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वॉरेन बफेट शेयर तभी बेचते हैं जब बिजनेस की ताकत घटे, कोई बेहतर विकल्प मिले, स्टॉक ओवरप्राइस हो, या धैर्य रखना फायदेमंद न लगे. उनका फोकस जल्दबाज़ी नहीं, समझदारी से समय पर निर्णय लेने पर होता है. (AI IMAGE)
by Suhel Khan
Breakfast with Buffett : दुनिया के सबसे सफल निवेशक वॉरेन बफेट, जो Berkshire Hathaway जैसे ट्रिलियन डॉलर के साम्राज्य के निर्माता हैं, आज भी समझदारी से धन कमाने की मिसाल माने जाते हैं. लोग उनकी स्टॉक खरीदने की क्षमता की खूब चर्चा करते हैं, लेकिन सच यह है कि उनकी बेचने की रणनीति भी उतनी ही दमदार है, जिसे भारत में अक्सर नजरअंदाज़ कर दिया जाता है.
जब करोड़ों नए निवेशक शेयर बाजार में कदम रख रहे हैं और फैसले लालच और डर जैसी भावनाओं से लिए जा रहे हैं, तब बफेट का शांत और तर्कसंगत तरीका एक मजबूत मार्गदर्शक बन सकता है. उनके सिद्धांत कभी पुराने नहीं पड़ते और ऐसे उतार-चढ़ाव भरे बाजार में भारतीय निवेशकों के लिए यह एक बेहद काम की सीख हो सकती है.
भारत का शेयर बाजार किसी रहस्यमय कहानी जैसा लगता है, जहाँ कोई नहीं जानता आगे क्या होगा और कोई न कोई हमेशा घाटे में डूबता है. आज देश में 19 करोड़ से ज्यादा डिमैट अकाउंट हैं और हर दिन नए लोग बाजार में आ रहे हैं, इस उम्मीद में कि जल्दी पैसा बनेगा. लेकिन कड़वा सच यह है कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के अनुसार 90 प्रतिशत ट्रेडर्स को नुकसान होता है. लोग कभी चलन में आए स्टॉक्स को पकड़ लेते हैं, तो कभी घबराकर अच्छे स्टॉक्स को बेच देते हैं और अंत में नुकसान उठाते हैं.
ऐसे में वॉरेन बफेट की बेचने की रणनीति, जो तर्क, धैर्य और दूरदृष्टि पर आधारित है, भारतीय निवेशकों के लिए एक जरूरी सबक बन सकती है.
वॉरेन बफेट ने 1988 में निवेशकों को लिखे अपने एक पत्र में अपनी सोच साफ तौर पर जाहिर की थी. उन्होंने लिखा था कि जब हमारे पास किसी शानदार बिज़नेस का हिस्सा हो, जिसकी मैनेजमेंट मजबूत हो, तो हम उसे हमेशा के लिए रखना पसंद करते हैं. इससे साफ होता है कि बफेट का शेयर बेचने का नजरिया बाजार की उठापटक पर नहीं, बल्कि उस कंपनी की असली कीमत और दीर्घकालिक क्षमता पर आधारित होता है.
वॉरेन बफेट कभी सिर्फ इसलिए स्टॉक नहीं बेचते कि बाजार ऊपर जा रहा है या गिर रहा है. उनके फैसले कंपनी के भविष्य और उसकी वास्तविक वैल्यू को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं. यह जानना जरूरी है कि वे कब और क्यों किसी स्टॉक को बेचने का फैसला करते हैं, और इससे भारतीय निवेशक क्या सीख सकते हैं.
जब बिज़नेस लड़खड़ाने लगे, तो उसे छोड़ देना चाहिए
जब बिज़नेस लड़खड़ाने लगे, तो उसे छोड़ देना चाहिए. वॉरेन बफेट तब स्टॉक बेचते हैं जब किसी कंपनी की बुनियादी ताकत कमजोर पड़ने लगती है, यानी उसका बढ़ने का दम और बाज़ार में टिके रहने की क्षमता गिरने लगती है.
2004 में अपने शेयरहोल्डर्स को लिखे पत्र में उन्होंने साफ कहा था कि हम सिर्फ इसलिए स्टॉक नहीं बेचते क्योंकि उसकी कीमत बढ़ गई है या हम उसे सालों से होल्ड कर रहे हैं. वे तभी बाहर निकलते हैं जब बिज़नेस उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता.
भारतीय निवेशकों के लिए इसका सीधा मतलब है कि अगर किसी सेक्टर पर सरकारी नीतियों या नई तकनीक का बुरा असर पड़ रहा है और कंपनियों की पकड़ कमजोर हो रही है, तो निवेश पर दोबारा सोचने का वक्त है. मान लीजिए किसी रिटेल कंपनी को भारी नुकसान हो रहा है क्योंकि वह ई-कॉमर्स या वैल्यू रिटेल कंपनियों से मुकाबला नहीं कर पा रही, ऐसी स्थिति में बफेट शायद वह स्टॉक बेच देते. उन्होंने 2018 में एक इंटरव्यू में कहा भी था कि अगर आपने जिस वजह से स्टॉक खरीदा था, वह वजह अब नहीं रही, तो आगे बढ़ जाने का वक्त आ गया है.
भारतीय निवेशकों को चाहिए कि वे समय-समय पर यह ज़रूर जांचें कि क्या कंपनी का मुनाफा, बाज़ार में स्थिति और लीडरशिप आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी खरीदते वक्त थी. अगर नहीं, तो फैसले पर दोबारा विचार करना समझदारी होगी.
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जब स्टॉक की कीमत उसकी असली वैल्यू से ज्यादा हो जाए, तो बेच देना समझदारी है.
जब स्टॉक की कीमत उसकी असली वैल्यू से ज्यादा हो जाए, तो बेच देना समझदारी है. वॉरेन बफेट, वैल्यू इनवेस्टिंग के जनक बेंजामिन ग्राहम के शिष्य हैं. वे तब स्टॉक खरीदते हैं जब वह सस्ते मिलते हैं और तब बेचते हैं जब कीमत जरूरत से ज्यादा बढ़ जाती है. 1987 में शेयरहोल्डर्स को लिखे एक पत्र में उन्होंने कहा था कि अगर किसी स्टॉक की कीमत उसकी असली वैल्यू से बहुत ज्यादा ऊपर चली जाए, तो आपको एक्शन लेना चाहिए.
भारतीय निवेशकों के लिए यह एक बहुत बड़ा सबक है, खासकर तब जब टेक्नोलॉजी या लॉजिस्टिक्स जैसे सेक्टरों के स्टॉक्स बाजार में तेजी के दौरान आसमान छूने लगते हैं. सोचिए 2021 से 2022 के बीच आए IPO बूम को, जब नए जमाने की कंपनियों के शेयर जरूरत से ज्यादा महंगे दामों पर बिक रहे थे. बफेट शायद ऐसे वक्त पर स्टॉक बेच देते, जैसा कि उन्होंने पहले भी कई बार किया है. हाल ही में उन्होंने Apple और Bank of America में अपनी हिस्सेदारी का एक हिस्सा बेच दिया, भले ही उन्होंने इसकी वजह साफ न बताई हो.
2025 के अपने ताज़ा पत्र में उन्होंने लिखा कि पागल होते बाजार में भी अपने सिद्धांतों पर टिके रहना ही आपके पैसे की सुरक्षा करता है. भारतीय निवेशकों को चाहिए कि वे प्राइस-टू-इर्निंग रेशियो या कैश फ्लो जैसे टूल्स का इस्तेमाल करें और जांचें कि कहीं किसी स्टॉक की कीमत उसकी असली वैल्यू से कहीं ज्यादा तो नहीं हो गई है. अगर ऐसा है, तो बेचने का समय हो सकता है.
घबराकर कभी स्टॉक न बेचें
घबराकर कभी स्टॉक न बेचें. वॉरेन बफेट की 2008 में न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी सलाह आज भी अनमोल है कि जब दूसरे लालची हों, तो डरें और जब दूसरे डरें, तो लालची बनें.
जब बाजार गिरता है, तो भारतीय निवेशक अक्सर घबराकर अच्छे और मजबूत स्टॉक्स बेच देते हैं और नुकसान पक्का कर लेते हैं. लेकिन बफेट के लिए ऐसी गिरावट खरीदने का मौका होती है, बेचने का नहीं, जब तक कि खुद बिज़नेस ही संकट में न हो.
2017 में अपने शेयरहोल्डर्स को लिखे पत्र में उन्होंने कवि रुडयार्ड किपलिंग की एक पंक्ति का ज़िक्र किया था कि अगर तुम उस समय भी शांत रह सको, जब चारों ओर सब घबरा रहे हों. यह बात भारतीय निवेशकों के लिए बेहद अहम है, खासकर तब जब बैंकिंग या सॉफ्टवेयर जैसे स्थिर सेक्टर भी मंदी के दौर में गिरावट झेलते हैं.
BSE सेंसेक्स का डेटा भी यही दिखाता है कि समय के साथ बाजार संभल जाते हैं और जो निवेशक धैर्य रखते हैं उन्हें फायदा होता है. घबराकर स्टॉक बेच देना शायद ही कभी अच्छा फैसला साबित होता है.
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भारतीय निवेशक बफेट की रणनीति को क्यों अनदेखा करते हैं
वॉरेन बफेट की स्टॉक बेचने की रणनीति साफ और समझने में आसान है, फिर भी भारतीय निवेशक इसे अपनाते क्यों नहीं? इसकी सबसे बड़ी वजह है भावनाओं से लिए गए फैसले. जब बाजार चढ़ता है तो लालच हावी हो जाता है, और जब गिरता है तो डर निवेशकों को घेर लेता है.
अधिकतर लोग सिर्फ स्टॉक की कीमत देखते हैं, लेकिन कंपनी की असली हालत यानी उसके फंडामेंटल्स को समझने की ज़रूरत नहीं समझते. इसके अलावा, डे ट्रेडिंग और ऑप्शन ट्रेडिंग का रोमांच भी निवेशकों को बफेट के धैर्य और विवेक वाले नजरिए से दूर कर देता है. तेज़ मुनाफा कमाने की यह होड़ अक्सर दीर्घकालिक फायदों को पीछे छोड़ देती है. बफेट ने 1987 के अपने शेयरहोल्डर लेटर में लिखा था कि जो लोग बार-बार स्टॉक्स को खरीदते और बेचते हैं, वे अक्सर बाजार के पलटते ही नुकसान उठाते हैं.
बफेट-स्टाइल सेलिंग स्ट्रैटेजी कैसे अपनाएं
बिज़नेस को समझें
किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले उसके मुनाफे, बाजार में स्थिति और लीडरशिप की जांच करें. अगर कोई कंपनी जैसे एविएशन सेक्टर की, लगातार घाटे में जा रही है या उसका मार्केट में दबदबा खत्म हो रहा है, तो उस स्टॉक से बाहर निकलने का वक्त आ गया है.
असली वैल्यू को प्राथमिकता दें
किसी भी स्टॉक की कीमत उसकी असली वैल्यू से बहुत ज्यादा हो जाए तो सतर्क हो जाएं. वैल्यूएशन टूल्स जैसे प्राइस-टू-इर्निंग रेशियो या कैश फ्लो मॉडल का इस्तेमाल करें और समझें कि स्टॉक की कीमत वाकई वाजिब है या नहीं. बफेट ने 1993 के अपने पत्र में चेताया था कि अगर आपको यह नहीं पता कि आपने क्या पकड़ा हुआ है, तो आप खतरे में हैं.
घबराहट में शांत रहें
बाजार जब गिरता है, तब बिना वजह स्टॉक्स बेच देना सबसे आम गलती होती है. जब तक कंपनी की नींव डगमगा न रही हो, तब तक उसे बेचना जरूरी नहीं. बफेट ने 2009 के अपने पत्र में लिखा था कि तेज़ पैसे की चाहत अक्सर लंबे समय के फायदों को नुकसान पहुंचाती है. बाजार कब शांत से पागल हो जाए, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, इसलिए घबराहट में लिए गए फैसले ज़्यादातर गलत साबित होते हैं.
धैर्य रखने के फायदे
वॉरेन बफेट की स्टॉक बेचने की रणनीति बार-बार खरीदने-बेचने की नहीं है, बल्कि समझदारी और सोच-समझकर फैसला लेने की है. 1996 में अपने लेटर में उन्होंने लिखा था कि अगर आप किसी स्टॉक को 10 साल तक रखने का इरादा नहीं रखते, तो उसे 10 मिनट के लिए भी न खरीदें. यही सोच भारतीय निवेशकों के भी काम आ सकती है. याद रखें, बफेट ने अपनी दौलत का बड़ा हिस्सा पिछले 20 वर्षों में बनाया है. यानी धैर्य और बफेट के नियम मिलकर असली संपत्ति बनाने का सूत्र बन सकते हैं.
बेचने के लिए तैयार हैं?
वॉरेन बफेट का फॉर्मूला स्टॉक्स बेचने का चार चीज़ों पर टिका है – बिज़नेस की मजबूती, बेहतर विकल्पों की पहचान, उचित मूल्यांकन और धैर्य. ये फॉर्मूला उन भारतीय निवेशकों के लिए रोडमैप है जो लंबे समय तक टिकने वाली सफलता की तलाश में हैं. अब वक्त है कि आप अपने पोर्टफोलियो को गंभीरता से देखें, बाजार की आवाज़ों को नज़रअंदाज़ करें और दीर्घकालिक वैल्यू पर ध्यान दें. भारत जैसे उतार-चढ़ाव वाले बाजार में, बफेट की सोच आपके लिए एक मजबूत मार्गदर्शक बन सकती है.
इस लेख का उद्देश्य सिर्फ रोचक डेटा, विचार और जानकारियां साझा करना है. यह किसी भी तरह की निवेश सलाह नहीं है. अगर आप कोई निवेश करने का विचार कर रहे हैं, तो कृपया अपने वित्तीय सलाहकार से ज़रूर संपर्क करें. यह लेख केवल शिक्षा और जागरूकता के मकसद से लिखा गया है.
(Suhel Khan has been a passionate follower of the markets for over a decade. During this period, He was an integral part of a leading Equity Research organisation based in Mumbai as the Head of Sales & Marketing. Presently, he is spending most of his time dissecting the investments and strategies of the Super Investors of India.
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