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Indian Notes: रुपये पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की तस्वीर लगाने के लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर, मदर टेरेसा समेत कई नामों पर विचार किया गया था लेकिन सहमति महात्मा गांधी के नाम पर बनी थी. (Representational AI Image by ChatGPT)
क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय रुपये पर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की तस्वीर ही क्यों होती है? भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की हाल ही में रिलीज़ हुई डॉक्यूमेंट्री ‘RBI Unlocked: Beyond the Rupee’ ने इस रहस्य से पर्दा उठाया है. इस डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि रुपये पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति की तस्वीर लगाने के लिए रबीन्द्रनाथ टैगोर, मदर टेरेसा और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे कई नामों पर विचार हुआ था. लेकिन अंततः देशभर में बनी आम सहमति के बाद महात्मा गांधी के नाम पर मुहर लगी और तब से आज तक उन्हीं की तस्वीर भारतीय नोटों (Currency Notes) पर छप रही है.
आरबीआई डॉक्यूमेंट्री से हुआ खुलासा
आरबीआई की इस पांच भागों वाली सीरीज़ को जियो सिनेमा हॉटस्टार के साथ मिलकर तैयार किया गया है, जो पहली बार केंद्रीय बैंक के कामकाज को जनता के सामने डॉक्यूमेंट्री फॉर्म में लाता है. इसमें बताया गया है कि कैसे आजादी से पहले नोटों पर ब्रिटिश राज की झलक दिखाई देती थी – जैसे सजावटी हाथी और राजा की छवियां. आजादी के बाद नोटों पर अशोक स्तंभ, आर्यभट्ट, किसान और वैज्ञानिक उपलब्धियों को दर्शाने वाली छवियों ने जगह ली. लेकिन जब महसूस हुआ कि नकली और असली नोटों में फर्क करने के लिए किसी लोकप्रिय चेहरा होना जरूरी है, तो मशहूर व्यक्तित्व की तस्वीर शामिल करने का विचार आया.
डॉक्यूमेंट्री में यह भी बताया गया है कि गांधी जी की तस्वीर सबसे पहले 1969 में उनकी जन्म शताब्दी पर जारी स्मारक नोट (100 रुपये) पर छपी थी. इसके बाद 1987 में उनके चित्र वाला 500 रुपये का नोट आया और फिर 1996 में ‘महात्मा गांधी सीरीज’ की शुरुआत हुई, जिसमें नई सुरक्षा सुविधाएं भी जोड़ी गईं.
सिर्फ तस्वीरें ही नहीं, डॉक्यूमेंट्री में यह भी दर्शाया गया है कि आरबीआई कैसे प्रिंटिंग प्रेस से लेकर देश के सुदूर इलाकों तक नोट पहुंचाने के लिए ट्रेन, जलमार्ग, हवाई जहाज़ और हेलीकॉप्टर तक का इस्तेमाल करता है. चाहे वह उत्तर के पहाड़ हों, पश्चिम का रेगिस्तान हो या नक्सल प्रभावित क्षेत्र – हर जगह नोट पहुंचाना केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी है.
रिजर्व बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, पहली बार 1969 में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी के अवसर पर 100 रुपये का स्मारक नोट जारी किया था. इसमें उनकी तस्वीर को सेवाग्राम आश्रम के साथ दिखाया गया था. उनकी तस्वीर नियमित रूप से रुपये पर 1987 से दिखाई देने लगी. उस साल अक्टूबर में गांधी की तस्वीर के साथ 500 रुपये के नोट जारी किए गए थे. रिप्रोग्राफिक तकनीक के विकास के साथ, पारंपरिक सुरक्षा सुविधाएं अपर्याप्त मानी जाने लगीं.
नई सुरक्षा विशेषताओं के साथ 1996 में एक नई 'महात्मा गांधी सीरीज' शुरू की गई. डाक्यूमेंट्री में यह भी बताया गया है कि आरबीआई प्रिंटिंग प्रेस से अपने इश्यू ऑफिसेज और वहां से करेंसी चेस्ट और बैंकों और देश के हर कोने में रुपये को पहुंचाने के लिए ट्रेन, जलमार्ग, हवाई जहाज समेत बड़ी परिवहन प्रणालियों का उपयोग करता है.
रिजर्व बैंक के अनुसार, ‘‘यह केंद्रीय बैंक की जिम्मेदारी है कि देश के हर कोने में नोट पहुंचे. भारत में जहां उत्तर में पहाड़ है, पश्चिम में रेगिस्तान है और कुछ स्थानों पर कानून व्यवस्था की भी समस्या है. ऐसे में हर जगह नोट पहुंचाने के लिए बड़ी परिवहन प्रणाली का उपयोग करना पड़ता है.’’ केंद्रीय बैंक जहां लक्षद्वीप में रुपये-पैसे पहुंचाने के लिए जलमार्ग का इस्तेमाल करता है वहीं नक्सल प्रभावित जिलों में हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर का भी उपयोग करता है.