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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि जब भी राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट कोई दावा पेश करें, तो आयोग उनकी रसीद जरूर दे.
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR 2025) को लेकर उठे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है. अदालत ने शुक्रवार को साफ कहा कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से बाहर हो गए हैं, उन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से अपने दावे (क्लेम फॉर्म) दाखिल करने की सुविधा दी जाए. इसके साथ ही अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट्स द्वारा जमा किए गए दावे-पत्र पर आयोग पावती रसीद (Acknowledgement Receipt) भी जारी करे, ताकि पारदर्शिता बनी रहे.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि दावे दाखिल करने वाले मतदाता आधार कार्ड या एसआईआर में मान्य अन्य 11 दस्तावेजों में से किसी एक को प्रमाण के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा कि 65 लाख लोगों के नाम सूची से हट जाने जैसे गंभीर मामले में राजनीतिक दलों ने कोई ठोस आपत्ति दर्ज क्यों नहीं कराई.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती और चुनाव आयोग का जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया कि वे इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाएं और 8 सितंबर की अगली सुनवाई से पहले स्थिति रिपोर्ट पेश करें. अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को बताना होगा कि उन्होंने मतदाताओं को दावा फॉर्म भरवाने में कितनी मदद की.
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग ने बताया कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किए गए लगभग 85,000 मतदाताओं ने अपने नाम जुड़वाने के लिए क्लेम फॉर्म भरा है, जबकि वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिविजन के दौरान 2 लाख से ज्यादा नए मतदाता भी सूची में शामिल होने के लिए आवेदन कर चुके हैं. आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से 15 दिन का अतिरिक्त समय मांगा और कहा कि “हालात उतने गंभीर नहीं हैं जितना शोर मचाया जा रहा है. हम दिखा देंगे कि कोई भी मतदाता छूटा नहीं है.”
क्यों उठा विवाद?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को ही चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह 19 अगस्त तक उन 65 लाख मतदाताओं का पूरा विवरण सार्वजनिक करे, जिनके नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं. अदालत ने कहा था कि अगर आयोग पारदर्शिता अपनाएगा तो मतदाताओं का विश्वास बढ़ेगा और चुनावी प्रक्रिया पर उठ रहे सवाल भी थम जाएंगे.
गौरतलब है कि बिहार में मतदाता सूची का पहला पुनरीक्षण वर्ष 2003 में हुआ था. लेकिन मौजूदा एसआईआर प्रक्रिया ने एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है. ताजा आंकड़ों के अनुसार, बिहार में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या घटकर 7.9 करोड़ से 7.24 करोड़ पर आ गई है.