूरी दे दी है. 

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रिवर्स बुक बिल्डिंग की जगह फिक्स्ड प्राइस प्रॉसेस 

माधबी बुच के मुताबिक सेबी के बोर्ड ने कंपनियों की वॉलंटरी डी-लिस्टिंग के लिए रिवर्स बुक बिल्डिंग (reverse book-building) प्रॉसेस के विकल्प के तौर पर फिक्स्ड प्राइस प्रॉसेस (fixed price process) शुरू करने का फैसला किया है. इसके तहत कंपनियों को डीलिस्टिंग के लिए फिक्स प्राइस ऑफर करने की छूट होगी, जो फ्लोर प्राइस की तुलना में कम से कम 15 फीसदी अधिक होनी चाहिए. इस प्राइस का निर्धारण सेबी द्वारा बताए गए नियमों के आधार पर होगा. सेबी का कहना है कि नए नियमों से डी-लिस्टिंग की ज्यादा आसान हो जाएगी. मौजूदा प्रक्रिया के तहत डी-लिस्टिंग के लिए रिवर्स बुक-बिल्डिंग प्रॉसेस को अपनाना होता है. जिसमें शेयरहोल्डर अपनी तरफ से उस कीमत की पेशकश करते हैं, जिस पर वे अपने शेयर बड़े शेयरहोल्डर को बेचने के लिए तैयार हैं. 

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