/financial-express-hindi/media/media_files/2024/10/19/dQSHOtezrTryffo8u3V9.jpg)
विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार तीन बार दरों में कटौती करने के बाद अब RBI कुछ समय के लिए रुक सकता है. (IE File)
आम लोगों की जेब और लोन की EMI से जुड़ा बड़ा फैसला इस हफ्ते होने वाला है, क्योंकि इसी दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक आयोजित की जाएगी. पिछली तीन बैठकों में केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो रेट में लगातार कटौती की गई है. इस बार क्या रुख रहेगा? रेपो रेट में लगातार चौथी बार कटौती की जाएगी या फिर ब्रेक लगेगा? इस पर एक्सपर्ट की क्या राय है आइए जानते हैं.
क्यों नहीं होगी इस बार कटौती?
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस के मुताबिक, इस बार की मौद्रिक नीति अमेरिका में 25 फीसदी शुल्क और जून की कम मुद्रास्फीति के आंकड़ों पर आधारित नहीं होगी. दरअसल, RBI ने अप्रैल में टाले गए 26 फीसदी शुल्क को पहले ही अपनी जून नीति में शामिल कर लिया था. इसलिए शुल्क या बाहरी घटनाएं अब नीति में बड़ा बदलाव नहीं लाएंगी.
क्या हो सकता है बदलाव?
सबनवीस का मानना है कि मुद्रास्फीति के अनुमान में मामूली कमी हो सकती है, जो अब 3.7 फीसदी से घटकर 3.5–3.6 फीसदी हो सकता है. हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों और वैश्विक अनिश्चितताओं को देखते हुए RBI इस बार सतर्क रुख अपनाएगा.
कुछ विशेषज्ञ कटौती के पक्ष में क्यों हैं?
हालांकि, कुछ जानकार मानते हैं कि मौजूदा समय में विकास की चुनौती मुद्रास्फीति के जोखिम से ज्यादा अहम है. ऐसे में रेपो रेट में और कटौती की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता. RBI पहले ही तीन बार कटौती कर चुका है, जिससे कुल 1 फीसदी की राहत मिल चुकी है.
क्या होगा असर आम जनता पर?
अगर दरें स्थिर रहती हैं, तो होम लोन, एजुकेशन लोन और कार लोन की EMI में कोई बदलाव नहीं होगा. लेकिन अगर कटौती होती है, तो इससे लोन सस्ते हो सकते हैं और लोगों को राहत मिल सकती है.
RBI MPC की बैठक किस दिन हो रही है शुरू
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक सोमवार, 4 अगस्त से शुरू होगी. यह तीन दिवसीय बैठक देश की मौद्रिक नीति और रेपो रेट जैसे अहम वित्तीय फैसलों पर केंद्रित होगी. बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा बुधवार, 6 अगस्त को स्वयं RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा करेंगे. इस दौरान यह तय होगा कि ब्याज दरों में कोई बदलाव होगा या रेपो रेट को वर्तमान 5.5 फीसदी स्तर पर बरकरार रखा जाएगा. यह फैसला देश की आर्थिक नीतियों, मुद्रास्फीति की स्थिति और वैश्विक आर्थिक माहौल को ध्यान में रखते हुए लिया जाएगा.