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Pandit Nehru Full Speech: पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जिस भाषण पर विवाद हो रहा है, उसका पूरा टेक्स्ट पढ़कर आप खुद तय करें कि क्या यह विवाद सही है? (Photo : Express Archives)
Did Pandit Nehru really called Indians lazy: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू क्या वाकई भारत की जनता को आलसी और कम अक्ल वाला मानते थे? क्या वे सचमुच अपने देश के लोगों को नीचा दिखाने का काम करते थे? पीएम मोदी के संसद के भीतर पंडित नेहरू पर लगाए इन आरोपों को लेकर सियासी घमासान मच गया है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पीएम मोदी की टिप्पणी को शर्मनाक बताते हुए उन पर पंडित नेहरू के भाषण की कुछ लाइनों को गलत ढंग से पेश करने का आरोप लगाया है. साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री के उसी भाषण की 5 मिनट लंबी क्लिप भी शेयर की है. उधर बीजेपी नेता भी पंडित नेहरू के उसी भाषण की 36 सेकंड की ऑडियो क्लिप शेयर करके पीएम मोदी (Narendra Modi) के लगाए आरोपों को सही बता रहे हैं, जिसका जिक्र करके प्रधानमंत्री ने लोकसभा में विवादित टिप्पणी की थी. दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात को सही बता रहे हैं, लेकिन दरअसल सच क्या है, इसका फैसला तो आपको पंडित नेहरू (Jawaharlal Nehru) के उस भाषण को पूरा पढ़ने के बाद ही करना चाहिए, जिसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप किए जा रहे हैं.
पूरा भाषण पढ़कर तय करें पंडित नेहरू ने क्या कहा था
पंडित जवाहरलाल नेहरू के जिस भाषण के इर्द-गिर्द सारा विवाद हो रहा है, वो उन्होंने 15 अगस्त 1959 को लालकिले की प्राचीर से दिया था. हम यहां उस भाषण का पूरा टेक्स्ट (Nehru Full Speech) दे रहे हैं, ताकि आप उसे पढ़कर खुद अपनी समझ से फैसला कर सकें कि सच्चाई क्या है. भाषण के जिस हिस्से को लेकर विवाद हो रहा है, वह हमने बोल्ड कर दिया है, ताकि आप आसानी से उसे पढ़ सकें. लेकिन अगर आप इस भाषण को पूरा पढ़ते हैं, तो देश के इतिहास की एक बेहद महत्वपूर्ण शख्सियत के बारे में अपनी राय, खुद अपनी समझ के आधार पर बना पाएंगे. पंडित नेहरू ने इस भाषण में जिस हिंदी का इस्तेमाल किया है, वह नई पीढ़ी के लोगों को कुछ अलग लगेगी, लेकिन आजादी के बाद के दौर में हिंदी का कुछ ऐसा ही अंदाज आमतौर पर प्रचलित था, जिसकी एक झलक भी आप यहां देख सकते हैं. भाषण का यह टेक्स्ट उसके ओरिजनल स्वरूप में पीआईबी की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है.
स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से : दिनांक 15.8.1959
बहिनों और भाईयों और साथियों,
आज फिर आप और हम यहां जमा हुए हैं, एक सालगिरह मनाने अपने आज़ाद हिन्द की सालगिरह. और आज फिर हम कुछ तो पीछे देखते हैं कि क्या हमने किया और कुछ आगे देखते है कि क्या हमें करना है. बारह बरस हुए, हज़ारों बरस के इतिहास में इस मुल्क के, इस कौम के, बारह बरस बहुत कम ज़माना है. यहां दिल्ली के इधर-उधर की मिट्टी ने और पत्थरों ने हजारों बरस को आते और जाते देखा. और अब इन बारह बरसों को भी देखा, जिसमें आपने, हमने और हिन्दुस्तान के रहने वालों ने कोशिश की पुराने ज़माने से, पुरानी मुसीबतों से, पुरानी गरीबी से अपने को निकालने की. मुश्किल काम था, गुलामी को दूर करने से ज़्यादा मुश्किल था. क्योंकि इसमें अपनी कमजोरियों को निकालना था. और पचासों पुराने बोझे जो हमारी पीठ पर थे, उनको हटाना था. बारह बरस में क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, वह आपके सामने है. बहुत अच्छी बातें हुईं, कुछ बुरी बातें हुईं. बहुत बातें हुईं, जो मैं समझता हूं भारत के आईन्दा के इतिहास में लिखी जाएंगी, और ऐसी बातें भी हुईं जिन्होंने हमें कमजोर किया, या हमारी कमजोरियां जाहिर हुईं. तो फिर आज हम और आप मिले यहां, इस लाल क़िले के पास और अपने झंडे को फिर से फहराया.
तो क्या आपके दिलों में है बात, क्या सोचते हैं आप आईन्दा के लिए? इन बारह बरसों में काफी कठिनाइयों का सामना किया, मुसीबतों का, बाहर से, अन्दर से. काफी हमारे ऊपर प्रकृति की भी भेजी हुई मुसीबतें आईं. कभी बाढ़, कभी अकाल, कभी फसलें खराब हुईं. काफी हमारी अपनी कमजोरियों ने भी हमारा पीछा किया. हममें से कुछ लोगों ने गलत रास्ते अपनाए, अपने लोभ में, खुदगर्जी में भूल गए कि कौम का और जाति का फायदा किसमें है. भूल गए कि हम बड़े कामों में लगे हैं. इस मुल्क को फिर एक शानदार और एक बड़ा मुल्क बनाना है. और वक्ती खुदगर्जी में फंस के, उन्होंने कौम को, जाति को हानि पहुंचाई. आप लोग आजकल भी कुछ दिक्कतों में हैं, परेशानियों में हैं. महंगाई की और इस तरह की बातें. कुछ तो लाचारी है, पूरी तौर से काबू में बात नहीं है हमारे इस समय. हालांकि काबू में वह आएगी. कुछ इंसान की बनाई हुई, इंसान की खुदगर्जी की बनाई हुई. जो भी कुछ हो, उसका सामना करना है.
लेकिन आज के दिन विशेषकर हमें याद रखना है, हम क्या हैं, क्या होना चाहते हैं, किस रास्ते पर चलना चाहते हैं. फिर से जरा बारह बरस पहले के जमाने को याद करना है, जबकि हमारे बड़े नेता गांधी जी हमारे साथ थे और उनकी तरफ हम देखते थे. बरसों तक उनकी तरफ हमने देखा, बरसों तक हमने उनके रास्ते पर चलने की कोशिश की, और उस पर चलके सफलता मिली हमें. कहां तक हमें वह बातें याद हैं, कहां तक उसको हम सामने रखते हैं अपने, कहां तक हम इस बात को हर वक्त याद करते हैं कि पहला काम हमारे मुल्क में अपनी एकता को बनाना है. क्योंकि अगर हम अलग-अलग टुकड़े में हो गए, अलग-अलग टुकड़े चाहे वह सूबे के हों, चाहे वो भाषा के हों, चाहे जाति के, धर्म के या कोई और हों, तब सारी हमारी ताकत खत्म हो गयी, तब हम गिरते हैं, आगे नहीं बढ़ते. तब बजाय इसके कि आईन्दा का हमारा इतिहास एक चमकता हुआ हो, छोटी-छोटी कौमों की लड़ाई का हो जाता है. इसलिए पहली बात याद रखने की है हमारी एकता. और यह कि जो हमारे आपस में दीवारें हैं, पुरानी या नई, उनको हमें तोड़ना है और हमेशा हमें सोचना है अपने मुल्क की, भारत की. उसके एक हिस्से की नहीं, चाहे वह हिस्सा कितना ही भला और अच्छा क्यों न हो. क्योंकि वह हिस्सा, अगर उसमें कुछ ऊंचाई है, तो इसलिए कि भारत का वह हिस्सा है. भारत का हिस्सा न होने पर उसकी कोई ऊंचाई और अहमियत नहीं रहती. तो यह बात हमें याद करने की है. क्योंकि इस ज़माने में रहकर हम अपने जातिभेद में, इस कदर आदी हो गए टुकड़ों-टुकड़ों में रहकर, कि मिलकर रहने की आदत पूरी नहीं आई. इसको भी हमें हटाना है और इस पर भी फतेह पानी है.
दूसरी बात यह कि हमारे आईन्दा का ध्येय क्या, मकसद क्या? आर्थिक है, सामाज़िक है, हिन्दुस्तान से गरीबी निकालनी है, सब बातें कही जाती हैं और सही है. लेकिन आखिर में किस गज़ से आप इन बातों को नापेंगे. एक गज़ गांधी जी ने हमें बताया था, और हमने स्वीकार किया कि किस तरह से हिन्दुस्तान के आम लोग आगे बढ़ते हैं. खास लोग बढ़े हुए हैं, उनकी कोई खास फिक्र नहीं करनी है. वह अपने को देखभाल भी कर लेते हैं, ऊंची आवाज़ से शिकायत भी कर सकते हैं, जब जरूरत हो. लेकिन जो आम लोग हैं, जो अक्सर ख़ामोश लोग हैं और खासकर जो हमारे लोग गांव में रहते हैं, उनकी देखभाल कौन करे, कौन उनको उठाए? क्योंकि याद रखिये दिल्ली शहर एक खास शहर है. हिन्दुस्तान का और दुनिया का. और आप और हम, जो दिल्ली में रहते हैं, वह एक माने में खुशनसीब हैं. लेकिन दिल्ली शहर हिन्दुस्तान नहीं है, हिन्दुस्तान की राजधानी है.
हिन्दुस्तान तो लाखों गांवों का है और जब तक वह लाखों गांव हिन्दुस्तान के नहीं उठते, नहीं जागते, आगे नहीं बढ़ते, तो दिल्ली और बम्बई और कलकत्ता और मद्रास हिन्दुस्तान को आगे नहीं ले जाएंगे. इसलिए हमेशा हमें अपने सामने लाखों गांवों को रखना है. किस तरह से वह बढ़ें, किस तरह से बढ़ेंगे वह? आपकी और मेरी कोशिश से ज़रूर, लेकिन आखिर में वह बढ़ेंगे अपनी कोशिश से, अपनी हिम्मत से, अपने ऊपर भरोसा करके. और इस वक्त जो हमारे ऊपर एक मुसीबत आई है, वह यह कि हमारे लोग अपने ऊपर भरोसा करना भूल के समझते हैं कि और लोग मदद करेंगे. हमारे गांव वाले तगड़े लोग हैं, भले लोग हैं. हर वक्त एक आदत पड़ गई है देखें कि सरकारी अफसर कुछ कर दें, सरकार उनके लिए कुछ कर दे. बजाय इसके कि खुद उठ खड़े हों और काम करें. इसीलिए योजनाएं बनीं कि वह खुद करें, विकास योजना, कम्युनिटी डेवलपमेन्ट वगैरह. और अगर वह ठीक-ठीक चलें, तो एक क्रान्तिकारी चीज़ है भारत के लिए, दुनिया के लिए. सारे हिन्दुस्तान के साढ़े पांच लाख गांव जाग उठें.
और अगर वहां महज़ सरकारी अफसर काम करते हैं, तब क्रांति नहीं है. तब तो एक मामूली ढंग, एक अफसरी ढंग है, जो बेजान हो जाता है. जान अन्दर से आती है, ऊपर से नहीं डाली जाती है किसी कौम में. इसलिए हमारे लिए ये बड़ा सवाल हो गया है मुल्क में. चाहे शहर के रहने वाले हों, चाहे गांव के, देहात के कि हम लोग अपने पैरों पर, टांगों पर खड़े हों. अपने सहयोग से काम करें. जरूर हुकूमत को मदद करनी है, हर तरह से शासन को, अफसर को. लेकिन अफसरों की मदद से क़ौम नहीं बढ़ती है, क़ौम अपने पैरों से बढ़ती है. और यह बात विशेषकर गांव के लिए है. इसीलिए हमने कहा कि सहयोग से, सहकारी समितियों में काम हों, कि लोगों की शक्ति बढ़े. लोग मिलकर काम करना सीखें और अपने ऊपर भरोसा करना सीखें. इसके माने नहीं कि एक जो शासन हो, जो हुकूमत हो, वह हर जगह दखल दे. मैं तो चाहता हूं कि हुकूमत का दखल कम से कम हो, और लोग अपने हाथ में बागडोर अपनी लें. हां, जो बड़ी उसूली बातें है, वह निश्चय हों. तो यह एक दूसरी बात याद रखने की है. किस गज़ से हम नापें हिन्दुस्तान की तरक्की? वो एक ही गज़ है - किस तरह से यहां के चालीस करोड़ लोग बढ़ते हैं. कैसे बढ़ती है कौम? अपनी मेहनत से!
कैसे गरीब कौम खुशहाल होती है? अपनी मेहनत से! कोई जाके ओरों की खैरात ले, तो उठते नहीं लोग. तो अगर हमारे लोग बढ़ेंगे, तो अपने परिश्रम और मेहनत से, जिससे वो पैदा करें - दौलत पैदा करें, धन पैदा करें, जो मुल्क में फैले. और दुनिया के खुशहाल मुल्क हैं बाज़ (कुछ), बाज़ (कुछ) गरीब हैं. खुशहाल मुल्कों को आप देखिए, कैसे हुए हैं खुशहाल वो? मेहनत से और परिश्रम से. चाहे योरप के, चाहे अमेरिका के, चाहे कोई एशिया के मुल्क, जो ऐसे खुशहाल हैं, सभी के पीछे मेहनत है, परिश्रम है. दिन-रात की मेहनत है और एकता है. दो चीजों ने उनको बढ़ाया. बगैर इसके कोई नहीं बढ़ता. हमारे यहां अभी हिंदुस्तान में, काफी मेहनत करने की आदत आमतौर से नहीं हुई है. हमारा कसूर नहीं, आदतें ऐसी पड़ जाती हैं, वाकयात से. लेकिन बात ये है कि हम उतना काम नहीं करते, जितना कि योरोप वाले या जापान वाले या चीन वाले या रूस वाले कहीं करते हैं, या अमेरिका वाले. यह न समझिए कि वह कौमें खुशहाल हो गईं, कोई जादू से. मेहनत से हुई हैं और अक्ल से हुई हैं. तो हम भी मेहनत और अक्ल से बढ़ सकते हैं. कोई और चारा नहीं. कोई जादू से हम नहीं बढ़ सकते. क्योंकि दुनिया चलती है इंसान के काम से. इंसान की मेहनत से सारी दुनिया की दौलत पैदा होती है. चाहे जमीन पर किसान काम करता है, या कारखाने में, या दूकान में, या कारीगर…उससे काम चलता है. कुछ बड़े अफसर दफ्तरों में बैठ के इंतजाम करते हैं. वो दौलत नहीं पैदा करते हैं. दौलत पैदा करता है किसान अपनी मेहनत से, या कारीगर. तो हमें अपने काम, अपनी मेहनत को बढ़ाना है.
अभी मुझे खुशी हुई देखकर कि पंजाब के सूबे में काम करने के वक्त बढ़ाए गये. इससे पंजाब की दौलत बढ़ेगी, पंजाब के लोगों को फायदा होगा, और किसी को नहीं. हमारे यहां छुट्टियां है, इतनी छुट्टियां है कि इसमें कोई मुल्क हमारा मुकाबला नहीं कर सकता, दुनिया भर में. छुट्टी अच्छी चीज है, आदमी को ताजा करती है. लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा छुट्टी जरा कमजोर भी कर देती है और काम की आदत भी निकल जाती है.
तो हम इस वक्त आप जानते हैं एक दरवाजे पर हैं. तीसरे पंचवर्षीय योजना के. पहले दो हो गए, और उससे हमें लाभ हुआ, फायदा हुआ. और ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़े, हमारे सवाल भी बढ़े हमारे सामने. सवालों ने हमें घेरा, हाथ-पैर हमारे पकड़े और अक्सर उनका बोझा बहुत जबर्दस्त हो गया. लेकिन हम बढ़े और यह बढ़ने की निशानी है कि सवाल भी हमारे सामने आए हैं. जो नहीं आगे बढ़ता, उसके सामने न सवाल हैं, न जवाब हैं.
आज भी हम सवालों से घिरे हैं, परेशानियों से घिरे हैं, लेकिन वह परेशानियां और वह सवाल एक बढ़ते हुए मुल्क के हैं, और बढ़ रहा है एक बुनियाद से, हालांकि उसकी तकलीफ भी उठानी पड़ती है. बड़े-बड़े लोहे के कारखाने बन रहे हैं. क्या माने हैं इसके? वह कोई खाली कारखाना नहीं है, बल्कि वहां से एक नई जान निकलेगी, जिससे हिन्दुस्तान के कोने-कोने में बड़े-बड़े उद्योग-धंधे, बड़े-बड़े इंडस्ट्रीज़ बनेंगे. वह एक बुनियाद होगी, कि वहां लाखों लोगों के लिए काम निकले और वह लाखों आदमी अपने काम से दौलत पैदा करें.
इस तरह से आप देखें, सारी पंचवर्षीय योजना वाली….एक जबर्दस्त इमारत बनानी है, आज़ाद और खुशहाल हिन्दुस्तान की. अब उसके बनाने में बुनियाद है और जब वह बुनियाद मजबूत न हो, ऊपर से वह कैसे बने? बुनियाद दिखती नहीं है, हालांकि अब दिखने लगी है. तो यह दो पंचवर्षीय योजनाओं में हुआ, और हो रहा है. तीसरी आने वाली है, आपके दरवाजे पर है. अभी साल डेढ़ साल बाद, दो बरस बाद. उसकी अभी से तैयारी है. और मैं चाहता हूं आप समझें उसको, क्योंकि वह भी कोई आराम का वक्त नहीं लायेगी. हमें जोर करके उसको भी पूरा करना है, मेहनत से. बगैर मेहनत के, बगैर तकलीफ उठाए, कोई कौम बढ़ती नहीं है. जो लोग नहीं करते हैं, वह ढीले हो जाते हैं, उनका मुल्क ढीला हो जाता है, उनका कदम हल्का हो जाता है.
तो हमारे सामने फिर से इम्तहान है, एक चुनौती है दुनिया की. और दुनिया की नज़रें भी किसी कदर हमारी तरफ हैं. यह एक बड़ा जबर्दस्त मुल्क, जिसने इस जमाने में भी एक ऐसा आदमी पैदा किया, जैसे महात्मा गांधी, अब क्या करता है? और अब क्या करता है, खाली इस बारे में नहीं कि विकास योजनाएं और कारखाने हम बनाएं और अपनी खेती की तरक्की करें, और अपने यहां गल्ला ज्यादा पैदा करें. जो-जो जरूरी बातें हैं हम करें, लेकिन किस ढंग से हम इन कामों को करते हैं? शान से, सिर ऊंचा करके, या सिर झुका के और बुरे रास्तों पर चलके, यह बात याद रखने की है. क्योंकि जो अव्वल, दूसरा और तीसरा सबक गांधी जी ने हमें सिखाया, वह सिर ऊंचा रखने का है. वह यह है कि कभी गलत न करें, कभी झूठे रास्ते पर न चलें, कभी खुदगर्जी में पड़के मुल्क का नुकसान न करें. यह उनका बुनियादी सबक था, बड़ों के लिए, बच्चों के लिए. और जिस वक्त हम उसको भूले, उसी वक्त हम गिरते हैं. इसलिए बारह बरस गुजरे और तेरहवें बरस में हम और आप कदम उठाते हैं. सिर ऊंचा करके कदम उठाइए, पैर मिलाके आगे आगे चलिए, हाथ मिलाके आगे चलिए, और यह इरादे करके कि जो हमारी मंजिल है, वहां हम वक्त से पहुंचेंगे.
जय हिन्द