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1996 में साथ आने के बाद ये पहला मौका है जब भाजपा और जेडीयू बिहार विधानसभा चुनाव में बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. (Image: Express File)
NDA Seat Sharing Formula: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए ने रविवार को आखिरकार सीट बंटवारे पर सहमति बना ली. समझौते के तहत भाजपा और जनता दल (यू), दोनों पार्टियां 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. वहीं चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 29 सीटें, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को 6-6 सीटें मिली हैं.
यह पहला मौका है जब 1996 के बाद से भाजपा और जेडीयू बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. पिछली बार यानी 2020 में जेडीयू ने 122 और भाजपा ने 121 सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब जेडीयू ने अपने हिस्से से मांझी की पार्टी को 7 सीटें दी थीं, जबकि भाजपा ने मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को 11 सीटें सौंपी थीं.
एनडीए में यह समझौता कई हफ्तों की खींचतान के बाद हुआ है. चिराग पासवान और जीतन राम मांझी, दोनों ज्यादा सीटों की मांग पर अड़े थे. पासवान ने पहले 40, फिर 35 सीटों की मांग रखी थी, जबकि मांझी 15 सीटें चाहते थे. आखिर में भाजपा की दिल्ली में हुई केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद सीट शेयरिंग का फैसला तय हुआ. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार-दिल्ली के वरिष्ठ नेता शामिल थे.
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पहले लोजपा (रामविलास) को 20–25 सीटें देने की बात थी, लेकिन पार्टी की 2024 लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन ने उसकी अहमियत बढ़ा दी. 2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने 5 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. इस चुनाव में पार्टी सभी 5 सीटें जीतने में कामयाब रही और करीब 6% वोट शेयर हासिल किया. हालांकि भाजपा के कुछ नेताओं का कहना है कि वह जीत मोदी लहर की वजह से थी, न कि पासवान की बढ़ती लोकप्रियता से.
2020 में जब लोजपा पार्टी एकजुट थी, उसने 243 में से 135 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था और एनडीए को नुकसान पहुंचाया था. 64 सीटों पर उसने तीसरे या चौथे स्थान पर रहकर भी इतने वोट लिए कि एनडीए हार गया. इनमें से 27 सीटें सीधे जेडीयू को प्रभावित कर गईं.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि लोजपा (रामविलास) को जितनी सीटें मिली हैं, उससे ज्यादा की वह वास्तव में हकदार नहीं थी. हम शुरू में 20 सीटों के पक्ष में थे, फिर इसे बढ़ाकर 23, फिर 26 किया गया. चिराग के लगातार दबाव के बाद, गठबंधन की एकजुटता बनाए रखने के लिए 29 सीटों पर सहमति बनी.
पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा - चिराग पासवान ने तगड़ा मोलभाव किया. केंद्र में वह अहम सहयोगी हैं, इसलिए हमें उनकी बात माननी पड़ी. मांझी को 6 सीटों पर सहमति तब मिली जब प्रधानमंत्री ने उन्हें फोन किया. बताया जा रहा है कि उन्होंने एक एमएलसी सीट की भी मांग रखी है.
जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने कहा - महागठबंधन अभी भी सीटों पर झगड़ रहा है, जबकि एनडीए एकजुट होकर मैदान में उतर चुका है. यही हमारी ताकत है. आरएलएम को भी 6 सीटें दी गई हैं, और उपेंद्र कुशवाहा को आश्वासन दिया गया है कि अगले साल अप्रैल में उनकी राज्यसभा की अवधि खत्म होने के बाद भी वे सीट बरकरार रख सकेंगे. सूत्रों के मुताबिक पार्टी महुआ, उजियारपुर, सासाराम, दिनारा, मधुबनी और बाजपट्टी सीटों पर मैदान में उतरेगी. भाजपा नेताओं के अनुसार, पिछली बार कुशवाहा के अलग मोर्चे ने शाहाबाद और मगध क्षेत्र में एनडीए को नुकसान पहुंचाया था, इसलिए इस बार उन्हें साथ रखना जरूरी समझा गया.
एनडीए सूत्रों के मुताबिक, इस बार गठबंधन की बातचीत भाजपा ने लीड की, जबकि जेडीयू ने छोटे दलों से बातचीत में खुद को अलग रखा. शुरू में नीतीश कुमार की पार्टी एक सीट ज्यादा चाहती थी ताकि गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी कही जा सके. उनका तर्क था कि पिछली लोकसभा में जेडीयू का प्रदर्शन भाजपा से थोड़ा बेहतर रहा था. 2024 के चुनाव में जेडीयू ने 16 में से 12 सीटें जीतीं, भाजपा ने 17 में से 12. लेकिन भाजपा ने 2020 के विधानसभा परिणामों का हवाला देकर यह मांग खारिज कर दी, जब जेडीयू सिर्फ 43 सीटें जीत सकी थी जबकि भाजपा ने 74 हासिल की थीं. अंत में जेडीयू ने बराबर सीटों पर सहमति दी.
इस समझौते के बाद एनडीए में अब किसी नए खिलाड़ी के लिए जगह नहीं बची है, यानी यह लगभग तय है कि सहनी की वीआईपी पार्टी की एनडीए में वापसी अब मुश्किल है, जो इस समय महागठबंधन से अपनी डील पक्की करने में लगी है.
पिछले विधानसभा चुनाव के आकड़ों पर एक नजर
- जेडीयू: लड़ी 115 सीटों पर, जीती 43, वोट शेयर 19.46%
- भाजपा: लड़ी 110 सीटों पर, जीती 74, वोट शेयर 15.39%
- लोजपा (तब एकीकृत): लड़ी 135 सीटों पर, जीती 1, वोट शेयर 5.66%